Each one of us have unique experiences in life. The blog is about my journey through life. I share my vivid experiences through this platform. Someone may find these experiences interesting, or gain some new ideas from them. Learning from others save energy and time, and also encourage to innovate. One needs to challenge himself/herself time and again to consolidate from within to achieve the very purpose of our own life. One should always look for active and purposeful engagement in life.
Wednesday 16 September 2020
Celebrating the Gratitude of getting
What we get in our life is due to the efforts, pains and nurturing of someone. It may be our parents, our gurus, our colleagues or even our subordinates. We must remain grateful for whatever we get in or life; whether big or small, so as to understand the importance of getting and also understand the values of the things we get. I remember, when I was young and stood meritorious in class 4th board exam, my father gave me a pen. I still remember his words, "do write with it, your handwriting would be beautiful". I was so proud to have that pen and show it to everyone that my father gave this to me. I kept that pen as an asset.Later I developed very good handwriting. It may not be due to that pen but the words kept ringing in my ear that "you will have good hand writing". There is a scientific relevance of "Pitrpaksh" in our lives. In Hindu calendar during the period of "Aashwin" we celebrate the festival of gratitude of getting. We offer prayers for those who have departed for abode and now remain in energy body. जब हमारे परिवार का कोई सदस्य हमसे बिछुड़ता है तो उसके जाने का दुःख होना स्वाभाविक है। दुःख और पीड़ा जीवनचक्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आना और जाना भी जीवन क्रम का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। ईश्वर हमें मानव शरीर इसीलिए देता है कि हम अपने संस्कारों और कर्म के संयोजन से अपने लिए मानवोचित धर्म के अनुरूप कर्म कर उच्च चैतन्य को प्राप्त कर सके। हर व्यक्ति अपने कर्मों के माध्यम से चैतन्य प्राप्ति के लिए एक परिवार, एक समाज और एक देश मे पैदा होता है। जीवन के सारे रिश्ते नाते केवल इसी उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में बनते बिगड़ते हैं। राग, द्वेष, प्रेम, पीड़ा और दुःख भी इसी क्रम में आते जाते रहते हैं। यदि अपने जीवनकाल में हम अपने चैतन्य स्तर को ऊपर उठा लेते हैं तो कहा जाता है, जीवन सफल हुआ। जिन ने भी अपने जीवन काल में अपने शरीर के माध्यम से अपने चैतन्य के उच्चतम शिखर को प्राप्त किया हो वे ही समाज में, देश में और मानवता में सुधार में सक्षम रहे हैं। उन्होंने याज्जीवन सशरीर मानव और समाज की सेवा तो की ही और वे लोग ही सूक्ष्म में रहकर और शक्तिशाली होकर समाज सुधार की दिशा में सदैव तत्पर होते रहे हैं। हमारे दिवंगत पूर्वज, परम पूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी, ऋषि गण और दिव्य साधक आज भी इस कथन को साकार करते प्रतीत होते हैं। वे सूक्ष्म में रहते हुए हमारे आसपास रहकर हमारे चैतन्य के उद्भव के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। ऐसी दशा में किसी के शरीर छोड़ने का दुख नहीं होना चाहिए वरन उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का संज्ञान लेकर उनसे प्रेरणा और ज्ञान देने का अनुरोध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में वे समस्त पूर्वज, परिजन, ऋषि, संत, और दिव्य आत्मायें सूक्ष्म रूप में हमारे पास आती हैं और हमसे स्नेहपूर्वक जल अर्पण की अपेक्षा करतीं हैं। श्राद्ध पक्ष में उन्हें श्रद्धा पूर्वक अर्पित किया जल उन्हें दिव्य शाँति प्रदान करता है और वे हमारी चेतना से जुड़कर हमारा मार्गदर्शन करती हैं। 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
Friday 11 September 2020
एक कहानी- गायत्री निवास
*गायत्री निवास*
*बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर
प
*शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी न
*‘ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस
*शालू की उदासी बेचैनी में तब्
चु
*दो महीने हो गए थे शालू को पू
*पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नो
*सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल र
मे
सु
*यहां न आस-पास कोई अच्छा डे के
मे
छु
*दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस
*शालू का घर को दोबारा ढर्रे पर
*एक दिन सुबह शालू ने टैरेस से
पा
*“अरे, ये तो वही बुढ़िया है, जि
*“बताऊंगा तो आश्चर्यचकित रह जा
*शालू का विस्मित चेहरा आगे की
*“वो इस घर की पुरानी मालकिन हैं.”*
*“क्या ? मगर ये घर तो हमने मि
*“ये लाचार बेबस बुढ़िया उसी शां
*छी… कितना कमीना इंसान है, दे
*सुधीर का चेहरा वितृष्णा से भर
*“हां, याद आया. स्टोर रूम की स
*क्या घर वापस लेने ? पर हमने तो इसे पूरी क़ीमत देकर ख़रीदा है.”
