Saturday, 14 November 2015

मेरा स्वास्थ्य- मेरे हाथ

क्या खाएँ- क्या पिएँ??

खाना और पानी का बहुत गहरा संबंध है। यूं तो जल ही जीवन है, पर खाने के तुरंत बाद पानी पीना जहर के बराबर है। ऐसा क्यों, ये जानना बहुत आवश्यक है.!
 
हम पानी क्यों ना पीये, खाना खाने के बाद। क्या कारण है? हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने रोटी खाई, हमने दही खाया, लस्सी पी, दूध, छाछ, लस्सी, फल आदि.! ये सब कुछ भोजन के नाम पर हमने ग्रहण किया, ये सबकुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्राँसफर करता है। पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है जिसको हम हिंदी मे कहते है "आमाशय" उसी स्थान का संस्कृत  नाम है "जठर" उसी स्थानको अंग्रेजी मे कहते है "epigastrium" ये एक थैली की तरह होता है।
 
यह जठर हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान है इसमें 350 ग्रा. तक ही खाना आ सकता है। हम जब कुछ भी खाते हैं, वह सब इस आमाशय मे आ जाता है.! आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है उसी को कहते हैं, "जठराग्नि"। ये जठराग्नि मे प्रदीप्त होने वाली आग आपके कुछ भी खाते पीते यहाँ तक की सोचते समय प्रदीप्त हो जाती है।  यह ऑटोमेटिक है,  जैसे ही अपने रोटी का पहला टुकडा मुँह मे डाला, कि इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई.! ये अग्नि तब तक जलती है, जब तक खाना पचता है। पर आपने खाते ही गटागट पानी पी लिया, कोल्ड ड्रिंक पी ली, और खूब ठंडा पानी पी लिया और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है.!

अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी, वो बुझ गयी.! आग अगर बुझ गयी तो खाने की पचने की जो क्रिया चलनी थी, वो अचानक बंद हो गई । आप शिकार बन जाते हैं IBS के, यानी Irritable Bowl Syndrome-Never CURABLE यानी ऐसीबीमारी जो पेट को पूरी जिंदगी के लिए रोगी कर देतीहै।

अब हमेशा याद रखें खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है, एक क्रिया है जिसको हम कहते हैं "Digestion" और दूसरी है "fermentation" फर्मेटेशन का मतलब है सडना और डायजेशन का मतलब है पचना.! आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी, तो खाना पचेगा, खाना पचेगा तो उससे रस बनेगा.! जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हाड, मल, मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा.! ये तभी होगा जब खाना पचेगा.! यह सब हमें चाहिए। ये तो हुई खाना पचने की बात ।

अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?  खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है, वो है, यूरिक एसिड (uric acid), कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है, कि मेरा घुटना दुःख रहा है, खटास वाली डकार आ रही है, खाना पच नहीं रहा है, मुझे कंधे कमर मे तकलीफ हो रही है, वगैरा। तो डॉक्टर क्या कहेगा? आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है। आप ये दवा खाओ, पानी खूब पिओ, वो दवा खाओ, यूरिक एसिड कम करो|
 
और एक दूसरा उदाहरण; जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जैसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते हैं, LDL (Low Density lipoprotive) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol)आपको जब घबराहट होती है, सांस लेने में तकलीफ होती है, तब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP) हाई-बीपी है आप पूछोगे... कारण बताओ? तो़ वो कहेगा, आपका कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है|

 
आप ज्यादा पूछोगे की़ कोलेस्ट्रोल कौन सा बहुत है ? तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है | इससे भी ज्यादा खतरनाक एक  विष है, वो है, VLDL (Very Low Density Lipoprotive); ये भी कोलेस्ट्रॉल जैसा या यूँ कहें, उससे ज्यादा खतरनाक विष है। अगर VLDL बहुत बढ़ गया, तो आपकी मुसीबत इतनी बढ सकती है कि फिर भगवान भी नहीं बचा सकता| खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides। जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ है, तो समझ लीजिये कि आपके शरीर मे विष तेजी से बन रहा है | तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे, कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे तो समझ लीजिए की ये सब विष हैं और ऐसे विष 103है | ये सभी विष तब बनते है, जब खाना पछता नहीं है, सड़ता है | मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है, तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए कि खाना पच नहीं रहा है, कोई कहता हे मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप कि आपका खाना पच नहीं रहा है | कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है, तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे कि खाना पच नहीं रहा है | क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता.! खाना पचने पर जो बनता है, वो है....मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हाड, मल, मूत्र, अस्थि. और मेद! और खाना नहीं पचने पर बनता है....यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल, LDL-VLDL.! और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है। पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है, इक्कठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है जिसे आप heart attack  होना कहते हैं ।
 
तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बातपर देना है की जो हम खा रहे हैं, वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं है और खाना पकता भी नहीं है। सो महत्व की बात खाने को खाना नहीं खाने को पचाना है | आपने क्या खाया कितना खाया वो महत्व नहीं हे.! खाना अच्छे से पचे ये सबसे जरूरी है।

इसके लिए वागभट्ट जी ने सूत्र दिया.! "भोजनान्ते विषं वारी" (मतलब खाना खाने के तुरंत बाद पानी पीना
जहर पीने के बराबर है) इसलिए खाने के तुरंत बाद पानी या कोई भी ठंडा पेय कभी मत पिये। अब आपके मन मे सवाल आएगा कितनी देर तक नहीं पीना? तो 1 घंटे 48 मिनट तक नहीं पीना !  अब आप कहेंगे इसका क्या calculation हैं.? बात ऐसी है....! जब हम खाना खाते हैं तो जठराग्नि में खाया हुआ खाना  सब एक दूसरे मे मिक्स होता है और फिर खाना पेस्ट मे बदलता हैं.! पेस्ट मे बदलने की क्रिया होने तक 1 घंटा 48 मिनट का समय लगता है ! उसके बाद जठराग्नि मंद यानी कम हो जाती है.! (बुझती तो नहीं लेकिन बहुत धीमी हो जाती है), पेस्ट बनने के बाद शरीर मे रस बनने की प्रक्रिया आरंभ होती है ! तब हमारे शरीर को पानी की आवश्यकता होती हैं। तब आप जितना इच्छा हो उतना पानी पिये.! जो बहुत मेहनती लोग है (खेत मे हल चलाने वाले, रिक्शा खीचने वाले, पत्थर तोड़ने वाले) । उनको 1 घंटे के बाद ही रस बनने लगता है उनको एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए !  अब आप कहेंगे खाना खाने के कितने मिनट पहले तक पानी पी सकते हैं? तो खाना खाने के 45 मिनट पहले तक आप पानी पी सकते हैं ! अब आप पूछेंगे ये मिनट का calculation....? बात ऐसी ही जब हम पानी पीते हैं तो वो शरीर के प्रत्येक अंग तक जाता है ! और अगर बच जाये तो 45 मिनट बाद मूत्र पिंड तक पहुंचता है.! तो पानी - पीने से मूत्र पिंड तक आने का समय 45 मिनट का है। तो आप खाना खाने से 45 मिनट पहले ही पाने पिये।

एक और जरूरी बात, चिंता, जलन, कुढ़न दुख के विचारों से जो रसायन पैदा होते हैं वो भी पाचन तंत्र को भारी नुकसान पहुचाते हैं। इसके बचाव के लिए “हम और हमारा रसायन शास्त्र” पोस्ट जरूर पढ़ें।

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