अक्सर आपने युवाओं को फोन से चिपके देखा होगा। उन्हें देखते ही आपके मन में एक ही ख्याल आता
है कि बहुत ज्यादा मोबाइल फोन पर चिपके रहने से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हो भी सकता है, और नहीं भी। हाल ही
में अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने कुछ दिलचस्प तथ्यों को खोज निकाला है, जो यह दिखाने की कोशिश करता है कि मोबाइल दिमाग को चुश्त करता है।
शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला मोबाइल फोन दरअसल दिमाग को अलग-अलग रूपों में प्रभावित करता है।
अध्ययन के अनुसार,
जो लोग मोबाइल से लंबे समय तक बात करते रहते हैं उनके दिमाग
अघिक सक्रिय हो जाता है। इस बात को पुख्ता करने के लिए 47
वर्ष तक के लोगों पर
लगभग एक साल तक परीक्षण किया गया। मोबाइल को प्रतिभागियों के दोनों कानों पर कुछ-कुछ समय के लिए प्रयोग
करवाया गया।
बारी-बारी से दोनों
साइड्स पर 50-50
मिनट मोबाइल का प्रयोग
करवाया गया। इनमें से कुछ
ऐसे प्रतिभागी भी थे जो मोबाइल फोन का प्रयोग करना नहीं जानते थे।
ये शोध के परिणाम पीईटी (पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा जांचे गए। जिसमें पाया
गया कि मनुष्य के दायी तरफ टेम्पोनरल पोल के मोबाइल के एंटीना के संपर्क में आते ही ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाती है। हालांकि ये अभी तक साबित नहीं हुआ है कि ग्लूकोज
का
बढ़ना खतरनाक है या
नहीं। प्रमाणित सबूतों में ये बात साफ जाहिर है कि ग्लूकोज मोबाइल एंटीना का टेम्पोपरल पोल के संपर्क में आते
ही बढ़ता है। ड्यूक चिकित्सा केंद्र के जैविक मनोचिकित्सक मुरली दुरईस्वामी का कहना है कि मनुष्य में
बढ़ने
वाले इस ग्लू़कोज से
फायदा पहुंचता है या नहीं लेकिन इसका नुकसान कुछ नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मौकों पर इस ग्लूकोज के
बढ़ने से मनुष्य का रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और मनुष्य अधिक एनर्जेटिक हो जाता है तथा उसकी कार्यक्षमता और
प्रदर्शन
पहले से अधिक अच्छा
दिखाई पड़ने लगता है।
इसका
दूसरा पक्ष भी देखना जरूरी है। मोबाइल का प्रयोग पिछले कुछ वर्षों में कई गुना हो
गया है। मोबाइल फोन elctro-magnetic ऊर्जा को उसके microwave फॉर्म
में use करते है। मोबाइल radiation से होने वाले हैल्थ issues पर
लगातार रिसर्च हो रही है। A 2007 assessment published by the European Commission Scientific Committee on
Emerging and Newly Identified Health Risks (SCENIHR) concludes that the three lines of evidence, viz. animal, in
vitro, and epidemiological studies, indicate that "exposure to RF
fields is unlikely to lead to an increase in cancer in humans".
मोबाइल
के लगातार प्रयोग से दिमाग के हिस्से धीरे धीरे सुन्न पड़ना शुरू हो जाते हैं। आगे
चलकर ध्यान उचटना, मन ना लगना, सिर में दर्द रहना जैसे symptom उभरना
शुरू हो जाते हैं। मोबाइल से निकलने वाली तरंगे सोचने की ताकत कम करती है। इसीलिए
ये कहना मुश्किल है कि मोबाइल का प्रयोग दिमाग को तेज करता है।
हालांकि देवदार-सिनाई मेडिकल सेंटर लॉस एंजिल्स के चेयरमेन केंट ब्लैक ने इस मामले में कुछ चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं। ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाने से मस्तिष्क में अल्जांइमर जैसी बीमारियों के होने का खतरा रहता है। हालांकि इस पर अभी और अनुसंधान जारी है। वैसे जब तक इसके नतीजे नहीं आ जाते तब तक आप अपने प्यारे गैजेट्स को सावधानी से प्रयोग करें।
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