Sunday 20 December 2015

मेरी बेटी, प्यारी बेटी

मेरी बेटी, प्यारी बेटी
 
बाबुल की आन और शान है बेटी ,
इस धरा पर मालिक का वरदान
ही बेटी ,
जीवन यदि संगीत है, तो सरगम है बेटी ,
रिश्तो के कानन में भटके इन्सान
की मधुबन सी मुस्कान है बेटी,
जनक की फूलवारी में कभी प्रीत
की क्यारी में ,
रंग और सुगंध का महका गुलबाग
है  बेटी ,
त्याग और स्नेह की सूरत है ,
दया और रिश्तो की मूरत है बेटी ,
कण – कण है कोमल सुंदर, अति-अनूप है बेटी ,
ह्रदय की लकीरो का सच्चा
रूप है बेटी ,
अनुनय , विनय, अनुराग और आकाश है बेटी ,
इस वसुधा की रीत और प्रीत का राग है बेटी ,
माता – पिता के मन का
वंदन है बेटी ,
भाई के ललाट का चंदन
है बेटी ।


Words have Power- My Life Metaphor


Your "Life Vocabulary" decides quality of your life. Vocabulary is a list or collection of the words or phrases of a language, technical fieldetc., or collection of symbols or even non-verbal connotations. "Life Vocabulary" is the collection of all those words, phrases, symbols or non-verbal connotations, signals or impressions which we normally use in our day-to-day life repeatedly to communicate, address or present ourselves in the life-events. We habitually use these words or non-verbal signals/cues again and again to express ourselves. These words or non-verbal cues/ signals represent our internal make-up of our mind or our thought process. Our thoughts and the metabolism are inter-connected.
Have you ever thought??
  • Why some people get angry too easily?
  • Why some people have low self-esteem and poor confidence level?
  • Why some people have extremely low tolerance??
The answer lies in the thought process which the individual normally follows. Let us understand the relationship of our thoughts and our metabolism. The moment a thought appears in the brain, flashes occur and these flashes send thousands of signals to different organs of the body resulting in release of numerous chemicals which we normally call hormones. These chemicals trigger different physiological actions or reactions which is indicated by a behaviour pattern. This process leads to another set of thoughts and the cycle continues.
Words have power. Words can cure, as well they can also injure. Injuring words are spoken whenever we are emotionally charged, irritate, become anxious or impulsive. More often, these words injure a person first who use them before they injure the listeners. The quality of words which we choose to represent ourselves, depend upon our "Life Metaphor". 
  • All of our earlier experiences and assumptions are stored in the mind box. The key of this mind box is called a ‘global metaphor’.
  • This “global metaphor" comes from our belief system.
  • Our thoughts are constantly guided by these metaphors.
  • One metaphor attracts another of similar nature.
  • Metaphors acts as scaffold for anchoring new learning whether GOOD or BAD.
 Metaphors are  thoughts initiators,  catalysts, emotional  chargers,  key to life or

internal manager of the brain. If I own a negative metaphor e.g.  I am critical then I will look everything critically and that too negatively critical. This will messed up my life as well as of all those who are around me.
Our physical, mental and emotional life is guided by the vocabulary we choose for ourselves. Each word chosen by us has deep impact on our emotions, thoughts and actions.  As I said,
the words you choose to communicate are the indicators of your internal representations and that is how you experience the words spoken by others.
Negatively poised words create negative internal emotions & expressions, which guide our actions negatively.  Negative emotions & expressions produce harmful internal chemicals through our body chemistry. The type & frequency of production of such chemicals depend upon your metabolism. Negatively oriented metabolism create disease state in the body.
NEGATIVE METAPHORS
          AGGRESSIVE = I can kill someone.
          CRITICAL = Things will always go wrong.
          PESSIMISTIC = Nothing can improve.
          DISEMPOWERING = I am loosing heart.
          AGITATING = Everybody is selfish.
POSITIVE METAPHORS
          CHARGED = Let me prove others wrong.
          ENERGISING = Yes, I can do it.
          OPTIMISTIC = I can see a ray of hope.
          EMPOWERING = Life is beautiful.
          LIVELY = GOD is always there to help me.
Refrain from owning a negative metaphor. this kills.

