ये सोचने की बात है, मेरी ज़िंदगी का उद्देश्य है क्या? पोजिशन, समाज में स्टेटस, बंगला, गाडी या कुछ और। आज हर कोई भागता हुआ नज़र आता है, पर उसे शायद यह नहीं समझ आता की वो क्यूँ भाग रहा है? आज इसके पीछे भागना, कल उसके पीछे भागना, शायद व्यक्ति की नियति ही यह बन जाती है कि वह मृगतृष्णा कि तरह भटकता रहे, भागता रहे, क्या मिला और क्या नहीं मिला, उसके बारे में सोचने का समय ही नहीं।
क्या है मेरे जीवन का उद्देश्य ??? इसका क्या मतलब हुआ? क्या मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना चाहता हूँ? ये है मेरा उद्देश्य?? क्या मैं दुनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति बनना चाहता हूँ?? या क्या मैं दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति बनना चाहता हूँ। क्या गलत है ऐसे लक्ष्य में? है, बहुत कुछ गलत है। ये सारे लक्ष्य एक व्यक्ति तक सीमित हैं। इसमे उस व्यक्ति का स्वार्थ निहित है। इस लक्ष्य में सेवाभाव का अभाव है। इस लक्ष्य में जीवन के मूल्यों के प्रति समर्पण का अभाव है। ऐसा लक्ष्य रखने वाला व्यक्ति अंत में दुखी ही नज़र आता है। इसका गवाह इतिहास है।
हमारा लक्ष्य यानि ज़िंदगी का उद्देश्य बिलकुल सुनिश्चित, साफ़ और दूरगामी, विस्तृत और सबसे बड़ी बात लक्ष्य सर्वभौम होना चाहिए। मानव मात्र की सेवा करना हमारा लक्ष्य हो सकता है। जीवन के उच्च मूल्यों को प्राप्त करके खुशी का अनुभव करना मेरा लक्ष्य हो सकता है। अपने बच्चों को संस्कारित करना हमारा लक्ष्य हो सकता है। समाज के हित साधन के लिए अपनी उपलब्धियों का इस्तेमाल करना, हमारा उद्देश्य हो सकता है।
लक्ष्य ऐसा होने चाहिए की जिंदगी ज़ीने का असली आनंद आ जाए। आपकी सफलता आपको उल्लासित करे, न कि चिंता का कारण बने।
लक्ष्य हासिल करने योग्य है या नहीं, यह सोचकर कभी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा सकता, वरन उस असंभव से लगने वाले उस लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए मैं अपना सौ प्रतिशत दे सकता हूँ यही सोच ही हमे उस लक्ष्य के करीब ले जाती है। कल्पना चावला सोलह दिन अन्तरिक्ष मे रहकर शटल से लौटते समय ठीक सोलह मिनट पहले उसका यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वो काल के गाल में समा गयी। कल्पना चावला का सपना अन्तरिक्ष कि उन ऊंचाइयों को छूना था जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते और उसने उस लक्ष्य को प्राप्त करके अपना और अपने देश क नाम स्वरणक्षरों में लिख दिया।
गांधी, विवेकानंद, विनोबा भावे, बाबा आमटे और ना जाने कितने नाम आपके ज़हन में आते होंगे जिन्होने अपनी जिंदगी को समर्पित कर दिया, उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिससे समाज, देश और मानव मात्र का भला हो सके। इसीलिए मनीषियों ने कहा है कि उद्देश्य यानि जीवन का लक्ष्य हमेशा ऊँचा होना चाहिए।
क्या है मेरे जीवन का उद्देश्य ??? इसका क्या मतलब हुआ? क्या मैं दुनिया का सबसे अमीर आदमी बनना चाहता हूँ? ये है मेरा उद्देश्य?? क्या मैं दुनिया का सबसे सुंदर व्यक्ति बनना चाहता हूँ?? या क्या मैं दुनिया का सबसे ताकतवर व्यक्ति बनना चाहता हूँ। क्या गलत है ऐसे लक्ष्य में? है, बहुत कुछ गलत है। ये सारे लक्ष्य एक व्यक्ति तक सीमित हैं। इसमे उस व्यक्ति का स्वार्थ निहित है। इस लक्ष्य में सेवाभाव का अभाव है। इस लक्ष्य में जीवन के मूल्यों के प्रति समर्पण का अभाव है। ऐसा लक्ष्य रखने वाला व्यक्ति अंत में दुखी ही नज़र आता है। इसका गवाह इतिहास है।
हमारा लक्ष्य यानि ज़िंदगी का उद्देश्य बिलकुल सुनिश्चित, साफ़ और दूरगामी, विस्तृत और सबसे बड़ी बात लक्ष्य सर्वभौम होना चाहिए। मानव मात्र की सेवा करना हमारा लक्ष्य हो सकता है। जीवन के उच्च मूल्यों को प्राप्त करके खुशी का अनुभव करना मेरा लक्ष्य हो सकता है। अपने बच्चों को संस्कारित करना हमारा लक्ष्य हो सकता है। समाज के हित साधन के लिए अपनी उपलब्धियों का इस्तेमाल करना, हमारा उद्देश्य हो सकता है।
लक्ष्य ऐसा होने चाहिए की जिंदगी ज़ीने का असली आनंद आ जाए। आपकी सफलता आपको उल्लासित करे, न कि चिंता का कारण बने।
लक्ष्य हासिल करने योग्य है या नहीं, यह सोचकर कभी लक्ष्य निर्धारित नहीं किया जा सकता, वरन उस असंभव से लगने वाले उस लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए मैं अपना सौ प्रतिशत दे सकता हूँ यही सोच ही हमे उस लक्ष्य के करीब ले जाती है। कल्पना चावला सोलह दिन अन्तरिक्ष मे रहकर शटल से लौटते समय ठीक सोलह मिनट पहले उसका यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और वो काल के गाल में समा गयी। कल्पना चावला का सपना अन्तरिक्ष कि उन ऊंचाइयों को छूना था जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते और उसने उस लक्ष्य को प्राप्त करके अपना और अपने देश क नाम स्वरणक्षरों में लिख दिया।
गांधी, विवेकानंद, विनोबा भावे, बाबा आमटे और ना जाने कितने नाम आपके ज़हन में आते होंगे जिन्होने अपनी जिंदगी को समर्पित कर दिया, उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए जिससे समाज, देश और मानव मात्र का भला हो सके। इसीलिए मनीषियों ने कहा है कि उद्देश्य यानि जीवन का लक्ष्य हमेशा ऊँचा होना चाहिए।