Monday 8 May 2023

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape
अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योलीकोट के विस्टा हॉस्टल में काफी समय से जा रहा है और जब भी वो वहाँ होता है सुबह शाम का नज़ारा जरूर दिखाता है। उस नज़ारे का आकर्षण ऐसा था कि वहां जाने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। बकौल wikipedia: Jeolikote is a hill station in the Nainital district of the state of Uttarakhand, India. Jeolikote is situated at an altitude of 1,219 meters. It is also known as the Gateway to Naini Lake. It is an ideal place for those who are interested in floral culture and butterfly catching.

विस्टा हॉस्टल चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है इसलिए सुबह और शाम का नज़ारा breathtaking होता है।  मेरे लिए ये एक बिलकुल अलग सा अनुभव था। नौकरी के दौरान बड़ी घिसी पिटी सी लाइफ स्टाइल होती है जो एक मशीन की तरह चलती रहती है।  वही सुबह उठना, ऑफिस जाना, काम निबटाना और वापस आ जाना।  कभी कभार बच्चों को लेकर छुट्टियाँ मनाने गए तो भी वो बड़ा सेट प्रोग्राम हुआ करता था। रिजर्वेशन किया, तैयारी की, तय तारीख को तवांग या गोवा, या मनाली या मसूरी पहुंच गए, वहाँ घूमा, देखने लायक जगहों पर गए, कुछ खरीददारी की और वापस अपने मुक़ाम पर। इन सबमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो लीक से हटकर हो। 

Lalu, Aakash and bubu

मेरा यह अनुभव सोलो- बैकपैकर का था। हाँलाकि मैं सोलो नहीं था पर फील वैसा ही था। सारा सामान बैकपैक में। कुछ गरम कपडे रख लिए थे क्युकी इस भरी गर्मी में भी लगातार बारिश लगातार हो रही थी। तय तिथि को मैं दिल्ली होता हुआ देहरादून पंहुचा। फिर वहां से लगभग 280 किलोमीटर का सफ़र साढ़े पांच से छः घंटों में पूरा होता है यदि आप अपने वाहन से हैं या टैक्सी से । उत्तराखंड रोडवेज की बसें भी देहरादून ISBT से छूटती हैं जो हरिद्वार, चिड़ियापुर फारेस्ट रेंज, नज़ीबाबाद, कोतवाली, घामपुर, काशीपुर और बाजपुर होते हुए ज्योलीकोट पेट्रोल पंप पर आपको उतार देंगी।

Shantanu and Sneha 

ज्योलीकोट पेट्रोल पंप से विस्टा गेस्ट हाउस की पार्किंग लगभग 2 किलोमीटर है। पार्किंग से विस्टा गेस्ट हाउस क़रीब 1 किलोमीटर का ट्रेक है। यहीं से excitement की शुरुआत हो जाती है। पहाड़ी पगडंडियों से गुजरते हुए काफल, बुरांश, तेजपात, तून और बंज ओक के भारी भरकम पेड़ शिवालिक के पहाड़ों को एक अद्भुत नज़ारा देते हैं। एक जानकारी के अनुसार शिवालिक के पहाड़ एक ओर सिंधु नदी से दूसरी ओर ब्रम्हपुत्र नदी तक फैले हुए हैं और एक तरह से हिमालय का कण्ठहार बन जाते हैं। चहचहाते पक्षियों के बीच चारों ओर फैली हुई शान्ति बहुत स्थिरता, सुकून और अनुपम आनंद का अनुभव करा रही थी। हवा की ताज़गी और तेजपात की खुशबुओं का मिश्रण एक तरावट का काम कर रहा था मानों 6 घंटे की यात्रा की थकान छूमंतर हो गयी।

Mud room

विस्टा हॉस्टल पहुँचते ही रही सही थकान भी जाने कहाँ गायब हो गयी। mud  हाउस में कदम रखते ही वाइब्स का एहसास किसी खूबसूरत ख़्वाब से कम नहीं था। चारों तरफ फैली हुई हरियाली, पक्षियों की मधुर चहचहाट और वहाँ जो लोग मिले उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।