Sunday 13 December 2015

खाने से जुड़ी कुछ भ्रांतियाँ- कुछ सच


1. शाम के पांच बजे के बाद कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए या नहीं? यदि वजन पर नियंत्रण रखना चाहती हैं तो पांच नहीं सात बजे केबाद ऐसी चीजें खाने से बचें, जिनमें कार्बोहाइड्रेड होता है। रात के समय हमेशा ऐसी चीजें ही खाएं जो आसानी से पच जाएं।

2. केला और सेब लौह तत्वों से भरपूर हैं। इसलिए वह कटने के बाद भूरे हो जाते हैं।
यह गलतफहमी है। भूरा होने की वजह आयरन नहीं एंजाइम हैं। रंग गहराने के पीछे फलों में मौजूद फिनॉलिक कंपाउंड का ऑक्सीडेशन हैं, ये कंपाउंड हवा में तैरती ऑक्सीजन के संपर्क में आने से रंग बदलते हैं।

3. दूध और उससे बने उत्पाद बचपन बीत जाने के बाद उपयोगी नहीं। दूध और दूध से बने उत्पादों में केवल प्रोटीन ही नहीं आवश्यक एमिनो एसिड, फैटी एसिड तथा कैल्शियम के साथ विटमिन ए, डी तथा मैग्नीशियम, फास्फोरस व पोटेशियम भी होता है। दूध अवश्य लें भले ही वह लो फैट हो।

4. खाने में डाले गए नमक से ज्यादा नुकसानदेह है, ऊपर से नमक डालना? नमक तैयार खाने में पहले से डाला गया हो या ऊपर से मिलाया गया, उसमें मौजूद सोडियम एक समान होता है।

5. आयरन का बेहतर स्त्रोत होने के कारण पालक ही रक्त की कमी से बचाता है।
बहुत सी पत्तेदार सब्जियों में भरपूर आयरन होता है जैसे ब्रॉक्ली में 40 मि.ग्र.,चौलाई-20 मि.ग्र., सरसों में 16-3 मि.ग्र., गाजर की पत्तियों में 18 मि.ग्र. आयरन होता है जबकि पालक में 1.1 मि.ग्र. होता है।

6. सूजी अनाज नहीं है? सूजी मैदा का दानेदार रूप है। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा पॉलिश चावल और मैदे के समान होती है।

7. शुगर फ्री उत्पाद हेल्दी होते हैं। आमतौर पर लोग अकसर शुगर फ्री उत्पादों को लो कैलरी मान डायबिटीज और वजन नियंत्रण केलिए उपयोगी समझते हैं। परंतु ये शुगर फ्री उत्पाद अनेक अनदेखे शुगर स्त्रोतों से युक्त होते हैं। इनका अधिक सेवन स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है।

8. अंडों में कोलेस्ट्रॉल अधिक होता है इसलिए इसे नहीं खाना चाहिए। एक अंडे में 215 मि.ग्रा. कोलेस्ट्रॉल होता है, अकेले एक अंडे की जर्दी में 300 मि.ग्रा. कोलेस्ट्रॉल होता है, लेकिन अंडे में अन्य पौष्टिक तत्वों की बहुलता है। हाल ही में हुई रिसर्च से पता चला कि जो लोग एक अंडा प्रतिदिन खाते हैं उन्हें अंडा न खाने वालों की तुलना में हृदय रोग का खतरा कम होता है।

9. उपवास रखने से शरीर के टॉक्सिन बाहर निकलते हैं। उपवास संतुलित भोजन और अधिक कैलरीज पर नियंत्रण रखता है, लेकिन इस दौरान रिच डाइट, फल, जूस, अधिक मेवे आदि लेने से इसका उलटा भी हो सकता है।

