Monday 7 October 2019

वक्त वक्त की बात है........

वक्त वक्त की बात 
*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.....!!*

*वक्त देने वाले ने बड़ी मुरव्वत की है*
*बाकी का हिसाब लेता नहीं*
*वक्त का पूरा हिसाब रखता है*
*वक्त मिले तो ख़ुशियाँ बाँटते चलो*
*मुस्कुराने की वजह ना होतो भी मुस्कुराते चलो*

*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.....!!*

*पाने को कुछ है नहीं,*
*ले जाने को कुछ होता नहीं;*
*जो जाना हैहमेशा साथ रहता है*
*उड़ जाएंगे एक दिन...*
*तस्वीर से रंगों की तरह........!!*
*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.........!!*

*खटखटाते रहिए दरवाजा...*
*एक दूसरे के मन का;*
*मुलाकातें ना सही,*
*आहटें आती रहनी चाहिए!!*
*बस याद करके ही सही मुस्कुराते रहना चाहिए*

*ना राज़ है ये ... “ज़िन्दगी”*
*ना नाराज़ है ये ... “ज़िन्दगी";*
*बस जो हैवो आज है ये... “ज़िन्दगी”*
*आपका दिन शुभ हो*
🌝🌝🌝

Monday 16 September 2019

जिंदगी की परिभाषा

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💐💐💐💐💐💐
कभी सोचो...............
जिंदगी की यह भाग दौड़,
आज यहाँ, कल वहाँ....
आज ये, कल वो........
कितना ज़रूरी है जो
जिंदगी को जिंदगी बनाने के लिए,





कभी सोचो ......................
कितनी दौलत चाहिए तुम्हें, सुकून से जीने के लिए
कमाते कमाते थक जाओगे,
कहीं धरी की धरी रह जाएगी,
और घर भर जायेगा कबाड़ से, और शरीर अनगिनत रोगों से,
आज की बड़ी नियामत है, तंदरुस्त सेहत और खुशनुमा मन,
इससे बड़ी दौलत भी नहीं आज,
कभी सोचो,
क्या है ये दौलत तुम्हारे पास...........
??



कभी सोचो...........
जिंदगी को चाहिए क्या ? 
दो पल का सुकून और एक स्वस्थ शरीर,
जो अपने आपको अंत तक संभाल सके;
उस अंतिम यात्रा के लिए,
जिसमें चाहे अनचाहे सबको जाना ही है। 

कभी सोच कर देखो.....
भागो उतना जितना ज़रूरी है शरीर के लिए,
लो उतना ही, जो ज़रूरी है जिंदगी के लिए;
दो “आत्मा” को वो तृप्ति, जो ‘उसे’ दिव्य अनुभव दे,
चेतना का पुंज दे, आरोग्य का भाव दे,
शांति का सरोकार दे, खुद पर विश्वास दे.......
वहीं मिलता है दो पल का सुकून और 
एक स्वस्थ शरीर, जिसमें बसती है,
एक दिव्य पुण्यात्मा। 
💐💐💐💐💐💐💐

Thursday 27 June 2019

Live healthy, die safe

Open your joy channel
If you are most times in pains, you tend to have your pain channels open and as a result pain becomes the natural flow of emotions for any reaction. Your brain, in that case simply understands pains, pains and only pains. So it receives pain signals and delivers pain signals. Joy channel or happiness channel become foreign to it. 

So if you are impulsive, aggressive, agitated and angered most of the time then be sure that your pain delivering neurological gateway are wide open. Your body tend to discharge harmful chemicals and poisonous matter as a result of mind-body interactions of pain and misery. Even a little anxiety becomes the source of ignition to those active neurotransmitters capable to release poison in the body. This also clogs many pathways and seal many happiness channels. The important point to bring good health to you is open up the happiness channels.
The joy channels and happiness channels become dormant. Each cell of the body responds to signals from brain through these neurotransmitters. If cells are happy and healthy, you will remain happy and healthy. But if these cells have to receive only poison all the time they will become weak and fragile. They die faster than their normal life-span and as a result your body starts ageing faster than its natural course of ageing.

If you want to remain happy and healthy and want to die peacefully, you will have to keep your cells happy and healthy. And for that, most important action you have to do is to train your mind to convert the pain channels to neutral channels first and later recharge these channels as pleasure channels. Reopening is an exercise that needs to be carried out and practiced regularly in life, else your body will forget feel good feelings and you will end up in a diseased state. There is absolutely “No no no” medicine t
o open up happiness channels except for neurotransmitters to be awakened, recharged and reactivated. Pranayam and meditation are the practices need to be adapted as part of daily life to find a way for rejuvenation. These practices are need to be learned from the masters who know the science and art of pranayam and meditation. A word of caution- 🤔 Never fall victim to hacks and quacks otherwise you will end up cursing me. 🤗..



