Each one of us have unique experiences in our lives. CRISH is my new journey to give back to the society. Changes in society do not come by-chance. In this phase of my life, I share my experiences so that someone finds them interesting, or gain some new ideas from them. Learning from others save energy, time, and encourage to innovate. Everyone constantly seek guidance. We at this foundation through our research work help teachers, students and parents to enrichtheir their life and help others.
Saturday, 14 January 2023
जड़ी बूटियों के साथ नवाचार का अनुभव
Sunday, 20 November 2022
मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी
ब्लॉग तो मैं काफ़ी समय से लिख रहा हूँ पर नियमित कभी नहीं था, बस शौक के लिखा लिखता था। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी का ब्लॉग देखा जो उन्होंने मेरे तेल के विषय में फ़ीडबैक दिया था। इसे ज़रुर पढियेगा। इनका लेखन सहज है, बहुत पैशन के साथ लिखा गया है और पढ़ने में जो आनंद आता है वो तो अवर्णनीय है।
https://gyandutt.com/2022/11/18/piyush-verma-oils/
फीडबैक का असर ये हुआ कि उनके नियमित पाठकों से कई लोगों ने तेल की माँग की और मैंने उनकी मांग का सम्मान किया। मैंने जब ज्ञानदत्त जी का ब्लॉग पढ़ा तो सच में समझ में आया कि अभिव्यक्ति क्या होती है ? अत्यंत सहज भाव से उन्होंने जो भी लिखा है, भरपूर मनोयोग से और पूरे आनंद के साथ। उनकी अभिव्यक्ति को सौ सौ सलाम।
अब मैं अपनी बात पर आता हूँ। मसाज़ के तेल की बैकग्राउंड कहानी। और ये बताना भी इसीलिए जरुरी है कि कुछ लोग बिना सोचे समझे तात्कालिक प्रतिक्रिया देने में निपुण होते हैं और ये वही लोग हैं जो किसी भी माहौल को बिगाड़ सकते हैं। हालाँकि बुद्धिमानों ने कहा है कि ऐसे लोगों की चिंता न करते हुए अपने उद्देश्य की पूर्ति में व्यक्ति को निरत रहना चाहिए, पर मेरा मानना है कि ऐसे लोगो को अपनी झोपड़ी के फूस तक आने का कभी मौका नहीं देना चाहिए। हाँ, तो मैं आपसे अपने उस तेल के विषय में जानकारी साझा करना चाहता था जिसके बारे में आदरणीय ज्ञान दत्त जी ने फीड बैक दिया था।
हमारे बाबूजी यानि स्व श्री शंकर दयाल वर्मा कृषि वैज्ञानिक थे और घर पर बाग बागवानी एक नियमित व्यवस्था थी। उस बागवानी में काम करना हम सब बच्चों का शौक भी था और कभी सज़ा भी। क्योंकि जब कभी शैतानी होती थी तो बतौर सज़ा क्यारी की गुढ़ाई करना, निंदाई करना, सिंचाई करना, कचरा साफ़ करना एक नियमित क्रम था। इसी नाते जड़ी बूटियाँ ढूँढना और जंगल से लाना भी उसी क्रम में शामिल था। हमारा घर फार्म्स में होता था जो कई सौ एकड़ में फैला होता था। बाबूजी को घर पर आयुर्वेदिक औषधीय तैयार करने का शौक था। और घर पर बहुत से नुस्खे तैयार होते थे जिन्हे हम आज भी इस्तेमाल करते हैं।
| Babuji and Amma |
मैं शिक्षा की दृष्टि से तो माइनिंग इंजीनियर हूँ लेकिन कृषि और बागवानी से कभी भी दूर नहीं जा पाया। माइनिंग से भी शुरू के 6-7 साल के बाद दूर होता गया। क्योंकि पहले मैं कोयला खदान में था, फिर पॉलिटेक्निक में माइनिंग विभाग में विभागाध्यक्ष रहा और वहाँ से राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान संस्थान में आ गया जिसने मेरी सीखने की प्रवृति को याज़्ज़ीवन जीवित रखा। इस संस्थान में मैंने तनाव प्रबंधन विषय पर अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ स्पीलबर्गर के सानिध्य एवं सहयोग से अपनी पी एच डी संपन्न की और उसके पश्चात लगभग 22 वर्षों तक तनाव प्रबंधन, शरीर के भौतिक, मानसिक और भावनात्मक पक्ष के प्रबंधन, कॉन्ससियनेस, न्यूरो पलास्टिसिटी जैसे विषयों पर शोध और प्रशिक्षण करता रहा। अपना जीवन स्वतंत्र रूप से जीने की ख्वाहिश के कारण लगभग 40 वर्षों की सेवा के उपरांत स्वैक्षिक सेवानिवृति लेकर 3 वर्ष पूर्व आर्गेनिक फार्मिंग की शुरुआत की।