10. चीनी खाने से डायबिटीज होती है। यह सोच कि चीनी न खाने पर डायबिटीज नहीं होगी, गलत है। स्टार्च, फैट, प्रोटीन और चीनी जैसे अधिक कैलरी वाले खाद्य शरीर में इंसुलिन की मात्रा बढ़ाकर डायबिटीज को जन्म देते हैं। जब शरीर कार्बोहाइड्रेट को पचाने में अक्षम हो तभी डायबिटीज होती है।

11. शहद जैसे प्राकृतिक पदार्थ शुगर का विकल्प हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि ये शुगर फ्री तथा कम कैलरी वाले प्राकृतिक स्त्रोत हैं तथा इन्हें रिफाइन भी नहीं किया जाता इसलिए ये नुकसानदेह नहीं। लेकिन 1 चम्मच शहद में 65 कैलरी तथा एक चम्मच शुगर में 46 कैलरी होती है। ग्लाइस्मिक इंडेक्स भी शहद में 87 तथा शुगर में 59 होता है।

12. बिना नमक का खाना तेजी से वजन कम करता है। याद रखें कि पहले तो सोडियम केन रहने पर पानी कम होता है न कि फैट। नर्वस सिस्टम सही ढंग से काम करे, इसके लिए भी सोडियम जरूरी होता है। इसका लेवल डिप्रेशन, स्वभाव परिवर्तन और कमजोरी का कारण होता है।

13. शुगर मूड को प्रभावित करती है। इंसानी दिमाग ऊर्जा के लिए पूरे तौर पर ब्लड शुगर (ग्लूकोज) पर निर्भर रहता है। इसकी कमी से हाइपोग्लीमिया का दौरा तथा कमजोरी, डिप्रेशन, दिमागी गड़बडि़यां हो सकती हैं।

14. रात में मेटाबॉलिज्म सिस्टम धीमा होता है। इसलिए भारी नाश्ता करना चाहिए। सुबह का नाश्ता दिन भर की ऊर्जा के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन इसके लिए भारी की जरूरत नहीं। आप केले या दूध से भी काम चला सकती हैं।

15. मछली खाने के बाद दूध नहीं पीना चाहिए। ऐसा हमेशा नहीं होता। लेकिन कुछ स्थितियों में इसे मान लेना बेहतर होता है।

16. बिना शुगर के फलों के जूस प्राकृतिक व शुगर फ्री होते हैं। ये लो कैलरी जरूर होते हैं, लेकिन इसमें फ्रुकटोस होने के कारण शुगर फ्री नहीं होते।

17. रात को खीरा नहीं खाना चाहिए। ऐसा कुछ नहीं है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

18. खाली पेट नाश्ते में फल नहीं खाने चाहिए। खा सकते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं।

19.रात को दही नहीं खानी चाहिए। विज्ञान इसे नहीं मानता।

20. नीबू-पानी पीने से क्या हड्डियों में दर्द होता है। आम तौर पर ऐसा नहीं होता, हो सकता है किसी को विटमिन सी माफिक नहीं आता।

21. गर्भावस्था में पपीता, अनन्नास नहीं खाने चाहिए। बेबुनियाद बात है। पौष्टिक और सुपाच्य होने के कारण डॉक्टर इसे खाने की सलाह देते हैं।

22. एसिड वाले तथा नमकीन खाद्य एल्युमिनियम के बरतन में रखें। टमेटो सॉस, सांभर तथा चटनी जैसे सिट्रस खाद्य एल्युमिनियम के बरतन में रखने से वह एल्युमिनियम सोख लेता है।

23. खाना लोहे के बरतन में न पकाएं। भारत जैसे देश में जहां एनीमिया एक आम रोग है, वहां ऐसा करना लाभकारी होगा। आयरन कंटेनर में पास्ता सॉस बनाने पर पाया गया कि इसमें आयरन 300 प्रतिशत तक बढ़ा।

