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Sunday 20 November 2022

मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी

 ब्लॉग तो मैं काफ़ी समय से लिख रहा हूँ पर नियमित कभी नहीं था, बस शौक के लिखा लिखता था। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का ब्लॉग देखा जो उन्होंने मेरे तेल के विषय में फ़ीडबैक दिया था। इसे ज़रुर पढियेगा।  इनका लेखन सहज है, बहुत पैशन के साथ लिखा गया है और पढ़ने में जो आनंद आता है वो तो अवर्णनीय है। 

https://gyandutt.com/2022/11/18/piyush-verma-oils/ 

फीडबैक का असर ये हुआ कि उनके नियमित पाठकों से कई लोगों ने तेल की माँग की और मैंने उनकी मांग का सम्मान किया। मैंने जब ज्ञानदत्त जी का ब्लॉग पढ़ा तो सच में समझ में आया कि अभिव्यक्ति क्या होती है ?  अत्यंत सहज भाव से उन्होंने जो भी लिखा है, भरपूर मनोयोग से और पूरे आनंद के साथ।  उनकी अभिव्यक्ति को सौ सौ सलाम।

अब मैं अपनी बात पर आता हूँ। मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी। और ये बताना भी इसीलिए जरुरी है कि कुछ लोग बिना सोचे समझे तात्कालिक प्रतिक्रिया देने में निपुण होते हैं और ये वही लोग हैं जो किसी भी माहौल को बिगाड़ सकते हैं। हालाँकि बुद्धिमानों ने कहा है कि ऐसे लोगों की चिंता न करते हुए अपने उद्देश्य की पूर्ति में व्यक्ति को निरत रहना चाहिए, पर मेरा मानना है कि ऐसे लोगो को अपनी झोपड़ी के फूस तक आने का कभी मौका नहीं देना चाहिए। हाँ, तो मैं आपसे अपने उस तेल के विषय में जानकारी साझा करना चाहता था जिसके बारे में आदरणीय ज्ञान दत्त जी ने फीड बैक दिया था।

हमारे बाबूजी यानि स्व श्री शंकर दयाल वर्मा कृषि वैज्ञानिक थे और घर पर बाग बागवानी एक नियमित व्यवस्था थी। उस बागवानी में काम करना हम सब बच्चों का शौक भी था और कभी सज़ा भी। क्योंकि जब कभी शैतानी होती थी तो बतौर सज़ा क्यारी की गुढ़ाई करना, निंदाई करना, सिंचाई करना, कचरा साफ़ करना एक नियमित क्रम था। इसी नाते जड़ी बूटियाँ ढूँढना और जंगल से लाना भी उसी क्रम में शामिल था। हमारा घर फार्म्स में होता था जो कई सौ एकड़ में फैला होता था। बाबूजी को घर पर आयुर्वेदिक औषधीय तैयार करने का शौक था। और घर पर बहुत से नुस्खे तैयार  होते थे जिन्हे हम आज भी इस्तेमाल करते हैं।

Babuji and Amma
ये जो मालिश का तेल है, उसे हमारे पारिवारिक वैद्यजी ने उन्हें दिया था और हम यानि बच्चे जड़ी बूटियां साफ़ करने, कूटने और मिलाने का काम करते थे जो सब बाबूजी के व्यक्तिगत निरीक्षण में होता था।  तेल बनाकर उसे धूप में कई दिन रखा जाता था और हम सबकी मालिश उससे होती थी। उसके अलावा दाँत का तेल, नाभि का तेल,बालों का तेल, दाँत का मंजन, आँखों का सुरमा भी बनता था जिसे यदा कदा इस्तेमाल किया जाता था।  

मैं शिक्षा की दृष्टि से तो माइनिंग इंजीनियर हूँ लेकिन कृषि और बागवानी से कभी भी दूर नहीं जा पाया। माइनिंग से भी शुरू के 6-7  साल के बाद दूर होता गया।  क्योंकि पहले मैं कोयला खदान में था, फिर पॉलिटेक्निक में माइनिंग विभाग में विभागाध्यक्ष रहा और वहाँ से राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान संस्थान में आ गया जिसने मेरी सीखने की प्रवृति को याज़्ज़ीवन जीवित रखा। इस संस्थान में मैंने तनाव प्रबंधन विषय पर अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ स्पीलबर्गर के सानिध्य एवं सहयोग से अपनी पी एच डी संपन्न की और उसके पश्चात लगभग 22 वर्षों तक तनाव प्रबंधन, शरीर के भौतिक, मानसिक और भावनात्मक पक्ष के प्रबंधन, कॉन्ससियनेस, न्यूरो पलास्टिसिटी जैसे विषयों पर शोध और प्रशिक्षण करता रहा। अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीने की ख्वाहिश के कारण लगभग 40 वर्षों की सेवा के उपरांत स्वैक्षिक सेवानिवृति लेकर 3 वर्ष पूर्व आर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की। 

