Journey through "life"
Each one of us have unique experiences in life. The blog is about my journey through life. I share my vivid experiences through this platform. Someone may find these experiences interesting, or gain some new ideas from them. Learning from others save energy and time, and also encourage to innovate. One needs to challenge himself/herself time and again to consolidate from within to achieve the very purpose of our own life. One should always look for active and purposeful engagement in life.
Friday, 27 September 2024
बॉडी मसाज ऑइल-कुछ अनुभूत प्रयोग- १
Monday, 8 May 2023
एक यादगार अनुभव- Graceful aging
Lanscape |
विस्टा हॉस्टल चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है इसलिए सुबह और शाम का नज़ारा breathtaking होता है। मेरे लिए ये एक बिलकुल अलग सा अनुभव था। नौकरी के दौरान बड़ी घिसी पिटी सी लाइफ स्टाइल होती है जो एक मशीन की तरह चलती रहती है। वही सुबह उठना, ऑफिस जाना, काम निबटाना और वापस आ जाना। कभी कभार बच्चों को लेकर छुट्टियाँ मनाने गए तो भी वो बड़ा सेट प्रोग्राम हुआ करता था। रिजर्वेशन किया, तैयारी की, तय तारीख को तवांग या गोवा, या मनाली या मसूरी पहुंच गए, वहाँ घूमा, देखने लायक जगहों पर गए, कुछ खरीददारी की और वापस अपने मुक़ाम पर। इन सबमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो लीक से हटकर हो।
Lalu, Aakash and bubu |
मेरा यह अनुभव सोलो- बैकपैकर का था। हाँलाकि मैं सोलो नहीं था पर फील वैसा ही था। सारा सामान बैकपैक में। कुछ गरम कपडे रख लिए थे क्युकी इस भरी गर्मी में भी लगातार बारिश लगातार हो रही थी। तय तिथि को मैं दिल्ली होता हुआ देहरादून पंहुचा। फिर वहां से लगभग 280 किलोमीटर का सफ़र साढ़े पांच से छः घंटों में पूरा होता है यदि आप अपने वाहन से हैं या टैक्सी से । उत्तराखंड रोडवेज की बसें भी देहरादून ISBT से छूटती हैं जो हरिद्वार, चिड़ियापुर फारेस्ट रेंज, नज़ीबाबाद, कोतवाली, घामपुर, काशीपुर और बाजपुर होते हुए ज्योलीकोट पेट्रोल पंप पर आपको उतार देंगी।
Shantanu and Sneha |
ज्योलीकोट पेट्रोल पंप से विस्टा गेस्ट हाउस की पार्किंग लगभग 2 किलोमीटर है। पार्किंग से विस्टा गेस्ट हाउस क़रीब 1 किलोमीटर का ट्रेक है। यहीं से excitement की शुरुआत हो जाती है। पहाड़ी पगडंडियों से गुजरते हुए काफल, बुरांश, तेजपात, तून और बंज ओक के भारी भरकम पेड़ शिवालिक के पहाड़ों को एक अद्भुत नज़ारा देते हैं। एक जानकारी के अनुसार शिवालिक के पहाड़ एक ओर सिंधु नदी से दूसरी ओर ब्रम्हपुत्र नदी तक फैले हुए हैं और एक तरह से हिमालय का कण्ठहार बन जाते हैं। चहचहाते पक्षियों के बीच चारों ओर फैली हुई शान्ति बहुत स्थिरता, सुकून और अनुपम आनंद का अनुभव करा रही थी। हवा की ताज़गी और तेजपात की खुशबुओं का मिश्रण एक तरावट का काम कर रहा था मानों 6 घंटे की यात्रा की थकान छूमंतर हो गयी।
Mud room |