24. नॉन स्टिक बर्तनों में खाना बनाना सुरक्षित है। टेफलॉन कोटेड नॉन स्टिक कुक वेयर के अनेक फायदे हैं। इसमें खाना पकाने में तेल कम लगता है और इनको साफ करना भी आसान होता है। लेकिन स्क्रैच पड़ जाने पर यह सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं।

25. मारजरीन मक्खन से बेहतर होता है। मारजरीन हाइड्रोजन की उपस्थिति में हीट और प्रेशर से वेजटेबल ऑयल से बनाया जाता है। इसमें ट्रांस फैटी एसिड खराब कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता तथा अच्छे कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। मक्खन से खराब कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता। एक चम्मच मक्खन में केवल 15 मि.ग्रा. कोलेस्ट्रॉल होता है। मक्खन में कीमती मिनरल, विटामिन और अमीनो एसिड होते हैं जो मार्जिन में नहीं होते।

26. देसी घी खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकर होता है। कोलेस्ट्रॉल और सैचुरेटेड फैट का डर अकसर लोगों को देसी घी से दूर कर देता है। सच यह है कि देसी घी में 65 प्रतिशत सैचुरेटेड और 32 मोनोअनसैचुरेटेड फै टी एसिड होता है। इसमें ऑलिव ऑयल के समान गुण होते हैं।

27. शहद बच्चों के लिए फायदेमंद होता है। शहद बैक्टीरिया फ्रेंडली होता है। इसलिए रॉ शहद बच्चों को नहीं देना चाहिए। इसमें क्लॉस्टिरिडियम बॉटयुलाइनम बैक्टीरिया के कारण कभी-कभी फूड पॉयजनिंग हो जाती है। जो गंभीर बीमारी बन बच्चों के नर्वस सिस्टम पर बुरा असर डालती है।

28. रिफाइंड ऑयल दिल और सेहत दोनों के लिए अच्छा होता है। रिफाइनिंग के दौरान तेज तापमान से आवश्यक फैटी एसिड, प्राकृतिक विटमिन जैसे विटमिन ई और एंटीऑक्सीडेंट तत्व नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में ये नुकसानदेह हो हृदय रोग के खतरे को बढ़ाते हैं।

29. तरल पदार्थ ज्यादा समय के लिए माइक्रोवेव में न गर्म करें। ज्यादा गरम करने से तरल उबलने पर बाहर गिर नुकसान पहुंचा सकता है।

30. मेवे में कोलेस्ट्रॉल ज्यादा होता है। नए शोध बताते हैं कि मेवे के बराबर फायदेमंद अन्य कोई खाद्य नहीं। ये न केवल कोलेस्ट्रॉल फ्री होते हैं बल्कि कोलेस्ट्रॉल को कम भी करते हैं। 20-30 ग्राम मेवे हर रोज खाने से वजन पर नियंत्रण व कईबीमारियों से सुरक्षा मिलती है।

31. खाना खाने के एक घंटे के अंदर स्विमिंग करना गलत है। पहले ऐसा माना जाता था कि खाने के बाद स्विमिंग करने से पेट में क्रैंप्स पड़ते हैं, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। कई तैराक स्विमिंग के दौरान भी खाते-पीते रहते हैं।

32.  जिनके बाल ऑयली हों उन्हें ज्यादा तेल, घी युक्त भोजन नहीं करना चाहिए। बहुत ज्यादा वसायुक्त खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता। लेकिन बालों पर इसका कोई असर नहीं होता।