एक दिन हमारे फार्म में मेरे पारिवारिक मित्र रवि जी सपरिवार आये थे तब उन्होंने बताया की उनकी श्रीमती जी यानि प्रोफेसर रेखा जी जोड़ो के दर्द और पैर दर्द से कई वर्षों से परेशान हैं।  चूँकि जोड़ों की मालिश का तेल घर पर उपलब्ध था सो मैंने उनको दे दिया और बात आई गयी हो गयी। काफ़ी दिनों के बाद उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार को वो तेल चाहिए।  और तब पता चला कि प्रोफेसर रेखा को उससे बहुत फ़ायदा हुआ और अब उनके पैरों में कोई सूजन नहीं आती और वो 4 -5 किलोमीटर आराम से घूम आती हैं। रवि जी की प्रेरणा से आज मालिश का तेल सौ से भी ज्यादा लोगों ने इस्तेमाल किया।

 जो फार्मूला आदरणीय बाबूजी इस्तेमाल करते थे, उसे सरसों और नारियल के तेल में 16 जड़ी बूटियों से तैयार  किया गया था। शनै: शनै: उपयोग, अनुभव और परीक्षण के आधार पर बनाने की विधियों, जड़ी बूटियों में बदलाव आता गया और आज  इसे Centre for Research in Social Health में जैतून और बादाम के तेल में 28 से भी ज्यादा जड़ी बूटियों को मिलकर विज्ञान सम्मत विधि द्वारा व्यक्तिगत निगरानी में तैयार किया जाता है। बादाम तेल, ज़ैतून का तेल, नारियल का तेल के बेस में इन जड़ी बूटियों को मिलाया जाता है। मुख्य सामग्री है मैथी दाना, अकरकरा मूल, कौंच बीज, अश्वगंधा जड़, पीपल मूल, इत्यादि। इसके अलावा कुछ ताज़ी पत्तियाँ भी मिलाई जाती है। इसमें किसी भी प्रकार का रसायन या केमिकल नहीं मिलाया जाता। और पूरी प्रक्रिया में तापमान का विशेष ध्यान रखा जाता है।   तेल को बनाने की प्रक्रिया थोड़ी कठिन है क्योंकि अलग अलग चीज़ों के शोधन और भावना की विधि अलग है। जिसमें मेरे आयुर्वेद जानने वाले मित्र मेरी मदद करते हैं।कई  लोगों पर लगातार इस तेल के उपयोग का निरीक्षण किया गया और यह पाया कि यह तेल जोड़ों के दर्द, ऐंठन, मांसपेशियों की जकड़न, घुटने, कमर और पीठ के दर्द में अचूक कारगर है। घुटने के दर्द में इसके प्रयोग के अचूक परिणाम मिले हैं। पूरे शरीर में लगातार मालिश विशेषकर गर्दन, रीढ़ की हड्डी और हाथ पैर के तलुओं में तेल को रगड़कर सुखाने से शरीर में खून के दौड़ान बढ़ जाती है।   

एक जानकारी और साझा करना चाहूंगा।  हमारे घर में नीम, तुलसी, हरिद्रा, काली मिर्च, लौंग इत्यादि मिलकर गोली बनाई जाती थी जो हम सब मौसम के ट्रांजीशन के समय लेते थे यानि बरसात शुरू होने पहले और बाद या गर्मी शुरू होने के पहले और बाद में या सर्दियाँ शुरू होने के पहले और बाद में; तीन दिन लगातार खाली पेट। ये नीम की गोली दी जाती थी शरीर की इम्युनिटी बनाने के लिए। इसका सकारात्मक नतीजा हमे कोविड के दौरान दिखा। परिवार की जिन लोगों ने नीम की गोली का सेवन नियमित किया था उन्हें कोविड से परेशानी नहीं हुई। 

दांत का तेल भी नैसर्गिक जड़ी बूटियों और घटकों से बनाया जाता है।  इसके भी कई सकारात्मक परिणाम मिले और कई लोगों के साथ साथ, ज्ञान दत्त जी ने उनकी पुष्टि भी की है। 

इस तेल की कहानी बताने का अभिप्राय यही है कि अनर्गल बोलने वाले पहले सोच लें, समझ लें, फिर बोलें। हम स्वयं इन घर की बनी औषधियों का वर्षों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं और उसके प्रभाव का अनुभव भी हो रहा है। चाहे वो घर का बना तेल हो, त्रिफला हो, या गिलोय अर्जुन की छाल का चूर्ण, बालों में लगाए जाने वाला तेल हो, या आफ्टर-बाथ आयल, या लिप और फुट बाम हो। मेरी इस यात्रा में मेरे पूरे परिवार का भरपूर सहयोग मिलता है, मार्केटिंग स्किल्स मुझे नहीं आती सो मेरा बेटा सिखा रहा है। किचन की जानकारियाँ मुझे मेरी पत्नी से मिलती हैं। 

मैं अपने इस ब्लॉग से आदरणीय रवि जी और ज्ञान दत्त जी का धन्यवाद करना चाहूंगा कि उनकी प्रेरणा, उनका स्नेह और मोटिवेशन मेरे लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। 

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

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