*“नहीं, नहीं. आज इनके पति की प
*“इससे क्या होगा, मुझे तो इन बा
*“तुम्हें न सही, उन्हें तो है
*“ठीक है, आप उन्हें बुला लीजिए
*गायत्री देवी अंदर आ गईं. क्षी
*नज़रें भर-भरकर उस पराये घर को
*वो ऊपरवाले कमरे में गईं. कुछ
*फिर उन्होंने दिया जलाया, प्रा
*“यही कमरा था मेरा. कितने साल
*शालू और सुधीर नि:शब्द बैठे रहे. थोड़ी देर घर से जुड़ी बातें कर
*पैर जैसे इस घर की चौखट छोड़ने
*“आप ज़रा बैठिए, मैं अभी आती हूं.” शालू गायत्री देवी को रोककर
आइडि
*क्यों न हम इन्हें यहीं रख लें
*“तुम्हारा मतलब है, नौकर की तर
*“नहीं, नहीं. नौकर की तरह नहीं
आ
*ये घर पर रहेंगी, तो मैं भी आरा
*“आइडिया तो अच्छा है, पर क्या
*“क्यों नहीं. हम इन्हें उस घर
*“और अगर कहीं मालकिन बन घर पर
*“तो क्या, निकाल बाहर करेंगे.
*“ठीक है, तुम बात करके देखो.”
*शालू ने संभलकर बोलना शुरू कि
*बुढ़िया की आंखें इस अप्रत्याशि
*आज के ज़माने में जहां सगे बेटे
वृ
*“नहीं, नहीं. आपको नाहक ही परे
*“परेशानी कैसी, इतना बड़ा घर है
*हालांकि दुनियादारी के कटु अनु
*गायत्री देवी उनके साथ रहने आ
*सभी उन्हें अम्मा कहकर ही बु
*घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र हो
*अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठा
क
का
व्यं
*शालू भी हैरान थी कि जो बच्चे
*बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल ग
*अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों
*शालू और सुधीर बच्चों में आए सु
क
*पहली बार शालू ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उप
*आज शालू का जन्मदिन था. सुधीर
*वहीं अम्मा ने शालू की मनपसंद
*इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट की
*बच्चे दौड़कर शालू के पास आ गए
*“बहुत अच्छा, इतना अच्छा, इतना
*“हमें पता था आपको अच्छा लगेगा
दे
*शालू की आंखों में अम्मा के लि
*केक कटने के बाद गायत्री देवी
*“ये क्या है अम्मा ?”*
*“तुम्हारे जन्मदिन का उपहार.”*
*शालू ने खोलकर देखा तो रुमाल में सोने की चेन थी.*
*वो चौंक पड़ी, “ये तो सोने की मालूम होती है.”
*“हां बेटी, सोने की ही है. बहु
ए
*शालू की अंतरात्मा उसे कचोटने
*“नहीं, नहीं अम्मा, मैं इसे नहीं ले सकती.”*
*“ले ले बेटी, एक मां का आशीर्
*“नहीं अम्मा, ऐसा मत कहिए. ईश्
*वो जन्मदिन शालू कभी नहीं भूली
*घर की बड़ी, आदरणीय, एक मां के
*‘गायत्री निवास’*
*यदि आपकी आंखे इस कहानी को पढ़क
कि
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