33.  फ्रेश ऑरेंज जूस फ्रोजन ऑरेंज जूस से बेहतर होता है। यह केवल भ्रांति ही है। शोधकर्ताओं का मानना है कि फ्रोजन ऑरेंज जूस में ताजे ऑरेंज जूस की तुलना में विटमिन सी भरपूर होता है। इतना ही नहीं फ्रोजन होने के कारण इसमें विटमिन की उम्र भी बढ़ जाती है। क्योंकि विटमिन सी बहुत आसानी से नष्ट हो जाता है जबकि प्रोसेस करने पर यह देर तक टिका रहता है।

34. लीवर (कलेजी) बेहद पौष्टिक है। लीवर में बहुत से मिनरल और विटमिन होते हैं, लेकिन इसमें वसा व कोलेस्ट्रॉल भी भरपूर होता है।

35.  हैंगओवर हो तो दही खिलाना चाहिए। नशा उतारने के लिए नीबू पानी पिलाएं।

36. लैटयूस के पत्ते खाने से स्लिम होते हैं। लैट्यूस के पत्तों में भरपूर कैलरीज होती हैं। फिर भी लैटयूस सॉस में बहुत वसा होने के कारण इसे ज्यादा नहीं खाना चाहिए।

37. रसोई का चॉपिंग बोर्ड लकड़ी का होना स्वास्थ्य के लिए हानिकर होता है। बशर्ते सफाई का पूरा ध्यान रखें। बायोलॉजिस्ट मानते हैं कि लकड़ी का बोर्ड चॉपिंग के लिए ठीक रहता है लेकिन उसे अच्छी तरह साफ़ न करने से उसमे कई रोगाणुओं के घर बन जाते हैं ।
38. प्रोसेस्ड फूड खाने से रॉ फूड खाना ज्यादा अच्छा है। ऐसा नहीं है, कुछ चीजों को कच्चा खाना नुकसानदेह है। हालांकि आधुनिक जीवनशैली में प्रोसेस्ड या रिफाइंड खाद्य पदार्थो से बच पाना कठिन है, लेकिन स्वस्थ रहने के लिए इनसे दूरी बनाए रखें। इनमें सैच्युरेटेड और हाइड्रोजेनेटेड फैट्स, साल्ट, शुगर और प्रिजर्वेटिव अधिक होता है।

39. जो खाद्य देखने और सूंघने में प्राकृतिक लगते हैं वे सुरक्षित होते हैं। ऐसा हमेशा नहीं होता। कई बार बहुत से बैक्टीरिया बाहरी तौर पर कोई बदलाव नहीं दिखाते। संदेह होने पर खतरा मोल न लें।

40.  रोज एक सेब खाने से रोगों को अपने से दूर रख सकते हैं। इसमें संदेह नहीं कि सेब बेहतरीन फल है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा विटमिन नहीं होते।

41. वजन नियंत्रण के लिए खाने में केवल फलों पर निर्भर रहना ठीक होता है। यह ठीक नहीं होगा। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित आहार जरूरी है। फलों के अलावा जो अतिरिक्त पोषण हमें अन्य खाद्यों से मिलता है, वह भी जरूरी है।

42. मोनोडाइट यानी एक ही प्रकार के खाने पर जोर देना चाहिए। सीमित खाना सेहत केलिए अच्छा रहता है। यदि फल खा रही हैं तो फल खाएं। दूसरे समय में सैलेड और वेजटेबल खाएं और अन्य समय में दालें और चपाती खाएं।

43. किसी फल या सब्जी की जगह उसका सप्लीमेंट लें। इस गलतफहमी में न रहें। फल और सब्जियों में अपने फाइटोकेमिकल्स होते हैं। जैसे ब्रॉक्ली में अकेले ही 10,000 फाइटोकेमिकल्स होते हैं। फाइटोकेमिकल्स के सुरक्षित माघ्यम प्राकृतिक खाद्य होते हैं, न कि सप्लीमेंट।

 44. कुछ वंशानुगत कारणों से ईटिंग डिसऑर्डर होता है। हो सकता है आप अपने किसी नजदीकी रिश्तेदार के ईटिंग डिसऑर्डर की वजह से खुद भी इसके शिकार हों। इसमें केवल खान-पान की समस्या ही नहीं स्वभाव और व्यवहारगत दिक्कतें भी हो सकती हैं।