एक दिन हमारे फार्म में मेरे पारिवारिक मित्र रवि जी सपरिवार आये थे तब उन्होंने बताया की उनकी श्रीमती जी यानि प्रोफेसर रेखा जी जोड़ो के दर्द और पैर दर्द से कई वर्षों से परेशान हैं। चूँकि जोड़ों की मालिश का तेल घर पर उपलब्ध था सो मैंने उनको दे दिया और बात आई गयी हो गयी। काफ़ी दिनों के बाद उन्होंने बताया कि उनके किसी रिश्तेदार को वो तेल चाहिए। और तब पता चला कि प्रोफेसर रेखा को उससे बहुत फ़ायदा हुआ और अब उनके पैरों में कोई सूजन नहीं आती और वो 4 -5 किलोमीटर आराम से घूम आती हैं। रवि जी की प्रेरणा से आज मालिश का तेल सौ से भी ज्यादा लोगों ने इस्तेमाल किया।
दांत का तेल भी नैसर्गिक जड़ी बूटियों और घटकों से बनाया जाता है। इसके भी कई सकारात्मक परिणाम मिले और कई लोगों के साथ साथ, ज्ञान दत्त जी ने उनकी पुष्टि भी की है।
इस तेल की कहानी बताने का अभिप्राय यही है कि अनर्गल बोलने वाले पहले सोच लें, समझ लें, फिर बोलें। हम स्वयं इन घर की बनी औषधियों का वर्षों से इस्तेमाल करते आ रहे हैं और उसके प्रभाव का अनुभव भी हो रहा है। चाहे वो घर का बना तेल हो, त्रिफला हो, या गिलोय अर्जुन की छाल का चूर्ण, बालों में लगाए जाने वाला तेल हो, या आफ्टर-बाथ आयल, या लिप और फुट बाम हो। मेरी इस यात्रा में मेरे पूरे परिवार का भरपूर सहयोग मिलता है, मार्केटिंग स्किल्स मुझे नहीं आती सो मेरा बेटा सिखा रहा है। किचन की जानकारियाँ मुझे मेरी पत्नी से मिलती हैं।
मैं अपने इस ब्लॉग से आदरणीय रवि जी और ज्ञान दत्त जी का धन्यवाद करना चाहूंगा कि उनकी प्रेरणा, उनका स्नेह और मोटिवेशन मेरे लिए एक मील का पत्थर साबित होगा।
Wednesday, 19 October 2022
The story of Chinese bamboo trees
Like any plant, to flourish the Chinese Bamboo Tree requires nurturing – water, fertile soil, sunshine. In the first year, there are no visible signs of activity or development. In the second year, again, no growth above the soil. And the third and fourth, still no signs. Patience is tested and we begin to wonder if our efforts will ever be rewarded.
Finally in the fifth year – voila! There is growth…and what growth it is! The Chinese Bamboo Tree grows 80 feet (nearly 30m) in just six weeks!
So the question is: Does the Chinese Bamboo Tree really grow 80 feet in six weeks? Did it lie dormant for four years only to grow exponentially in the fifth? Or, was the little tree growing underground, developing a root system and a stable base strong enough to support its potential for outward growth in the fifth year and beyond?
If the tree had not developed a strong unseen foundation, it could not have sustained its life as it grew.
Just as a house needs to have a strong foundation to survive. The same principle is true for people, success and your speaking career. People, toil towards their dreams and goals, building strong character while overcoming adversity and challenge, grow the strong internal foundation to handle success, while those who chase the “quick buck” are unable to sustain unearned sudden wealth. Remember the old saying: “Out of adversity comes opportunity.”
Had the farmer dug up his little seed every year to see if it was growing, he would have stunted the Chinese Bamboo tree’s growth as surely as a fledgling bird is doomed if it is freed from its struggle of breaking through the shell prematurely. The struggle in the egg is what gives the little bird the strength to grow and flourish, just as tension against muscles as we exercise strengthen our muscles, while muscles left alone will soon atrophy.
The Chinese Bamboo Tree is a perfect parable to our own experience with personal growth and change. And change is never easy. Often, signs of progress are slow, frustrating and unrewarding at times.
But it is so worth it….especially if we can be patient and persistent.