विस्टा हॉस्टल पहुँचते ही रही सही थकान भी जाने कहाँ गायब हो गयी। mud हाउस में कदम रखते ही वाइब्स का एहसास किसी खूबसूरत ख़्वाब से कम नहीं था। चारों तरफ फैली हुई हरियाली, पक्षियों की मधुर चहचहाट और वहाँ जो लोग मिले उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।
Yoga practice |
कॉर्पोरेट का नया कल्चर जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता। शान्तनु, यज़न और आकाश इस प्रॉपर्टी को मैनेज करते हैं। मनमोहन जी, स्नेहा, अजीत, गीतांजलि,यज़न , हैरी, लूसी, चार्ली और मेरा बेटा अभिनव सभी कॉर्पोरेट से हैं और सबने अपनी ज़िंदगी में ये चेंज जोड़ा है ताकि उनकी एनर्जी और vibes बरकरार रहे। ज्यादातर ट्रैवेलर्स लम्बे समय से उत्तराखंड के पहाड़ों को एक्स्प्लोर कर रहे हैं। बुबू यहाँ के बड़े अनुभवी मेंबर हैं। बेहद शालीन, ठेठ देहाती रहन-सहन, और उनकी जड़ी बूटियों के ज्ञान ने मुझे कायल कर दिया। यहाँ का स्टाफ़ बहुत एक्टिव और सपोर्टिव है जो लगभग शुरूआत से ही जुड़ा हुआ है। लालू जी और बाबाजी तो सुबह से ही नाश्ता, चाय और खाने की तैयारी में व्यस्त हो जाते थे।
Gardening with Gitanjali |
सारे गेस्ट लगभग एक परिवार की तरह रहते थे। लूसी और हैरी UK से थे और सारा दिन कुछ न कुछ करते रहते थे। कभी पेंटिंग, कभी पत्थरों का मंडाला, कभी गार्डनिंग। गीतांजलि वैसे तो लॉयर है पर यहाँ अपने माली introduce करती है और कितने की झाड़,पेड़, फूल, सब्जियाँ लगायी थी। कभी कभी मैं भी उसका हाथ बटाता था।
Lucie made a painting |
अजित बैंगलोर से था और बहुत मेहनती था, प्रोफेशनल बॉक्सर और सब लोग शाम को बॉक्सिंग लेसन लेते थे। मैंने भी दो दिन किया। स्नेहा सब को योग कराती थी। दिन की शुरुआत अल-सुबह 4. 30 बजे होती थी। कुछ जड़ी बूटियां तोड़कर सुबह की मसाला चाय बनती थी। फिर पार्किंग वाले रास्ते पर ट्रेकिंग, फिर दिन भर कुछ न कुछ चलता रहता था। बाबाजी सुबह हवन करते थे। यजन और स्नेहा रिट्रीट प्लान कर रहे थे कॉर्पोरेट के लिए।
Sunday, 5 March 2023
शरीर भी बोलता है... 😊
१४ जनवरी के ब्लॉग में मैंने आपसे कहा था कि अपने शरीर से बात करने का तरीका बताऊंगा। लिखने के बाद विषय पर शोध करने में कुछ समय लगा और असल समय हर्बल मसाज़ ऑइल और नीम टूथ एंड ग़म ऑइल के शोध में लगा। इन दोनों शोधों ने बहुत से नए आयाम दिए हैं जो आपके लिए भी नए विचार, नयी दिशा और नए उपक्रम पैदा करने में मदद करेगा। पहले मैं "अपने से बात" करने के तरीकों पर चर्चा करूँगा और दोनों ऑयल्स के शोध पर आये नतीजों जो निश्चित रूप से बहुत उत्साहवर्धक हैं पर, अगले ब्लॉग में लिखूँगा।
अमूमन जब हम किसी से मिलते है. तो सामान्य शिष्टाचार में पूछ लेते हैं भाई कैसे हो ? और उसका सीधा सा उत्तर होता है कि मैं अच्छा हूँ, स्वस्थ हूँ, मस्त हूँ या all good. इसे बोलने के पहले आप अपने अंदर जरूर टटोल लेते हैं कि वास्तव में अच्छा तो हूँ अन्यथा आप कह देते हैं, यार मौसम का असर है कुछ तबियत नरम गरम चल रही है। यानी हम अपने आप से बात ज़रूर करते हैं और ये हमारी आदत में शुमार होता है। हमारा शऱीर भी हमसे कुछ न कुछ कहता है, हम नहीं सुनते हैं तो ज़ोर