Saturday 1 June 2019

रिश्तों का मर्म

रिश्तों का मर्म
रिश्ते कुछ तो नैसर्गिक होते हैं जैसे माता, पिता, भाई, बहन, ताऊ, चाचा, मामा इत्यादि और इन रिश्तों की ख़ासियत यह होती है कि मान ना मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज़ पर टंगे होते हैं। इन रिश्तों में प्रेम, सरोकार और अपनापन कितना होता है यह निर्भर करता है कि उसको कितनी सहजता और विश्वास से सहेजा गया है। माँ- पिताजी, भाई बहन का रिश्ता याज्जीवन चलता है और निश्छल प्रेम और सरोकार का उत्तम उदाहरण साबित होता है, बशर्ते उसमें स्वार्थ, कलुषता और कपट हावी न हो। बाकी नैसर्गिक रिश्ते समय के साथ शनैः शनैः क्षीण होते चले जाते हैं पर खत्म कभी नहीं होते।
इसके अलावा एक रिश्ता होता है मित्र का। एक सच्चा मित्र किसी भी रिश्ते से ऊपर होता है, इस रिश्ते में अगाध स्नेह, सहजता और वास्तविक सरोकार होता है और सब कुछ निःशर्त और नि:स्वार्थ होता है।मित्रता की सैकड़ो कहानियाँ इतिहास में दर्ज़ हैं; यहाँ भी वही शर्त लागू होती है कि इसमें स्वार्थ और कपट हावी न हो। जिस दिन मित्रता में स्वार्थ और कपट हावी होता है, उस दिन वह रिश्ता कलंकित हो जाता है।माँ पिताजी या अन्य नैसर्गिक रिश्ते जब मित्रवत हो जाते हैं तब इस रिश्ते में वो अटूट विश्वास और वो ईश्वरीय ताक़त आ जाती है कि हम किसी भी विपरीत से जूझने के लिए हमेशा तैयार होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है बच्चों से पाँच वर्ष तक बहुत स्नेह, पाँच से सोलह वर्ष तक कठोर अनुशासन में और सोलह वर्ष के बाद मित्रवत व्यवहार करें।
तीसरा रिश्ता होता है सेवा का। नौकरी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यहाँ आत्मीयता, प्रेम, विश्वास और सरोकार गौण या न्यून हो जाते है और सब कुछ सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से नियंत्रित होता है। दिखावा, स्वार्थ और कपट अपनी सेवा को बेहतर साबित करने के साधन बन जाते है। निष्ठा, ईमानदारी, प्रतिबद्धता इत्यादि की बात जरूर होती है परन्तु उसमें सच्चाई कितनी है और दिखावा कितना, यह फिर भी,  सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से ही नियंत्रित होता है। यदि सेवा शर्तें बहुत कठोर, अनुशासन वाली और नियंत्रण वाली होंगी, वहाँ ढोंग, दिखावा और कपट भी ज़्यादा होगा। ईश्वर की सेवा के नाम पर ढोंग, दिखावे और छल-कपट के अनगिनत क़िस्से हम रोज़ देखते और सुनते आये हैं। 
एक रिश्ता और है जो ऊपर के तीनों से भिन्न और पूर्णतः निर्विकार, निराकार और आत्मीयता से परिपूर्ण है।वो रिश्ता जो शबरी और राम के बीच था, जो मीरा और गिरधर गोपाल के बीच था, जो राधा और कृष्ण के बीच था। इस रिश्ते में प्रेम, सरोकार और विश्वास चरम पर होता है। इस रिश्ते में ईश्वरीय तत्व की उपस्थिति महसूस की जा सकती है व ढोंग, दिखावे और छल-कपट का कोई स्थान नहीं होता है। हमें स्वयं से ऐसे रिश्ते जोड़ने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और ये बात मान लीजिए कि जिस दिन आपका अपने आप से साक्षात्कार हो जाएगा, आपके अंदर से वो सच्चा, उर्जावान और चैतन्य व्यक्तित्व पैदा होगा जो समाज में नयी इबारत लिख सकेगा। 

Saturday 20 April 2019

कविता जन्मदिवस पर

यह कविता मैंने अपनी भाँजी के जन्मदिन पर लिखी थी। शुरूआती दौर पर जीवन का संघर्ष अमूमन तोड़ देने वाला होता है। पर बोलते हैं न, जब ईश्वर को देना होता है, तो वो ख़ूब ठोक बज़ाकर परीक्षा लेता है और उसमें पास होने पर ही वो इनाम देता है। आशा-निराशा के हिचकोले खाते उसकी जिंदगी में भी परीक्षाओं के बहुत सारे पड़ाव आये। दोस्तों को नौकरी मिलती गयी, दोस्तों की शादियाँ होती गईं, पर एक चीज़ जिसका साथ उसने नहीं छोड़ा, वह था उसका आत्मविश्वास। अंततः ईश्वर प्रसन्न हुए, अच्छी नौकरी भी मिली और बेहद भले परिवार में शादी भी। आज वो एक बहुत से प्यारे बेटे की माँ है और अपने परिवार की लाड़ली बहू। उसके जन्मदिन पर समर्पित यह कविता
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कब बड़ी हो गयी किताबों को पढ़ते पढ़ते;
थम सी गई थी ज़िंदगी, बस यूँ ही चलते चलते,
अचानक थाम लिया दामन ख़ुशियों ने हँसते हँसते,
अब जम” रही है जिंदगीअपनों से मिलते जुलते। 