Yoga practice 

कॉर्पोरेट का नया कल्चर जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। शान्तनु, यज़न और आकाश इस प्रॉपर्टी को मैनेज करते हैं। मनमोहन जी, स्नेहा, अजीत,  गीतांजलि,यज़न , हैरी, लूसी, चार्ली और मेरा बेटा अभिनव सभी कॉर्पोरेट से हैं और सबने अपनी ज़िंदगी में ये चेंज जोड़ा है ताकि उनकी एनर्जी और vibes बरकरार रहे।  ज्यादातर ट्रैवेलर्स लम्बे समय  से उत्तराखंड के पहाड़ों को एक्स्प्लोर कर रहे हैं। बुबू यहाँ के बड़े अनुभवी मेंबर हैं। बेहद शालीन, ठेठ देहाती रहन-सहन, और उनकी जड़ी बूटियों के ज्ञान ने मुझे कायल कर दिया।  यहाँ का स्टाफ़ बहुत एक्टिव और सपोर्टिव है जो लगभग शुरूआत से ही जुड़ा हुआ है। लालू जी और बाबाजी तो सुबह से ही नाश्ता, चाय और खाने की तैयारी में व्यस्त हो जाते थे।

Gardening with Gitanjali 

सारे गेस्ट लगभग एक परिवार की तरह रहते थे। लूसी और हैरी UK से थे और सारा दिन कुछ न कुछ करते रहते थे। कभी पेंटिंग, कभी पत्थरों का मंडाला, कभी गार्डनिंग।  गीतांजलि वैसे तो लॉयर है पर यहाँ अपने  माली introduce करती है और कितने की  झाड़,पेड़, फूल, सब्जियाँ लगायी थी।  कभी कभी मैं भी उसका हाथ बटाता था।

 
Lucie made a painting 

अजित बैंगलोर से था और बहुत मेहनती था, प्रोफेशनल बॉक्सर और सब लोग शाम को बॉक्सिंग लेसन लेते थे। मैंने भी दो दिन किया।  स्नेहा सब को योग कराती थी। दिन की शुरुआत अल-सुबह 4. 30 बजे होती थी।  कुछ जड़ी बूटियां तोड़कर सुबह की मसाला चाय बनती थी। फिर पार्किंग वाले रास्ते पर ट्रेकिंग, फिर दिन भर कुछ न कुछ चलता रहता था। बाबाजी सुबह हवन करते थे। यजन और स्नेहा रिट्रीट प्लान कर रहे थे कॉर्पोरेट के लिए।
शाम को गिटार, संगीत, गाना- बजाना, मंडाला ड्राइंग, बहुत सारी गतिविधियाँ चलती थी। मुझे ऐसा लगता है कि जिंदगी को जीने का माकूल तरीका है कि प्रकृति से जुड़कर जिया जाए। पूरी मंडली में मैं ही एक बुजुर्ग था जो 65 का था , बाकि सारे 30 -35 के आसपास, पर मैंने कभी अपने आप को अकेला महसूस नहीं किया। ग्रेसफुल एजिंग के लिए सबसे जरुरी है कि घिसी पिटी जिंदगी से ब्रेक लिया जाए। तभी बीमारी कभी आसपास नहीं फटकेगी। 

Sunday 5 March 2023

शरीर भी बोलता है... 😊

 १४ जनवरी के ब्लॉग में मैंने आपसे कहा था कि अपने शरीर से बात करने का तरीका बताऊंगा।  लिखने के बाद विषय पर शोध करने में कुछ समय लगा और असल समय हर्बल मसाज़ ऑइल और नीम टूथ एंड ग़म ऑइल के शोध में लगा।  इन दोनों शोधों ने बहुत से नए आयाम दिए हैं जो आपके लिए भी नए विचार, नयी दिशा और नए उपक्रम पैदा करने में मदद करेगा। पहले मैं "अपने से बात" करने के तरीकों पर चर्चा करूँगा और दोनों ऑयल्स के शोध पर आये नतीजों जो निश्चित रूप से बहुत उत्साहवर्धक हैं पर, अगले ब्लॉग में लिखूँगा।  

अमूमन जब हम किसी से मिलते है. तो सामान्य शिष्टाचार में पूछ लेते हैं भाई कैसे हो ? और उसका सीधा सा उत्तर होता है कि मैं अच्छा हूँ, स्वस्थ हूँ, मस्त हूँ या all good. इसे बोलने के पहले आप अपने अंदर जरूर टटोल लेते हैं कि वास्तव में अच्छा तो हूँ अन्यथा आप कह देते हैं, यार मौसम का असर है कुछ तबियत नरम गरम चल रही है।  यानी हम अपने आप से बात ज़रूर करते हैं और ये हमारी आदत में शुमार होता है। हमारा शऱीर भी हमसे कुछ न कुछ कहता है, हम नहीं सुनते हैं तो ज़ोर ज़ोर से कहता है, फिर भी नहीं सुनते हैं तो चीख़ता है और तब तक चीख़ता है जब तक हम सुन ना लें क्यूँकि उसको हमारे सिस्टम को चलायमान रखना है। जैसे हमारा सिस्टम यानि शऱीर जब dehydrate होता है तो हमसे कहता है पानी पी लो, गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, बार बार ओंठो पर जीभ फिराने का मन करता है। फिर भी हम शरीर को hyderate नहीं करते हैं तो चक्कर आने लगते हैं और हम नीम बेहोशी की तरफ़ जाने लगते हैं यानि पानी पीना हमारी मज़बूरी हो जाती है।