ज़ोर से कहता है, फिर भी नहीं सुनते हैं तो चीख़ता है और तब तक चीख़ता है जब तक हम सुन ना लें क्यूँकि उसको हमारे सिस्टम को चलायमान रखना है। जैसे हमारा सिस्टम यानि शऱीर जब dehydrate होता है तो हमसे कहता है पानी पी लो, गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, बार बार ओंठो पर जीभ फिराने का मन करता है। फिर भी हम शरीर को hyderate नहीं करते हैं तो चक्कर आने लगते हैं और हम नीम बेहोशी की तरफ़ जाने लगते हैं यानि पानी पीना हमारी मज़बूरी हो जाती है।ये बात अलहदा है की शरीर को केवल पानी की जरुरत थी और हमने बर्गर और कोल्ड ड्रिंक ले लिया। ये प्यास तो बुझा देगा लेकिन बहुत कुछ अवाँछनीय भी कर देगा। जैसे बहुत ज्यादा प्यास की स्तिथि में आंतें सिकुड़ जाती हैं और शरीर डिफेन्स मोड में चला जाता है ताकि वह ज्यादा से ज्यादा पानी बचा सके और शरीर में खून को उसके नार्मल लेवल में रख सके ताकि सारे अंग नार्मल काम करते रहें। ऐसे में जब अचानक डाइजेस्टिव सिस्टम में बर्गर और कोल्ड ड्रिंक पहुँच जाता है तो दिमाग़ का डिफेन्स मेकनिज़्म फायर फाइटिंग मोड में चला जाता है क्युकी सिकुड़ी हुई आंते इतना माल अचानक नहीं ले सकतीं और ढेर सारा ऐसिडिक डिस्चार्ज होता है। इसीलिए आपने देखा होगा कि ऐसा खाने या पीने के बाद आपको अक्सर एसिडिटी हो जाती है यानि शऱीर फिर कहता है अब कुछ मत लेना। पर हम फिर भी शऱीर की नहीं सुनते और सोडा या कुछ इसी तरह का कोई इंतज़ाम करके पेट को शांत करते हैं ताकि शाम की पार्टी के लिए तैयार हो सकें। शाम को भी पेट में कुछ न कुछ हैवी चला जाता है और पेट फिर से इसी मशक्कत में लग जाता है कि अब इतने माल असबाब को ठिकाने कैसे लगाया जाय। पेट की ओवरलोडिंग का असर लीवर, किडनी और गाल ब्लैडर पर होता है। हमारा शरीर ईश्वर की दी हुई वो मशीन है जिसमे हरकुछ करने की संभावनाएं छुपी हुई हैं। सामान्य क्रिया से लेकर गूढ़ आध्यात्म तक की दौड़ इस शरीर के माध्यम से पूरी की जा सकती है पर उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण है की हम अपने शरीर की सुनें। शरीर की सुनने के लिए अपने शरीर को समझना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। हर व्यक्ति की शारीरिक संरचना लगभग एक जैसी है; अस्थियाँ, जोड़, नस नाड़ियाँ, बाहरी और भीतरी अवयवों का स्वरूप एवं गठन एक सा है। क्रिया कलाप में भी समानता होती है। काया की व्यवस्था बड़ी सटीक और सुव्यवस्थित है और इसकी व्यवस्था में जरा सी चूक होने पर शरीर इशारे करता है, आवाज़ देता है, चीखता है। 😩 जब बार बार उसकी बातों को अनसुना किया जाता है, तो शरीर दुर्बलता, रुग्णता के चंगुल में फँस कर अनेकानेक पीड़ायें सहने के लिए बाध्य हो जाता है। और यदि इसके इशारे और भाषा समझ आने लगी तो यह कहने में कोई गुरेज़ नहीं है कि आप असंभव को भी संभव कर सकते हैं। हम यहाँ हमारे शरीर के दो महत्वपूर्ण सिस्टम और उनसे संवाद करने के तरीक़े को समझेंगे; पहला है हमारा ब्रीदिंग सिस्टम या श्वसन तंत्र और दूसरा है हमारा डाइजेस्टिव सिस्टम या पाचन तंत्र। हम एक मिनट में १८-२० बार