एक प्रेरणादायी घटना
यह घटना मेरे मित्र के साथ हुई थी। एक व्यावहारिकता का संदेश इसमें छुपा है जो हमें भी उचित आचरण की सीख दे सकता है।हुआ यूँ कि मेरे मित्र की बुजुर्ग दादी का निधन हुआ तो उन्होंने सभी पट्टीदारों, इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों को मृत्योपरांत आयोजन में आमंत्रित किया।
आयोजन के शिष्टाचार के तहत लोग हवन में शामिल हो रहे थे और प्रसाद ग्रहण कर विदा ले रहे थे। मेरे मित्र के एक रिश्तेदार दिल्ली से सपरिवार पधारे थे और कुछ नागपुर से आये थे। जब अंदर हवन चल रहा था तो ये सारे रिश्तेदार बाहर बैठकर ज़ोर ज़ोर से राजनीति पर बहस कर रहे थे। अंदर मित्र के परिवार भी पशोपेश में थे कि क्या बोलें ? चूँकि उनकी वापसी देर रात की ट्रेन से थी सो हवन समाप्त होते ही उनके परिवार वालों ने उस कमरे पर क़ब्ज़ा कर लिया; वहीं पर हा हा ही ही, वहीं पर भोजन, वहीं पर यह पूछताछ कि आपके फ़लाँ नातेदार क्यूँ नहीं आये वग़ैरा वग़ैरा। मेरा मित्र अंदर से बहुत आहत था, पर समय की मर्यादा को देख कर चुप था। मेरे मित्र के पड़ोसी बुजुर्ग अंकल से ये सब देखा न गया, उन्होंने मेरे मित्र से अनुमति माँगी कि यदि उसे आपत्ति न हो तो वो इन लोगों से कुछ बात करना चाहता हूँ। वो बुजुर्ग बड़ी शालीनता से अंदर आये और उन रिश्तेदारों को संबोधित करते हुए कहा, “मैं आपको नहीं जानता हूँ लेकिन कुछ बातें मुझे खटक रहीं हैं, सो टोक रहा हूँ कृपया अन्यथा न लें। आप सब एक बुजुर्ग के मृत्योपरांत प्रकरण में शामिल हो रहे हैं, आपकी तरह अन्य लोग भी शामिल हैं, पर समय की मर्यादा और गरिमा को देखते हुए उचित आचरण और गंभीरता बनाये रखने से दुःखी परिवार को भी संबल मिलेगा। आपकी रात की ट्रेन थी तो किसी होटल में कमरा ले लेते उन रिश्तेदारों को अपनी भूल का अहसास हुआ और वो इस व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हुए होटल में शिफ़्ट हो गये”।बात बहुत अहम है, कभी कभी आवेश में हम ऐसे आयोजन की मर्यादा और गरिमा भूल जाते हैं और ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जिससे सामने वाले को बहुत चोट पहुँचती है। समयकाल को देखते हुए उचित आचरण रिश्तों में अनावश्यक खटास पैदा होने से बचाता है।