ये बात अलहदा है की शरीर को केवल पानी की जरुरत थी और हमने बर्गर और कोल्ड ड्रिंक ले लिया।  ये प्यास तो बुझा देगा लेकिन बहुत कुछ अवाँछनीय भी कर देगा। जैसे बहुत ज्यादा प्यास की स्तिथि में आंतें सिकुड़ जाती हैं और शरीर डिफेन्स मोड में चला जाता है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सके और शरीर में खून को उसके नार्मल लेवल में रख सके ताकि सारे अंग नार्मल काम करते रहें। ऐसे में जब अचानक डाइजेस्टिव सिस्टम में बर्गर और कोल्ड ड्रिंक पहुँच जाता है तो दिमाग़ का डिफेन्स मेकनिज़्म फायर फाइटिंग मोड में चला जाता है क्युकी सिकुड़ी हुई आंते इतना माल अचानक नहीं ले सकतीं और ढेर सारा ऐसिडिक डिस्चार्ज होता है।  इसीलिए आपने देखा होगा कि ऐसा खाने या पीने के बाद आपको अक्सर एसिडिटी हो जाती है यानि शऱीर फिर कहता है अब कुछ मत लेना।  पर हम फिर भी शऱीर की नहीं सुनते और सोडा या कुछ इसी तरह का कोई इंतज़ाम करके पेट को शांत करते हैं ताकि शाम की पार्टी के लिए तैयार हो सकें। शाम को भी पेट में कुछ न कुछ हैवी चला जाता है और पेट फिर से इसी मशक्कत में लग जाता है कि अब इतने माल असबाब को ठिकाने कैसे लगाया जाय। पेट की ओवरलोडिंग का असर लीवर, किडनी और गाल ब्लैडर पर होता है।  

हमारा शरीर ईश्वर की दी हुई वो मशीन है जिसमे हरकुछ करने की संभावनाएं छुपी हुई हैं। सामान्य क्रिया से लेकर गूढ़ आध्यात्म तक की दौड़ इस शरीर के माध्यम से पूरी की जा सकती है पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है की हम अपने शरीर की सुनें। शरीर की सुनने के लिए अपने शरीर को समझना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। हर व्यक्ति की शारीरिक संरचना लगभग एक जैसी है; अस्थियाँ, जोड़, नस नाड़ियाँ, बाहरी और भीतरी अवयवों का स्वरूप एवं गठन एक सा है। क्रिया कलाप में भी समानता होती है। काया की व्यवस्था बड़ी सटीक और सुव्यवस्थित है और इसकी व्यवस्था में जरा सी चूक होने पर शरीर इशारे करता है, आवाज़ देता है, चीखता है। 😩 जब बार बार उसकी बातों को अनसुना किया जाता है, तो शरीर दुर्बलता, रुग्णता के चंगुल में फँस कर अनेकानेक पीड़ायें सहने के लिए बाध्य हो जाता है। और यदि इसके इशारे और भाषा समझ आने लगी तो यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि आप असंभव को भी संभव कर सकते हैं। 

हम यहाँ हमारे शरीर के दो महत्वपूर्ण सिस्टम और उनसे संवाद करने के तरीक़े को समझेंगे; पहला है हमारा ब्रीदिंग सिस्टम या श्वसन तंत्र और दूसरा है हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम या पाचन तंत्र। हम एक मिनट में १८-२० बार साँस लेते हैं और हमें मालूम है कि साँस है तो आस है और शरीर की सारी व्यवस्थाओं को चलाने का ज़िम्मा भी इन्हीं साँसों का है। प्रत्येक साँस के साथ ३००-५०० सीसी हवा शुद्ध होकर फेफड़ों को आक्सीजन देती है जो रक्त में मिलकर सारा मेटाबॉलिक सिस्टम कंट्रोल करती है। साँस की गहराई और ली गई आक्सीजन ही शरीर में बहने वाले खून के शुद्धीकरण के लिए ज़िम्मेदार है। उथली साँस पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुँचा पाती और यदि हवा अशुद्ध हुई या हवा में ही पर्याप्त आक्सीजन न हुई या लंबे समय तक दूषित वातावरण में रहना पड़े तो शरीर तुरंत इशारे करता है। गहरी साँस लेने की ज़रूरत महसूस होती है, गले में ख़राश लगती है, खांसी आती है, प्यास लगती है, आँखों में जलन होती है, त्वचा में रूखापन आता है, आलस्य और प्रमाद आता है, कमजोरी आती है और शरीर बार बार बीमार होता है। अब इस भाषा को समझना और तुरंत करेक्ट करना नितांत आवश्यक होता है। 

