Wednesday 5 May 2021

संस्कारों का मोल

मानवता व इंसानियत किसी की बपौती नहीं है। वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों इंदौर यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था, वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता, छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं । विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया ।वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था । आज इंदौर यात्रा पर दोनो रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे । मध्य प्रदेश की सीमा से बारिश होने लगी थी। भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था । परंतु चाय का समय हो गया था ।उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले। सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया ।जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे ।उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है। वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए , कोई नहीं था ।आवाज लगाई , अंदर से एक महिला निकल कर के आई। उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई ? वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए ,और कहा बेन दो कप चाय बना देना ।थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है। पैकेट लेकर के गाड़ी में गए ।वीणा बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया । चाय अभी तक आई नहीं थी । दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे ।वासु भाई ने फिर आवाज लगाई । थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई ।बोली -भाई, बाड़े में तुलसी लेने गई थी , तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई, अब चाय बन रही है । थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप ले करके वह गरमा गरम चाय लाई। मैले कप को देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए,और कुछ बोलना चाहते थे।परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया । चाय के कप उठाए ।उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी ।दोनों ने चाय का एक सिप लिया । ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी ।उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई। उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा," कितने पैसे ? महिला ने कहा - बीस रुपये वासु भाई ने सौ का नोट दिया । महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है । ₹. 20 छुट्टा दे दो ।वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस किया। वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं ! महिला बोली यह पैसे उसी के हैं ।चाय के पैसे नहीं लिए। अरे चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ? जवाब मिला ,हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह होटल नहीं है । -फिर आपने चाय क्यों बना दी ? - अतिथि आए ,आपने चाय मांगी ,हमारे पास दूध भी नहीं था । यह बच्चे के लिए दूध रखा था ,परंतु आपको मना कैसे करते ।इसलिए इसके दूध की चाय बना दी । -अब बच्चे को क्या पिलाओगी ? -एक दिन दूध नहीं पिएगा तो कुछ नहीं होगा। इसके बाबा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते ,पर उनको कल से बुखार है ।आज अगर ठीक हो जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे। वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी, और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के । संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं । उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं ,आपके पति कहां हैं बताएं । महिला उनको भीतर ले गई । अंदर गरीबी पसरी हुई थी ।एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे । बहुत दुबले पतले थे । वासु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला। माथा और हाथ गर्म हो रहे थे,और कांप रहे थे वासु भाई वापस गाड़ी में गए दवाई का अपना बैग लेकर के आए । उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी , खिलाई । फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा । मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं ।वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा । गाड़ी लेकर के गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन,ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकरआये। मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई ,और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे । एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी । दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की। जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े। 3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर , जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने, और दूध की थैली लेकर के आए । वापस उस दुकान के सामने रुके ,महिला को आवाज लगाई, तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये। उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया । वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए ।दूध के पैकेट दिए । फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया ।कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये । शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी। फिर एक फैसला लिया। अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे, फीस नहीं लेंगे ।फीस मैं खुद लूंगा। और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया । केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते ।गरीबों से न तो वो फीस लेते वरन दवा भी साथ में देते जो मरीज दूर दराज गाँवो से आते उन्हें तो वो बस या ट्रेन का किराया भी देते धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई । दूसरे डाक्टरों ने सुना।उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी, और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा । एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए, उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ? तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया । वासु भाई ने कहा कि *"मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा* *एमबीबीएस में भी ,एम डी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना ,परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है ,वह मुझसे आगे निकल गयी।* *तो मैं अब पीछे कैसे रहूं?* इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की । और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें ।गरीबों की निशुल्क सेवा करें ,उपचार करें ।यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं । परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है , एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय सेवा करुंगा।
यह घटना बहुत छोटी सी है पर मानवता और इंसानियत के लिए बहुत बड़ी सीख है। आज फॉइव स्टार होटलों के माफ़िक़ अस्पताल हो गये हैं, जो मरीज़ और उनके तीमारदारों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। जब देने वाला नहीं सोचता कि इलाज का खर्च मंहगा क्यों तब अस्पताल भी लेने में कोई गुरेज़ नहीं करता। फिर ऐसे अस्पताल क्यों मुफ़्त का इलाज़ करें। वक्त बदलने के लिए लोगों को जागना होगा। शार्ट कट अपनाने की जगह मेहनतकश बनना पड़ेगा। सरकारों ने मुफ़्तख़ोरी का ऐसा स्वाद लगा दिया है कि किसान ने खेत में मेहनत करना बंद कर दी है, गरीब भी मेहनत करने से कतराता है उसे मालूम है उसे सरकार मुफ़्त खाना दवाई देगी ही। पर अब समय आ गया है जागने का। 

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