 45. कॉफी का सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। यह विवादास्पद विषय है, इस पर अभी भी शोध चल रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है किएक दिन में चार कप से अधिक कॉफी पीने से रक्तचाप थोड़ा बढ़ जाता है।

तनाव को रास्ता देता एक और कारण- मोबाइल फोन


अक्सर आपने युवाओं को फोन से चिपके देखा होगा। उन्हें देखते ही आपके मन में एक ही ख्याल आता है कि बहुत ज्यादा मोबाइल फोन पर चिपके रहने से स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हो भी सकता है, और नहीं भी। हाल ही में अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने कुछ दिलचस्प तथ्यों को खोज निकाला है, जो यह दिखाने की कोशिश करता है कि मोबाइल दिमाग को चुश्त करता है।

 शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला मोबाइल फोन दरअसल दिमाग को अलग-अलग रूपों में प्रभावित करता है। अध्ययन के अनुसार, जो लोग मोबाइल से लंबे समय तक बात करते रहते हैं उनके दिमाग अघिक सक्रिय हो जाता है। इस बात को पुख्ता करने के लिए 47 वर्ष तक के लोगों पर लगभग एक साल तक परीक्षण किया गया। मोबाइल को प्रतिभागियों के दोनों कानों पर कुछ-कुछ समय के लिए प्रयोग करवाया गया। बारी-बारी से दोनों साइड्स पर 50-50 मिनट मोबाइल का प्रयोग करवाया गया। इनमें से कुछ ऐसे प्रतिभागी भी थे जो मोबाइल फोन का प्रयोग करना नहीं जानते थे।
ये शोध के परिणाम पीईटी (पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा जांचे गए। जिसमें पाया गया कि मनुष्य के दायी तरफ टेम्पोनरल पोल के मोबाइल के एंटीना के संपर्क में आते ही ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाती है। हालांकि ये अभी तक साबित नहीं हुआ है कि ग्लू‍कोज का बढ़ना खतरनाक है या नहीं। प्रमाणित सबूतों में ये बात साफ जाहिर है कि ग्लू‍कोज मोबाइल एंटीना का टेम्पोपरल पोल के संपर्क में आते ही बढ़ता है। ड्यूक चिकित्सा केंद्र के जैविक मनोचिकित्सक मुरली दुरईस्वामी का कहना है कि मनुष्‍य में बढ़ने वाले इस ग्लू़कोज से फायदा पहुंचता है या नहीं लेकिन इसका नुकसान कुछ नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मौकों पर इस ग्लूकोज के बढ़ने से मनुष्य का रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और मनुष्य अधिक एनर्जेटिक हो जाता है तथा उसकी कार्यक्षमता और प्रदर्शन पहले से अधिक अच्छा दिखाई पड़ने लगता है।
इसका दूसरा पक्ष भी देखना जरूरी है। मोबाइल का प्रयोग पिछले कुछ वर्षों में कई गुना हो गया है। मोबाइल फोन elctro-magnetic ऊर्जा को उसके microwave फॉर्म में use करते है। मोबाइल radiation से होने वाले हैल्थ issues पर लगातार रिसर्च हो रही है।  A 2007 assessment published by the European Commission Scientific Committee on Emerging and Newly Identified Health Risks (SCENIHR) concludes that the three lines of evidence, viz. animal, in vitro, and epidemiological studies, indicate that "exposure to RF fields is unlikely to lead to an increase in cancer in humans".