साँस लेते हैं और हमें मालूम है कि साँस है तो आस है और शरीर की सारी व्यवस्थाओं को चलाने का ज़िम्मा भी इन्हीं साँसों का है। प्रत्येक साँस के साथ ३००-५०० सीसी हवा शुद्ध होकर फेफड़ों को आक्सीजन देती है जो रक्त में मिलकर सारा मेटाबॉलिक सिस्टम कंट्रोल करती है। साँस की गहराई और ली गई आक्सीजन ही शरीर में बहने वाले खून के शुद्धीकरण के लिए ज़िम्मेदार है। उथली साँस पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं पहुँचा पाती और यदि हवा अशुद्ध हुई या हवा में ही पर्याप्त आक्सीजन न हुई या लंबे समय तक दूषित वातावरण में रहना पड़े तो शरीर तुरंत इशारे करता है। गहरी साँस लेने की ज़रूरत महसूस होती है, गले में ख़राश लगती है, खांसी आती है, प्यास लगती है, आँखों में जलन होती है, त्वचा में रूखापन आता है, आलस्य और प्रमाद आता है, कमजोरी आती है और शरीर बार बार बीमार होता है। अब इस भाषा को समझना और तुरंत करेक्ट करना नितांत आवश्यक होता है।दूसरा महत्वपूर्ण सिस्टम है हमारा पाचन तंत्र। आमतौर पर भूख़ या प्यास लगने पर या ज़्यादा खा लेने पर आमाशय एक्टिव हो जाता है उसमें से साढ़े तीन करोड़ पाचक रस निकलने के लिए तैयार रहते हैं। यही रस भोजन या पानी के साथ मिलकर लीवर, किडनी और गॉल ब्लेडर से गुजरकर खून और दूसरे तत्व बनाता है। भूख या प्यास लगने पर कुछ खाने या पीने की इच्छा होती है, इसके अलावा बहुत से सिम्पटम्स होते हैं जिन्हें कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए। जैसे गला सूखता है, ओंठ सूखने लगते हैं, डकार आती हैं, आलस आता है, बार बार सिरदर्द होता है, नींद बहुत आती है या टूट टूट कर आती है, मीठा खाने की ज़्यादा इच्छा होती है, क़ब्ज़ रहता है, भूख ज़्यादा लगती है या हम ज़रूरत से ज़्यादा खा लेते हैं। हमारा पाचन तंत्र बहुत संवेदनशील होता है और एक बार का खाया या पिया पचने के लिए समय माँगता है। शरीर की ९०% बीमारियों का कारण पेट होता है इसलिए खाने के मामले सबसे ज़्यादा सावधानी की ज़रूरत होती है।
शरीर हमसे बोलता है पर कई बार हम उसको सुन नहीं पाते या सुनकर भी अनसुनी कर देते हैं। शरीर की भाषा सीखना एक ऐसी कला है जो हमारे जीवन को न केवल व्यवस्थित कर देती है वरन हमें वो ताक़त देती है जिससे हम उन क्षमताओं को भी हासिल कर सकते हैं, विकसित कर सकते हैं जिन्हें अतीन्द्रिय कहा जाता है।
Saturday, 14 January 2023
जड़ी बूटियों के साथ नवाचार का अनुभव
Sunday, 20 November 2022
मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी
ब्लॉग तो मैं काफ़ी समय से लिख रहा हूँ पर नियमित कभी नहीं था, बस शौक के लिखा लिखता था। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का ब्लॉग देखा जो उन्होंने मेरे तेल के विषय में फ़ीडबैक दिया था। इसे ज़रुर पढियेगा। इनका लेखन सहज है, बहुत पैशन के साथ लिखा गया है और पढ़ने में जो आनंद आता है वो तो अवर्णनीय है।
https://gyandutt.com/2022/11/18/piyush-verma-oils/
