Sunday 5 March 2023

शरीर भी बोलता है... 😊

 १४ जनवरी के ब्लॉग में मैंने आपसे कहा था कि अपने शरीर से बात करने का तरीका बताऊंगा।  लिखने के बाद विषय पर शोध करने में कुछ समय लगा और असल समय हर्बल मसाज़ ऑइल और नीम टूथ एंड ग़म ऑइल के शोध में लगा।  इन दोनों शोधों ने बहुत से नए आयाम दिए हैं जो आपके लिए भी नए विचार, नयी दिशा और नए उपक्रम पैदा करने में मदद करेगा। पहले मैं "अपने से बात" करने के तरीकों पर चर्चा करूँगा और दोनों ऑयल्स के शोध पर आये नतीजों जो निश्चित रूप से बहुत उत्साहवर्धक हैं पर, अगले ब्लॉग में लिखूँगा।  

अमूमन जब हम किसी से मिलते है. तो सामान्य शिष्टाचार में पूछ लेते हैं भाई कैसे हो ? और उसका सीधा सा उत्तर होता है कि मैं अच्छा हूँ, स्वस्थ हूँ, मस्त हूँ या all good. इसे बोलने के पहले आप अपने अंदर जरूर टटोल लेते हैं कि वास्तव में अच्छा तो हूँ अन्यथा आप कह देते हैं, यार मौसम का असर है कुछ तबियत नरम गरम चल रही है।  यानी हम अपने आप से बात ज़रूर करते हैं और ये हमारी आदत में शुमार होता है। हमारा शऱीर भी हमसे कुछ न कुछ कहता है, हम नहीं सुनते हैं तो ज़ोर ज़ोर से कहता है, फिर भी नहीं सुनते हैं तो चीख़ता है और तब तक चीख़ता है जब तक हम सुन ना लें क्यूँकि उसको हमारे सिस्टम को चलायमान रखना है। जैसे हमारा सिस्टम यानि शऱीर जब dehydrate होता है तो हमसे कहता है पानी पी लो, गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, बार बार ओंठो पर जीभ फिराने का मन करता है। फिर भी हम शरीर को hyderate नहीं करते हैं तो चक्कर आने लगते हैं और हम नीम बेहोशी की तरफ़ जाने लगते हैं यानि पानी पीना हमारी मज़बूरी हो जाती है।

ये बात अलहदा है की शरीर को केवल पानी की जरुरत थी और हमने बर्गर और कोल्ड ड्रिंक ले लिया।  ये प्यास तो बुझा देगा लेकिन बहुत कुछ अवाँछनीय भी कर देगा। जैसे बहुत ज्यादा प्यास की स्तिथि में आंतें सिकुड़ जाती हैं और शरीर डिफेन्स मोड में चला जाता है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सके और शरीर में खून को उसके नार्मल लेवल में रख सके ताकि सारे अंग नार्मल काम करते रहें। ऐसे में जब अचानक डाइजेस्टिव सिस्टम में बर्गर और कोल्ड ड्रिंक पहुँच जाता है तो दिमाग़ का डिफेन्स मेकनिज़्म फायर फाइटिंग मोड में चला जाता है क्युकी सिकुड़ी हुई आंते इतना माल अचानक नहीं ले सकतीं और ढेर सारा ऐसिडिक डिस्चार्ज होता है।  इसीलिए आपने देखा होगा कि ऐसा खाने या पीने के बाद आपको अक्सर एसिडिटी हो जाती है यानि शऱीर फिर कहता है अब कुछ मत लेना।  पर हम फिर भी शऱीर की नहीं सुनते और सोडा या कुछ इसी तरह का कोई इंतज़ाम करके पेट को शांत करते हैं ताकि शाम की पार्टी के लिए तैयार हो सकें। शाम को भी पेट में कुछ न कुछ हैवी चला जाता है और पेट फिर से इसी मशक्कत में लग जाता है कि अब इतने माल असबाब को ठिकाने कैसे लगाया जाय। पेट की ओवरलोडिंग का असर लीवर, किडनी और गाल ब्लैडर पर होता है।  