मोबाइल के लगातार प्रयोग से दिमाग के हिस्से धीरे धीरे सुन्न पड़ना शुरू हो जाते हैं। आगे चलकर ध्यान उचटना, मन ना लगना, सिर में दर्द रहना जैसे symptom उभरना शुरू हो जाते हैं। मोबाइल से निकलने वाली तरंगे सोचने की ताकत कम करती है। इसीलिए ये कहना मुश्किल है कि मोबाइल का प्रयोग दिमाग को तेज करता है।
 हालांकि देवदार-सिनाई मेडिकल सेंटर लॉस एंजिल्स के चेयरमेन केंट ब्लैक ने इस मामले में कुछ चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं। ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाने से मस्तिष्क में अल्जांइमर जैसी बीमारियों के होने का खतरा रहता है। हालांकि इस पर अभी और अनुसंधान जारी है। वैसे जब तक इसके नतीजे नहीं आ जाते तब तक आप अपने प्यारे गैजेट्स को सावधानी से प्रयोग करें।

अवसाद पर ध्यान देना क्यू जरूरी है।


 अवसाद और उसका शरीर पर प्रभाव
अवसाद ऐसी बीमारी है जिसके कारण बहुत से हो सकते हैं। यह कभी भी किसी एक कारण से नहीं होता है बल्कि कई कारणों से मिलकर होता है जैसे  केमिकल, भौतिक एवं मानसिक भारत में लगभग एक मिलियन लोग अवसाद के शिकार हैं। यह मानव जीवन को किसी भी प्रकार से प्रभावित कर सकता है। वो लोग जो डिप्रेशन से परेशान होते हैं उनके पर्सनल और प्रोफेशनल रिश्ते भी इस बीमारी के प्रभाव से नहीं बच पाते हैं।

अवसाद मानव जीवन के हर भाग को प्रभावित करता है जैसे फिज़ीक, बाडी, मूड, लाइफस्टाइल और सोचने समझने की शक्ति।
अवसाद का मतलब होता है कुण्ठा, तनाव, आत्महत्या की इच्छा होना। अवसाद यानी डिप्रेशन मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है, इसका असर स्‍वास्‍थ्‍य पर भी पड़ता है और व्यक्ति के मन में अजीब-अजीब से ख्या‍ल घर करने लगते हैं। वह चीजों से डरने और घबराने लगता है। आइए जानें कैसे खतरनाक है अवसाद।

 §  अवसाद के चलते व्यक्ति का न सिर्फ मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बल्कि शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य भी बिगड़ने लगता है।

§  अवसाद में रहते हुए व्यक्ति की आत्महत्या की इच्छा प्रबल होने लगती है।

§  व्यक्ति के मन में हीनभावना होना, कुण्ठा पनपना, अपने को दूसरों से कम आंकना, तनाव लेना सभी अवसाद के लक्षण है।

§  व्यक्ति अवसाद के कारण अपने काम पर सही तरह से फोकस नहीं कर पाता।

§  कुछ समय पहले के आंकड़ो पर गौर करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया के ज्यादातर बड़े शहरों में डिप्रेशन की समस्या का बहुत तेजी से विस्तार हुआ है। भारत जैसे विकासशील देशों में 10 पुरुषों में से एक व 5 महिलाओं में से एक अपनी जिंदगी के किसी न किसी पड़ाव पर डिप्रेशन का शिकार बनते हैं।

§  कोई व्यक्ति अवसाद से ग्रसित रहता है तो उसे डिमेंशिया होने की आशंका अधिक बढ़ जाती है।

§  अवसाद से हृदय और मस्तिष्क को भी भारी खतरा उत्पन्न हो सकता है।

§  अवसाद और मधुमेह से पीड़ित लोगों में दिल से जुड़ी बीमारियां, अंधापन और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।

§  डिप्रेशन से हार्ट डिज़ीज जैसे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

§  इम्यून सिस्टम पर अतिरिक्त असर पड़ता है।

§  मानसिक बीमारी से हृदय संबंधी बीमारी के चलते मौत का खतरा 75 साल की उम्र तक दो गुना अधिक होता है।

§  अवसाद से व्यक्ति किसी पर जल्दी से भरोसा नहीं कर पाता।
§  वह अधिक गुस्सेवाला और चिड़चिड़ा हो जाता है।

