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Sunday 12 August 2018

ज़िंदगी की रफ़्तार पर कुछ पंक्तियाँ

आहिस्ता चल अब ऐ ज़िंदगी,
जीवन की इबारत अभी बाक़ी है,
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है;

रफ़्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए,
रूठों को मनाना बाक़ी है,
छुटो को मिलाना बाक़ी है;

कुछ रिश्ते बनकर जुड़ते गए,
कुछ जुड़े हुए थे, छुट गए,
उन सब मीठे मीठे रिश्तों के,
जोड़ों को जमाना बाकी है;

जीवन की सहज पहेली को,
अब क्या सुलझाना बाक़ी है?
आहिस्ता चल ऐ मेरी ज़िंदगी,
जीवन का गीत अभी बा
क़ी  है.

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