फीडबैक का असर ये हुआ कि उनके नियमित पाठकों से कई लोगों ने तेल की माँग की और मैंने उनकी मांग का सम्मान किया। मैंने जब ज्ञानदत्त जी का ब्लॉग पढ़ा तो सच में समझ में आया कि अभिव्यक्ति क्या होती है ? अत्यंत सहज भाव से उन्होंने जो भी लिखा है, भरपूर मनोयोग से और पूरे आनंद के साथ। उनकी अभिव्यक्ति को सौ सौ सलाम।
अब मैं अपनी बात पर आता हूँ। मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी। और ये बताना भी इसीलिए जरुरी है कि कुछ लोग बिना सोचे समझे तात्कालिक प्रतिक्रिया देने में निपुण होते हैं और ये वही लोग हैं जो किसी भी माहौल को बिगाड़ सकते हैं। हालाँकि बुद्धिमानों ने कहा है कि ऐसे लोगों की चिंता न करते हुए अपने उद्देश्य की पूर्ति में व्यक्ति को निरत रहना चाहिए, पर मेरा मानना है कि ऐसे लोगो को अपनी झोपड़ी के फूस तक आने का कभी मौका नहीं देना चाहिए। हाँ, तो मैं आपसे अपने उस तेल के विषय में जानकारी साझा करना चाहता था जिसके बारे में आदरणीय ज्ञान दत्त जी ने फीड बैक दिया था।
हमारे बाबूजी यानि स्व श्री शंकर दयाल वर्मा कृषि वैज्ञानिक थे और घर पर बाग बागवानी एक नियमित व्यवस्था थी। उस बागवानी में काम करना हम सब बच्चों का शौक भी था और कभी सज़ा भी। क्योंकि जब कभी शैतानी होती थी तो बतौर सज़ा क्यारी की गुढ़ाई करना, निंदाई करना, सिंचाई करना, कचरा साफ़ करना एक नियमित क्रम था। इसी नाते जड़ी बूटियाँ ढूँढना और जंगल से लाना भी उसी क्रम में शामिल था। हमारा घर फार्म्स में होता था जो कई सौ एकड़ में फैला होता था। बाबूजी को घर पर आयुर्वेदिक औषधीय तैयार करने का शौक था। और घर पर बहुत से नुस्खे तैयार होते थे जिन्हे हम आज भी इस्तेमाल करते हैं।
Babuji and Amma |
मैं शिक्षा की दृष्टि से तो माइनिंग इंजीनियर हूँ लेकिन कृषि और बागवानी से कभी भी दूर नहीं जा पाया। माइनिंग से भी शुरू के 6-7 साल के बाद दूर होता गया। क्योंकि पहले मैं कोयला खदान में था, फिर पॉलिटेक्निक में माइनिंग विभाग में विभागाध्यक्ष रहा और वहाँ से राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान संस्थान में आ गया जिसने मेरी सीखने की प्रवृति को याज़्ज़ीवन जीवित रखा। इस संस्थान में मैंने तनाव प्रबंधन विषय पर अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ स्पीलबर्गर के सानिध्य एवं सहयोग से अपनी पी एच डी संपन्न की और उसके पश्चात लगभग 22 वर्षों तक तनाव प्रबंधन, शरीर के भौतिक, मानसिक और भावनात्मक पक्ष के प्रबंधन, कॉन्ससियनेस, न्यूरो पलास्टिसिटी जैसे विषयों पर शोध और प्रशिक्षण करता रहा। अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीने की ख्वाहिश के कारण लगभग 40 वर्षों की सेवा के उपरांत स्वैक्षिक सेवानिवृति लेकर 3 वर्ष पूर्व आर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की।
एक दिन हमारे फार्म में मेरे पारिवारिक मित्र रवि जी सपरिवार आये थे तब उन्होंने बताया की उनकी श्रीमती जी यानि प्रोफेसर रेखा जी जोड़ो के दर्द और पैर दर्द से कई वर्षों से परेशान हैं। चूँकि जोड़ों की मालिश का तेल घर पर उपलब्ध था सो मैंने उनको दे दिया और बात आई गयी हो गयी। काफ़ी दिनों के बाद उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार को वो तेल चाहिए। और तब पता चला कि प्रोफेसर रेखा को उससे बहुत फ़ायदा हुआ और अब उनके पैरों में कोई सूजन नहीं आती और वो 4 -5 किलोमीटर आराम से घूम आती हैं। रवि जी की प्रेरणा से आज मालिश का तेल सौ से भी ज्यादा लोगों ने इस्तेमाल किया।
