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Thursday 2 September 2021

क्या फर्क पड़ता है !

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क्या फर्क पड़ता है !

क्या फ़र्क़ पड़ता है कि मैंने लोगों की सीढ़ियाँ बनाई। 

पैदा जो किया था माँ बाप ने

सीढ़ी वो बने तो ही हुई पढ़ाई। 

ज़िंदगी की जद्दोजहद है बहुत भाई,


कई
 खेले पैंतरेकई सीढ़ियाँ बनाई। 

कभी अपने बने सीढ़ीकभी सपने बने सीढ़ी,

मतलब जहाँ निकलापरायों की भी बनाई।

क्या फ़र्क़ पड़ता है कि लोग बने सीढ़ी,

राह पर गुजरना है तो सीढ़ी क्यों हुई पराई?

अपना सुकून ज़िंदगी हैदूसरों की फ़िक्र वो खुद करें,

अपने सुकून की ही ख़ातिर हमने हर सीढ़ी बनाई। 

मतलब की सीढ़ियाँ चढ़ चढ़ कर

बहुत ऊपर  गया हूँ मैं;

अपनी सुकूनों भरी ज़िंदगी अब यूँ पा गया हूँ मैं।

क्यों इतने ऊपर आकरसब गुम सा क्यों हो रहा है?

मुड़ मुड़ कर ढूँढता हूँ कि अपने अब कहाँ हैं,

दूर तलक केवल धुआँज़लज़ले यहाँ वहाँ है। 

जली हुई सीढ़ियों के बीच बस अकेला थक गया हूँ,

अपनों को ढूँढतेपथराई आँखों सा जम गया हूँ। 

सुकून कहीं मिलता नहींटीसें भर उठती हैं,

क्यों खेल किया मैंनेक्यों सीढ़ियाँ बनाईं??

सब अपनों को तो खोयासारी ज़िंदगी भी गँवाई। 

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Saturday 27 June 2015

कुछ हिन्दी कवितायें

कविता- ये कैसा दोस्त
मैंने अपने दोस्त (?) से कहा,
मैं अपना दिमाग उधार देता हूँ,
ताकि लोग उसका इस्तेमाल कर सकें।
उसने कहा अच्छा कितना लेते हो,
उधार देने का ? मुझे चाहिएकीमत बताओ।
मैंने कहानहीं भाई यह तुम्हारे बस मे नहीं है।
डरते क्यूँ होदेखें सहीअपनी औकात तो दिखाओ,
उसने कहा।
मैंने फिर कहाभाई तेरे बस में नहीं है।
उसकी दृष्टि वक्र हो गईजुबां की कैंची और तेज हो गई।
उसने उलाहना देते हुए कहातुम्हारी कीमत तो मैं दे ही सकता हूँ।
मैंने उड़ती नज़र से उसे देखाफिर कहा,
दोस्त(?) उसकी कीमत है “इंसानियत...”
अच्छा तुम समझते होमै इंसान नहीं हूँकटाक्ष किया उसने।
मैं अच्छे कपड़े पहनता हूँलोग मेरी तारीफ़ करते नहीं थकते।
मैं लोगों की मुश्किलें यूँ सुलझा देता हूँ कि पता भी नहीं चलता।
मैं हर आदमी कोहर मौके पर ताड़ लेता हूँबाकायदा अपने खाके में उतार लेता हूँ।
मैंने कहा दोस्त(?), इंसान होने और इंसानियत होने में फर्क होता है।
इंसानियत मन की मैल उतारने पर दिखती हैदूसरों की मुश्किलों मे उतर जाने पर  दिखती हैखुद को दूसरों के दिलों में बसाने पर दिखती है।
किसी की बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ से अपनी कविता का अंत करूंगा।
यूँ ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे,
पता नही था की, ''कीमत चेहरों की होती है'!!
"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं"
एक उसका 'अहमऔर दूसरा उसका 'वहम'.
"पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता और दुःख का कोई खरीददार नहीं होता।"
"किसी की गलतियों को बेनक़ाब ना कर"
"'ईश्वरबैठा हैतू हिसाब ना कर"

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एक कविता उन लोगो के नाम जो हर चीज का दोष दूसरों पर मढ़ देते हैं.....................
अब लोग देखो कितने खुदगर्ज हो गयें हैंअपनी ही मस्ती में तो मदमस्त हो गये हैं।
अपनी ही बातों का बनाते हैं शिग़ूफ़ा जाने कहाँ कहाँ ये व्यस्त हो गये हैं।
दिल में आग कहाँकुछ करने की राह कहाँ ? कुछ करने का नाम लेते ही ये सुस्त हो गये हैं।
कहते हैं जमाने का बोझ हैं उठाये हुएइंसानियत के नाम पर ये पस्त हो गये हैं।
दुनिया को नामर्द साबित करते नहीं थकते थेये अपनी ही मर्दानिगी से ध्वस्त हो गये हैं।
पैसों की गर्मी थी बहुत मगरऊपर वाले की मार से लस्त हो गये हैं।
अब लोग देखो कितने खुदगर्ज हो गयें हैंअपनी ही मस्ती मे तो मदमस्त हो गये हैं।
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ये क्या है जिंदगी
देखो तो ख्वाब है ज़िन्दगी;
पढ़ो तो किताब है ज़िन्दगी;
पर हमें लगता है कि
हँसते रहो तो आसान है ज़िन्दगी।
सुनो तो ज्ञान है ज़िन्दगी;
हँसी की फुहार है जिंदगी,
प्यार का हार है जिंदगी,
अपनों का साथ है जिंदगी;
खुशी की आस है जिंदगी;
कुछ है जो हरदम रहें दुःखी;
और कहे ग़फलत हैउसकी 
तो वाकई बेकार है जिंदगी;
पर हमें लगता है कि
हँसते रहो तो आसान है ज़िन्दगी,
वरना रोने वालों की तमाम है ज़िंदगी।
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रुई का गद्दा

रुई का गद्दा बेच कर
मैंने इक दरी खरीद ली,
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने
और ख़ुशी खरीद ली 

सबने ख़रीदा सोना
मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी
डोरी ख़रीद ली 

मेरी एक खवाहिश मुझसे
मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने
अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली 

इस ज़माने से सौदा कर
एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और
शामें खरीद ली 

शामें गमगीऩ हुईं
खुशियाँ संगीन हुई,
फ़ितरतों को बेच कर
औरों की खुशी छीन ली ।

शौक--ज़िन्दगी कमतर से
और कुछ कम किये
फ़िर सस्ते में ही
"सुकून--ज़िंदगीखरीद ली 
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मुस्कराया  करो

जब भी करो बात 
मुस्कुराया करो 
जैसे भी रहो,
खिलखिलाया करो 
जो भी हो दर्द,
सह जाया  करो 
ज्यादा हो दर्द तो
अपनों से कह जाया करो 
जीवन एक नदी है,
 तैरते जाया करो। 
ऊँच नीच होगी राह में,
बढ़ते जाया करो।
अपनापन यहाँ महसूस हो तो
चले आया करो 
बहुत सुंदर है यह संसार,
सुंदर और बनाया करो
इसलिए,जब भी करो बात 
मुस्कुराया करो।

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...