डिप्रेशन से प्रभावित लोगों के आम लक्षणः
§  उस समय जीवन से निराश होना जबकी जीवन में जीने के लिए बहुत कुछ हो।
§  आनन्द वाली किसी भी चीज़ में आनन्द ना उठा पाना।
§  हमेशा थका थका सा महसूस करना।
§  किसी भी काम का निर्णय ना ले पाना।
§  ज़िन्दगी के लिए एक उलझा हुआ नज़रिया होना।
§  बिना कारण वज़न का बढ़ना या कम होना।
§  खान पान की आदतों में बदलाव।
§  आत्महत्या के उपाय करना और आत्महत्या के बारे में सोचना जिसका अर्थ है, कि इससे व्यक्ति के सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते प्रभावित होते हैं।
§  डिप्रेशन दुख की तुलना में कहीं आधिक समय तक रहता है। वो लोग जो डिप्रेशन से प्रभावित होते हैं उनके काम नार्मल लोगों की तुलना में बहुत कम होते हैं। डिप्रेशन में रहने वाले लोग दुखी और निराश होते हैं, लेकिन वह बस दुखी ही नहीं होते बल्कि बिना किसी बड़े कारण के जीवन से हार जाते हैं।
§  डिप्रेशन पढ़ाई, इन्कम या मैराइटल स्टेटस से किसी भी प्रकार से नहीं जुडा होता है।
 पुरूषों की तुलना में महिलाएं अवसाद से अधिक प्रभावित होती हैं। कुछ शोधकर्ता ऐसा मानते हैं कि अवसाद से वो महिलाएं प्रभावित होती हैं जिनका कोई इतिहास होता है जैसे कि वो पहले कभी सेक्सुअली एब्यूज़ हुई हों या फिर उन्हें किसी प्रकार की इकानामिक परेशानी हुई हो।

कई दूसरी बीमारियों की तरह अवसाद भी एक अनुवांशिक बीमारी है। अवसाद की एवरेज एज 20 वर्ष से उपर होती हैं। कुछ फिज़ीशियन ऐसा मानते हैं कि ड्रिप्रेशन या अवसाद दिमाग में मौजूद कैंमिकल्स में हुई गड़बड़ी से होता है इसलिए वो एण्टी डिप्रेसेंट दवाएं देते हैं । लेकिन अभी तक ऐसा कोई टेस्ट सामने नहीं आया है, जिसकी मदद से इन कैमिकल्स का लेवल पता किया जा सके। इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं मिला है कि मूड बदलने से जीवन के अनुभव बदलते हैं या इन अनुभवों से मूड बदलता है।
अवसाद शारीरिक परेशानियों से भी जुड़ा होता है जैसे फिज़िकल ट्रामा या हार्मोन में होने वाला बदलाव। डिप्रेशन या अवसाद के मरीज़ को अपना शारीरिक टेस्ट भी करा लेना चाहिए।
डिप्रेशन के कुछ ऐसे लक्षण जिनमें प्रोफेशनल ट्रीटमेंट की तुरन्त आवश्यकता होती है:
  • मरने या आत्महत्या की कोशिश करना। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, ऐसी स्थिति में प्रोफेशनल थेरेपिस्ट से सम्पर्क करना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
  • जब डिप्रेशन के लक्षण लम्बे समय तक दिखें।
  • आपके काम करने की शक्ति दिन पर दिन क्षिण होती जा रही है।
  • आप दुनिया से कटते जा रहे हैं।
  • डिप्रेशन का इलाज सम्भव है। इस बीमारी में व्यक्ति का शारीरिक से ज़्यादा मानसिक रूप से स्वस्थ होना ज़रूरी होता है। ऐसी स्थिति में ऐसा मित्र बनायें जो आपकी बातों को समझ सके और अकेले कम से कम रहने की कोशिश करें।

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...