दांत का तेल भी नैसर्गिक जड़ी बूटियों और घटकों से बनाया जाता है। इसके भी कई सकारात्मक परिणाम मिले और कई लोगों के साथ साथ, ज्ञान दत्त जी ने उनकी पुष्टि भी की है।
इस तेल की कहानी बताने का अभिप्राय यही है कि अनर्गल बोलने वाले पहले सोच लें, समझ लें, फिर बोलें। हम स्वयं इन घर की बनी औषधियों का वर्षों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं और उसके प्रभाव का अनुभव भी हो रहा है। चाहे वो घर का बना तेल हो, त्रिफला हो, या गिलोय अर्जुन की छाल का चूर्ण, बालों में लगाए जाने वाला तेल हो, या आफ्टर-बाथ आयल, या लिप और फुट बाम हो। मेरी इस यात्रा में मेरे पूरे परिवार का भरपूर सहयोग मिलता है, मार्केटिंग स्किल्स मुझे नहीं आती सो मेरा बेटा सिखा रहा है। किचन की जानकारियाँ मुझे मेरी पत्नी से मिलती हैं।
मैं अपने इस ब्लॉग से आदरणीय रवि जी और ज्ञान दत्त जी का धन्यवाद करना चाहूंगा कि उनकी प्रेरणा, उनका स्नेह और मोटिवेशन मेरे लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
Wednesday, 19 October 2022
The story of Chinese bamboo trees
Like any plant, to flourish the Chinese Bamboo Tree requires nurturing – water, fertile soil, sunshine. In the first year, there are no visible signs of activity or development. In the second year, again, no growth above the soil. And the third and fourth, still no signs. Patience is tested and we begin to wonder if our efforts will ever be rewarded.
Finally in the fifth year – voila! There is growth…and what growth it is! The Chinese Bamboo Tree grows 80 feet (nearly 30m) in just six weeks!
So the question is: Does the Chinese Bamboo Tree really grow 80 feet in six weeks? Did it lie dormant for four years only to grow exponentially in the fifth? Or, was the little tree growing underground, developing a root system and a stable base strong enough to support its potential for outward growth in the fifth year and beyond?
If the tree had not developed a strong unseen foundation, it could not have sustained its life as it grew.
Just as a house needs to have a strong foundation to survive. The same principle is true for people, success and your speaking career. People, toil towards their dreams and goals, building strong character while overcoming adversity and challenge, grow the strong internal foundation to handle success, while those who chase the “quick buck” are unable to sustain unearned sudden wealth. Remember the old saying: “Out of adversity comes opportunity.”
