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Saturday 14 January 2023

जड़ी बूटियों के साथ नवाचार का अनुभव

मैंने अपने 20 NOV 2022 के ब्लॉग में मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी में विस्तार से अपनी नयी यात्रा के बारे में लिखा था। हालाँकि मेरे लेखन के लिए ज्ञानदत्त जी का फीडबैक जो उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा था, आधार और मोटिवेशन का बहुत बड़ा श्रोत रहा। उनकी सहजता और अभिव्यक्ति का तो मैं कायल हो गया हूँ। रवि जी का लेखन भी बड़ा प्रेरणास्पद है। लेकिन अब की बार ज्ञानदत्त जी ने अपने ब्लॉग में मसाज वाले तेल के इस्तेमाल का काफी विस्तार से अनुभव शेयर किया है। 
https://gyandutt.com/2023/01/11/piyush-verma-massage-oil-feedback/
उनके लेखन में जो विश्लेषण की निपुणता देखने को मिलती है उससे उनकी सोच और लाइफ को देखने का नजरिया समझ में आता है। इस ब्लॉग ने मुझे बहुत कुछ बताया जो शायद गूगल फॉर्म में भरे फीडबैक से कभी नहीं मिल सकता। एक बात जो समझ में आयी कि घुटनों के दर्द को आप अपनी लाइफ का नार्मल मान कर नहीं चल सकते। हाँ, इतना अवश्य है कि जैसे ही आप अपने दर्द के साथ डॉक्टर के पास जायेंगे तो वह आपको पैन-किलर्स, कुछ ऑइंटमेंट या सेंक के साथ विदा कर देगा लेकिन इतना जरूर कह देगा कि दवा के सहारे ज्यादा देर नहीं रखा जा सकता है, आपको knee रिप्लेसमेंट के लिए तैयार होना पड़ेगा। मैंने अपने कार्यकाल के दौरान बहुत से मित्रों को knee रिप्लेसमेंट का ऑपरेशन और उसके बाद होने वाली लंबी तकलीफों को देखा था। और जैसा ज्ञानदत्त जी ने शेयर किया है,उन्हें भी कमोबेश यही सलाह उन्हें उनके डॉक्टर ने भी दी थी।
बाबूजी को मैंने मालिश वाला तेल बनाते और उसकी मालिश करते देखा था। ये वही तेल था जिसे आज मैं मॉडिफाइड फॉर्म में तैयार कर रहा हूँ। बाबूजी 78 वर्ष और अम्मा 89 वर्ष को कभी भी घुटने या चलने वाली समस्या नहीं रही और उसका कारण आज समझ में आता है कि घुटनों और पैरों की ढंग से मालिश की जाए। हालाँकि अम्मा ने उम्र के चलते अँतिम वक़्त के पहले चलना छोड़ दिया था।

स्वस्थ और दीर्घ जीवन की चाह बहुत ज़रूरी है वरना आज का मिलावटी संसार आपको समय से पहले बूढ़ा करने पर आमादा है। क्यूंकि जहाँ चाह है वहां राह है और ये बात ज्ञानदत्त जी ने सिद्ध करके दिखाई है। क़दमों की संख्या, रफ़्तार और लगातार चलने के जूनून ने सब संभव कर दिखाया है। मैंने अपने पिछले ब्लॉग में भी लिखा था कि यह तेल जोड़ों के दर्द, ऐंठन, मांसपेशियों की जकड़न, घुटने, कमर और पीठ के दर्द में अचूक कारगर है। घुटने के दर्द में इसके प्रयोग के अचूक परिणाम मिले हैं। पूरे शरीर में लगातार मालिश विशेषकर गर्दन, रीढ़ की हड्डी और हाथ पैर के तलुओं में तेल को रगड़कर सुखाने से शरीर में खून के दौड़ान बढ़ जाती है। नियमित मालिश के सार्थक परिणाम मिलते हुए हमने देखा है। ज्ञानदत्त जी की सक्सेस स्टोरी निश्चय ही एक माइलस्टोन है और मुझे गर्व है की अपने पुरखों के दिए ज्ञान को संजो कर आज कितने ही लोगों की सेवा का अवसर ईश्वर ने मुझे दिया है।
एक बात मैं अवश्य कहना चाहूंगा Quality speaks itself. You don't need to advertise and convince everyone that you have a good product. Success stories do convey great messages. एक बडी important बात पर Gyandutt जी ने ध्यान आकर्षित किया है वो है रियल टाइम हेल्थ वॉच के आंकडे। वॉच कहती है मुझे दस हजार कदम चलने हैं। या मेरी सांस की रफ्तार बहुत तेज है। या मेरा बीपी बढा हुआ है। और सारे गेजेट्स हैं जो शरीर में शुगर लेवल वगैरा वगैरा बताते रहते हैं।इसके मायने क्या हैं? अगर हम इन आँकडो के फेर में फंस गये तो हमारा प्रयास केवल आँकडों की मॉनिटरिंग तक सीमित हो जायेगा और हेल्थ मैनेजमेंट का असली मकसद पूरा न हो पायेगा। एक बात और विचार योग्य है।
Medical science particularly science of medicine has remained corrective in action taken. As a result the whole emphasis is on correcting the problem rather than preventing it. You visit a doctor when you come across a problem. You never go to a doctor to say, doctor I am perfectly alright; give me some medicines so that I do not fall sick of diabetes. Prevention is not possible because each human being is different in nature, health and body. Human Body sets normal for each entity depending upon the conditions where a body lives. A person living in Iceland will have different normal than a person living in Kolkata. The latest dilemma in the health sector is “use of wearable “ and ease of availability of health care gadgets. All the wearables and the gadgets have standards set for a particular class of people at particular place. Now the question is, do you really belong to that class or place. This may be the cause of panic among health freaks. Blood sugar of 200 on fasting will be normal for a person living in hot climate but for a man living in Antarctica or Ladakh 60 or even less may be normal. This is highly debatable. I am not convinced by the numbers. All the wearables have a good thing among them is that they create awareness. Let me be aware of the fact but at the same time must "talk to my own body" to become aware of the real condition.
मेरा सुझाव मात्र इतना है कि आँकड़ो के चक्कर में मत उलझो, पहले अपने शरीर से बात करो, फिर आँकड़ों पर विश्वास करो।अपने शरीर से बात करना अहम् है, बहुत जरुरी है और महत्वपूर्ण भी। ये बात हो सकती है कि भाषा ना आती हो तो भाषा सीख लीजिये। अगले ब्लॉग में मैं आपको बताऊंगा कि शरीर से किस भाषा में बात की जाती है। तब तक आप अपना ख्याल रखिये। 

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...