दूसरा महत्वपूर्ण सिस्टम है हमारा पाचन तंत्र। आमतौर पर भूख़ या प्यास लगने पर या ज़्यादा खा लेने पर आमाशय एक्टिव हो जाता है उसमें से साढ़े तीन करोड़ पाचक रस निकलने के लिए तैयार रहते हैं। यही रस भोजन या पानी के साथ मिलकर लीवर, किडनी और गॉल ब्लेडर से गुजरकर खून और दूसरे तत्व बनाता है। भूख या प्यास लगने पर कुछ खाने या पीने की इच्छा होती है, इसके अलावा बहुत से सिम्पटम्स होते हैं जिन्हें कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए। जैसे गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, डकार आती हैं, आलस आता है, बार बार सिरदर्द होता है, नींद बहुत आती है या टूट टूट कर आती है, मीठा खाने की ज़्यादा इच्छा होती है, क़ब्ज़ रहता है, भूख ज़्यादा लगती है या हम ज़रूरत से ज़्यादा खा लेते हैं। हमारा पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील होता है और एक बार का खाया या पिया पचने के लिए समय माँगता है। शरीर की ९०% बीमारियों का कारण पेट होता है इसलिए खाने के मामले सबसे ज़्यादा सावधानी की ज़रूरत होती है।

शरीर की भाषा सीखना एक ऐसी कला है जो हमारे जीवन को न केवल व्यवस्थित कर देती है वरन हमें वो ताक़त देती है जिससे हम उन क्षमताओं को भी हासिल कर सकते हैं, विकसित कर सकते हैं जिन्हें अतीन्द्रिय कहा जाता है। 

Saturday 14 January 2023

जड़ी बूटियों के साथ नवाचार का अनुभव

मैंने अपने 20 NOV 2022 के ब्लॉग में मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी में विस्तार से अपनी नयी यात्रा के बारे में लिखा था। हालाँकि मेरे लेखन के लिए ज्ञानदत्त जी का फीडबैक जो उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा था, आधार और मोटिवेशन का बहुत बड़ा श्रोत रहा। उनकी सहजता और अभिव्यक्ति का तो मैं कायल हो गया हूँ। रवि जी का लेखन भी बड़ा प्रेरणास्पद है। लेकिन अब की बार ज्ञानदत्त जी ने अपने ब्लॉग में मसाज वाले तेल के इस्तेमाल का काफी विस्तार से अनुभव शेयर किया है। 
https://gyandutt.com/2023/01/11/piyush-verma-massage-oil-feedback/
उनके लेखन में जो विश्लेषण की निपुणता देखने को मिलती है उससे उनकी सोच और लाइफ को देखने का नजरिया समझ में आता है। इस ब्लॉग ने मुझे बहुत कुछ बताया जो शायद गूगल फॉर्म में भरे फीडबैक से कभी नहीं मिल सकता। एक बात जो समझ में आयी कि घुटनों के दर्द को आप अपनी लाइफ का नार्मल मान कर नहीं चल सकते। हाँ, इतना अवश्य है कि जैसे ही आप अपने दर्द के साथ डॉक्टर के पास जायेंगे तो वह आपको पैन-किलर्स, कुछ ऑइंटमेंट या सेंक के साथ विदा कर देगा लेकिन इतना जरूर कह देगा कि दवा के सहारे ज्यादा देर नहीं रखा जा सकता है, आपको knee रिप्लेसमेंट के लिए तैयार होना पड़ेगा। मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत से मित्रों को knee रिप्लेसमेंट का ऑपरेशन और उसके बाद होने वाली लंबी तकलीफों को देखा था। और जैसा ज्ञानदत्त जी ने शेयर किया है,उन्हें भी कमोबेश यही सलाह उन्हें उनके डॉक्टर ने भी दी थी।
बाबूजी को मैंने मालिश वाला तेल बनाते और उसकी मालिश करते देखा था। ये वही तेल था जिसे आज मैं मॉडिफाइड फॉर्म में तैयार कर रहा हूँ। बाबूजी 78 वर्ष और अम्मा 89 वर्ष को कभी भी घुटने या चलने वाली समस्या नहीं रही और उसका कारण आज समझ में आता है कि घुटनों और पैरों की ढंग से मालिश की जाए। हालाँकि अम्मा ने उम्र के चलते अँतिम वक़्त के पहले चलना छोड़ दिया था।