हमारा शरीर ईश्वर की दी हुई वो मशीन है जिसमे हरकुछ करने की संभावनाएं छुपी हुई हैं। सामान्य क्रिया से लेकर गूढ़ आध्यात्म तक की दौड़ इस शरीर के माध्यम से पूरी की जा सकती है पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है की हम अपने शरीर की सुनें। शरीर की सुनने के लिए अपने शरीर को समझना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। हर व्यक्ति की शारीरिक संरचना लगभग एक जैसी है; अस्थियाँ, जोड़, नस नाड़ियाँ, बाहरी और भीतरी अवयवों का स्वरूप एवं गठन एक सा है। क्रिया कलाप में भी समानता होती है। काया की व्यवस्था बड़ी सटीक और सुव्यवस्थित है और इसकी व्यवस्था में जरा सी चूक होने पर शरीर इशारे करता है, आवाज़ देता है, चीखता है। 😩 जब बार बार उसकी बातों को अनसुना किया जाता है, तो शरीर दुर्बलता, रुग्णता के चंगुल में फँस कर अनेकानेक पीड़ायें सहने के लिए बाध्य हो जाता है। और यदि इसके इशारे और भाषा समझ आने लगी तो यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि आप असंभव को भी संभव कर सकते हैं। 

हम यहाँ हमारे शरीर के दो महत्वपूर्ण सिस्टम और उनसे संवाद करने के तरीक़े को समझेंगे; पहला है हमारा ब्रीदिंग सिस्टम या श्वसन तंत्र और दूसरा है हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम या पाचन तंत्र। हम एक मिनट में १८-२० बार साँस लेते हैं और हमें मालूम है कि साँस है तो आस है और शरीर की सारी व्यवस्थाओं को चलाने का ज़िम्मा भी इन्हीं साँसों का है। प्रत्येक साँस के साथ ३००-५०० सीसी हवा शुद्ध होकर फेफड़ों को आक्सीजन देती है जो रक्त में मिलकर सारा मेटाबॉलिक सिस्टम कंट्रोल करती है। साँस की गहराई और ली गई आक्सीजन ही शरीर में बहने वाले खून के शुद्धीकरण के लिए ज़िम्मेदार है। उथली साँस पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुँचा पाती और यदि हवा अशुद्ध हुई या हवा में ही पर्याप्त आक्सीजन न हुई या लंबे समय तक दूषित वातावरण में रहना पड़े तो शरीर तुरंत इशारे करता है। गहरी साँस लेने की ज़रूरत महसूस होती है, गले में ख़राश लगती है, खांसी आती है, प्यास लगती है, आँखों में जलन होती है, त्वचा में रूखापन आता है, आलस्य और प्रमाद आता है, कमजोरी आती है और शरीर बार बार बीमार होता है। अब इस भाषा को समझना और तुरंत करेक्ट करना नितांत आवश्यक होता है। 

दूसरा महत्वपूर्ण सिस्टम है हमारा पाचन तंत्र। आमतौर पर भूख़ या प्यास लगने पर या ज़्यादा खा लेने पर आमाशय एक्टिव हो जाता है उसमें से साढ़े तीन करोड़ पाचक रस निकलने के लिए तैयार रहते हैं। यही रस भोजन या पानी के साथ मिलकर लीवर, किडनी और गॉल ब्लेडर से गुजरकर खून और दूसरे तत्व बनाता है। भूख या प्यास लगने पर कुछ खाने या पीने की इच्छा होती है, इसके अलावा बहुत से सिम्पटम्स होते हैं जिन्हें कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए। जैसे गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, डकार आती हैं, आलस आता है, बार बार सिरदर्द होता है, नींद बहुत आती है या टूट टूट कर आती है, मीठा खाने की ज़्यादा इच्छा होती है, क़ब्ज़ रहता है, भूख ज़्यादा लगती है या हम ज़रूरत से ज़्यादा खा लेते हैं। हमारा पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील होता है और एक बार का खाया या पिया पचने के लिए समय माँगता है। शरीर की ९०% बीमारियों का कारण पेट होता है इसलिए खाने के मामले सबसे ज़्यादा सावधानी की ज़रूरत होती है।

शरीर की भाषा सीखना एक ऐसी कला है जो हमारे जीवन को न केवल व्यवस्थित कर देती है वरन हमें वो ताक़त देती है जिससे हम उन क्षमताओं को भी हासिल कर सकते हैं, विकसित कर सकते हैं जिन्हें अतीन्द्रिय कहा जाता है। 

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...