Had the farmer dug up his little seed every year to see if it was growing, he would have stunted the Chinese Bamboo tree’s growth as surely as a fledgling bird is doomed if it is freed from its struggle of breaking through the shell prematurely. The struggle in the egg is what gives the little bird the strength to grow and flourish, just as tension against muscles as we exercise strengthen our muscles, while muscles left alone will soon atrophy.
The Chinese Bamboo Tree is a perfect parable to our own experience with personal growth and change. And change is never easy. Often, signs of progress are slow, frustrating and unrewarding at times.
But it is so worth it….especially if we can be patient and persistent.
Thursday, 6 October 2022
उचित आचरण पर एक संवाद
एक प्रेरणादायी घटना
यह घटना मेरे मित्र के साथ हुई थी। एक व्यावहारिकता का संदेश इसमें छुपा है जो हमें भी उचित आचरण की सीख दे सकता है।हुआ यूँ कि मेरे मित्र की बुजुर्ग दादी का निधन हुआ तो उन्होंने सभी पट्टीदारों, इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों को मृत्योपरांत आयोजन में आमंत्रित किया।
आयोजन के शिष्टाचार के तहत लोग हवन में शामिल हो रहे थे और प्रसाद ग्रहण कर विदा ले रहे थे। मेरे मित्र के एक रिश्तेदार दिल्ली से सपरिवार पधारे थे और कुछ नागपुर से आये थे। जब अंदर हवन चल रहा था तो ये सारे रिश्तेदार बाहर बैठकर ज़ोर ज़ोर से राजनीति पर बहस कर रहे थे। अंदर मित्र के परिवार भी पशोपेश में थे कि क्या बोलें ? चूँकि उनकी वापसी देर रात की ट्रेन से थी सो हवन समाप्त होते ही उनके परिवार वालों ने उस कमरे पर क़ब्ज़ा कर लिया; वहीं पर हा हा ही ही, वहीं पर भोजन, वहीं पर यह पूछताछ कि आपके फ़लाँ नातेदार क्यूँ नहीं आये वग़ैरा वग़ैरा। मेरा मित्र अंदर से बहुत आहत था, पर समय की मर्यादा को देख कर चुप था। मेरे मित्र के पड़ोसी बुजुर्ग अंकल से ये सब देखा न गया, उन्होंने मेरे मित्र से अनुमति माँगी कि यदि उसे आपत्ति न हो तो वो इन लोगों से कुछ बात करना चाहता हूँ। वो बुजुर्ग बड़ी शालीनता से अंदर आये और उन रिश्तेदारों को संबोधित करते हुए कहा, “मैं आपको नहीं जानता हूँ लेकिन कुछ बातें मुझे खटक रहीं हैं, सो टोक रहा हूँ कृपया अन्यथा न लें। आप सब एक बुजुर्ग के मृत्योपरांत प्रकरण में शामिल हो रहे हैं, आपकी तरह अन्य लोग भी शामिल हैं, पर समय की मर्यादा और गरिमा को देखते हुए उचित आचरण और गंभीरता बनाये रखने से दुःखी परिवार को भी संबल मिलेगा। आपकी रात की ट्रेन थी तो किसी होटल में कमरा ले लेते उन रिश्तेदारों को अपनी भूल का अहसास हुआ और वो इस व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हुए होटल में शिफ़्ट हो गये”।बात बहुत अहम है, कभी कभी आवेश में हम ऐसे आयोजन की मर्यादा और गरिमा भूल जाते हैं और ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जिससे सामने वाले को बहुत चोट पहुँचती है। समयकाल को देखते हुए उचित आचरण रिश्तों में अनावश्यक खटास पैदा होने से बचाता है।
बॉडी मसाज ऑइल-कुछ अनुभूत प्रयोग- १
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