स्वस्थ और दीर्घ जीवन की चाह बहुत ज़रूरी है वरना आज का मिलावटी संसार आपको समय से पहले बूढ़ा करने पर आमादा है। क्यूंकि जहाँ चाह है वहां राह है और ये बात ज्ञानदत्त जी ने सिद्ध करके दिखाई है। क़दमों की संख्या, रफ़्तार और लगातार चलने के जूनून ने सब संभव कर दिखाया है। मैंने अपने पिछले ब्लॉग में भी लिखा था कि यह तेल जोड़ों के दर्द, ऐंठन, मांसपेशियों की जकड़न, घुटने, कमर और पीठ के दर्द में अचूक कारगर है। घुटने के दर्द में इसके प्रयोग के अचूक परिणाम मिले हैं। पूरे शरीर में लगातार मालिश विशेषकर गर्दन, रीढ़ की हड्डी और हाथ पैर के तलुओं में तेल को रगड़कर सुखाने से शरीर में खून के दौड़ान बढ़ जाती है। नियमित मालिश के सार्थक परिणाम मिलते हुए हमने देखा है। ज्ञानदत्त जी की सक्सेस स्टोरी निश्चय ही एक माइलस्टोन है और मुझे गर्व है की अपने पुरखों के दिए ज्ञान को संजो कर आज कितने ही लोगों की सेवा का अवसर ईश्वर ने मुझे दिया है।
एक बात मैं अवश्य कहना चाहूंगा Quality speaks itself. You don't need to advertise and convince everyone that you have a good product. Success stories do convey great messages. एक बडी important बात पर Gyandutt जी ने ध्यान आकर्षित किया है वो है रियल टाइम हेल्थ वॉच के आंकडे। वॉच कहती है मुझे दस हजार कदम चलने हैं। या मेरी सांस की रफ्तार बहुत तेज है। या मेरा बीपी बढा हुआ है। और सारे गेजेट्स हैं जो शरीर में शुगर लेवल वगैरा वगैरा बताते रहते हैं।इसके मायने क्या हैं? अगर हम इन आँकडो के फेर में फंस गये तो हमारा प्रयास केवल आँकडों की मॉनिटरिंग तक सीमित हो जायेगा और हेल्थ मैनेजमेंट का असली मकसद पूरा न हो पायेगा। एक बात और विचार योग्य है।
Medical science particularly science of medicine has remained corrective in action taken. As a result the whole emphasis is on correcting the problem rather than preventing it. You visit a doctor when you come across a problem. You never go to a doctor to say, doctor I am perfectly alright; give me some medicines so that I do not fall sick of diabetes. Prevention is not possible because each human being is different in nature, health and body. Human Body sets normal for each entity depending upon the conditions where a body lives. A person living in Iceland will have different normal than a person living in Kolkata. The latest dilemma in the health sector is “use of wearable “ and ease of availability of health care gadgets. All the wearables and the gadgets have standards set for a particular class of people at particular place. Now the question is, do you really belong to that class or place. This may be the cause of panic among health freaks. Blood sugar of 200 on fasting will be normal for a person living in hot climate but for a man living in Antarctica or Ladakh 60 or even less may be normal. This is highly debatable. I am not convinced by the numbers. All the wearables have a good thing among them is that they create awareness. Let me be aware of the fact but at the same time must "talk to my own body" to become aware of the real condition.
मेरा सुझाव मात्र इतना है कि आँकड़ो के चक्कर में मत उलझो, पहले अपने शरीर से बात करो, फिर आँकड़ों पर विश्वास करो।अपने शरीर से बात करना अहम् है, बहुत जरुरी है और महत्वपूर्ण भी। ये बात हो सकती है कि भाषा ना आती हो तो भाषा सीख लीजिये। अगले ब्लॉग में मैं आपको बताऊंगा कि शरीर से किस भाषा में बात की जाती है। तब तक आप अपना ख्याल रखिये। 

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...