रखना सब” संभाल के, “अपनों” के बीच में तुम
तन्हाई में भी लेना ढूँढख़ुशियों के मोती चुन के;
जीवन के फ़लसफ़े हैं बड़ेकिताबों में न मिलेंगे यूँ,
दिलों को थामें रखनादुआ करते हैं यही दिल से। 
आशीष है हमाराबस यूँ ही ख़ुश रहना तुम,
हाथों को थामें रखना”, बढ़ना साथ सब मिल के। 

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Sunday 31 March 2019

दाँत का दर्द

एक व्यक्ति को दाँत में असहनीय पीड़ा थी, दर्द के मारे बुरा हाल था। डॉक्टर को दिखाना था, पर मन नहीं मान रहा था। मन में सैकड़ो विचार आ रहे थे, पता नहीं कितने दाँत ख़राब हैं, डॉक्टर पता नहीं कितने दाँत निकालेगा, अगर रूट केनाल करना पड़ा तो और भीषण कष्ट होगा। दवा से मेरा पेट ख़राब हो जाता है। इन विचारों से उसके कष्ट में तो कोई कमी नहीं आई वरन वह निराशा में डूबने लगा। अंत्तोगत्वा थकहार कर उसे डॉक्टर की शरण में जाना ही पड़ा। डॉक्टर ने एक्स रे किया और तीन दिन

दवा लेने के बाद एक सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दी।घर पहुँच कर वह दवा लेने पर विचार कर ही रहा था कि उसके मन में फिर से उहापोह शुरु हो गई, पिछले बार उसने जब दवा खाई थी तो तीन दिन तक पेट ख़राब रहा था, मिसेज़ शर्मा ने दाँत के डाक्टर को दिखा कर दवा ली थी और दवा के रिएक्शन से उनके सारे शरीर में सूजन आ गई थी। दवा लूँ या न लूँ के उहापोह में यूँ ही तीन दिन निकल गये और वह मात्र एक दिन की दवा लेकर वह डाक्टर के पास पहुँच गया। डाक्टर ने चेक किया और पूछा, आपने दवा बराबर खाई थी न और उसने झूठमूट हाँ कह दी। डाक्टर ने कहा कि उसका घाव नहीं भरा है उसे तीन दिन और दवा लेनी होगी। दाँत के दर्द के मारे उसकी बुरी गत बन गयी थी, मरता क्या न करता, मज़बूरी में वह तीन दिन दवा लेकर अपने मित्र के साथ फिर वह डाक्टर के पास पहुँचा और डॉक्टर ने सड़ा हुआ दाँत निकाल दिया। लौटते वक्त उसका मित्र उसे वृद्धाश्रम होते हुए लौटा जहाँ उनकी मुलाक़ात वृद्धाश्रम के संचालक से हुई। वे अत्यन्त बुजुर्ग लेकिन शालीन व्यक्तित्व, ओज़ और तेज़ से भरे हुए थे। जब बुजुर्ग ने उसे देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा। उसने अपने मन की सारी व्यथा उनके सामने उँड़ेल दी। बुजुर्ग ने शाँतचित्त होकर उसकी सारी बातें सुनी, फिर वे बोले सहन शक्ति है, तो बिना फ़ालतू के विचार करे सहो। दर्द और फ़ालतू के विचार दोंनो ख़त्म हो जाएँगे। वरना दर्द तुम्हें जीने नहीं देगा और फ़ालतू के विचार तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे। मन का मूल स्वभाव ही अस्थिरता है और वह तुम्हें तब तक परेशान करता रहेगा जब तक तुम परेशान होते रहोगे। जैसे ही तुम निश्चय करोगे कि तुम चाहे जो हो जाये दर्द बर्दाश्त कर सकते हो तो उसी क्षण दर्द कम होने लगेगा। 
बुजुर्ग ने आगे कहा, मन की अस्थिरता आज एक गंभीर समस्या बन गई है। लोगों की एकाग्रता और संयम जैसे चुक गये हों। कभी सहयोगियों से नहीं बनती, कभी बॉस से, कभी घर पर और कभी पड़ोसियों से खटपट होती रहती है। अगर तुम्हें जीवन का वास्तविक आनंद लेना है तो अपने उपर भरोसा करना सीखो क्योंकि मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। 

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...