Thursday, 6 October 2022
उचित आचरण पर एक संवाद
एक प्रेरणादायी घटना
यह घटना मेरे मित्र के साथ हुई थी। एक व्यावहारिकता का संदेश इसमें छुपा है जो हमें भी उचित आचरण की सीख दे सकता है।हुआ यूँ कि मेरे मित्र की बुजुर्ग दादी का निधन हुआ तो उन्होंने सभी पट्टीदारों, इष्ट मित्रों और रिश्तेदारों को मृत्योपरांत आयोजन में आमंत्रित किया।
आयोजन के शिष्टाचार के तहत लोग हवन में शामिल हो रहे थे और प्रसाद ग्रहण कर विदा ले रहे थे। मेरे मित्र के एक रिश्तेदार दिल्ली से सपरिवार पधारे थे और कुछ नागपुर से आये थे। जब अंदर हवन चल रहा था तो ये सारे रिश्तेदार बाहर बैठकर ज़ोर ज़ोर से राजनीति पर बहस कर रहे थे। अंदर मित्र के परिवार भी पशोपेश में थे कि क्या बोलें ? चूँकि उनकी वापसी देर रात की ट्रेन से
थी सो हवन समाप्त होते ही उनके परिवार वालों ने उस कमरे पर क़ब्ज़ा कर लिया; वहीं पर हा हा ही ही, वहीं पर भोजन, वहीं पर यह पूछताछ कि आपके फ़लाँ नातेदार क्यूँ नहीं आये वग़ैरा वग़ैरा। मेरा मित्र अंदर से बहुत आहत था, पर समय की मर्यादा को देख कर चुप था। मेरे मित्र के पड़ोसी बुजुर्ग अंकल से ये सब देखा न गया, उन्होंने मेरे मित्र से अनुमति माँगी कि यदि उसे आपत्ति न हो तो वो इन लोगों से कुछ बात करना चाहता हूँ। वो बुजुर्ग बड़ी शालीनता से अंदर आये और उन रिश्तेदारों को संबोधित करते हुए कहा, “मैं आपको नहीं जानता हूँ लेकिन कुछ बातें मुझे खटक रहीं हैं, सो टोक रहा हूँ कृपया अन्यथा न लें। आप सब एक बुजुर्ग के मृत्योपरांत प्रकरण में शामिल हो रहे हैं, आपकी तरह अन्य लोग भी शामिल हैं, पर समय की मर्यादा और गरिमा को देखते हुए उचित आचरण और गंभीरता बनाये रखने से दुःखी परिवार को भी संबल मिलेगा। आपकी रात की ट्रेन थी तो किसी होटल में कमरा ले लेते उन रिश्तेदारों को अपनी भूल का अहसास हुआ और वो इस व्यवहार के लिए क्षमा माँगते हुए होटल में शिफ़्ट हो गये”।
बात बहुत अहम है, कभी कभी आवेश में हम ऐसे आयोजन की मर्यादा और गरिमा भूल जाते हैं और ऐसा व्यवहार कर बैठते हैं जिससे सामने वाले को बहुत चोट पहुँचती है। समयकाल को देखते हुए उचित आचरण रिश्तों में अनावश्यक खटास पैदा होने से बचाता है।
हमारा अस्तित्व
जीवात्मा का जीवात्मा से प्रेम प्रकृति का नियम है और जीवित अवस्था में यह रिश्तों नातों में दिखाई देता है। किसीपरिजन के मृत्यु के उपरांत उसके शरीर से प्रेम हमारे मन का भ्रम है। आत्मा स्वतंत्र है, चेतनामय है और अतीन्द्रिय है, जोजन्म जन्मों तक अपनी यात्रा निरंतर करती रहती है। एक आत्मा का दूसरी आत्माओं से संबंध स्वाभाविक होता है और फिरशरीर स्थूल हो या सूक्ष्म शरीर वह अपने संबंधों को पूरे स्नेह और सम्मान से संजोती है। सूक्ष्म में आत्मा ज़्यादा प्रखर और प्राणवान होती है। अपना शरीर छोड़ने के उपरांत ज़्यादा प्रखर और चेतनामय होकर अपने प्रियजनों और समाज का मार्गदर्शन करती है। अपने प्रियजनों के दुःख से उसकी ऊर्जा का शनैः शनैः ह्वास होता है और प्रियजनों के निरंतर मिलनेवाले दुःखों से वह निश्तेज़ होकर प्रेत योनि में चली जाती है। वहाँ नाना प्रकार की दुष्ट आत्माएँ उसकी शक्ति निरंतर क्षीण करती हैं। इसीलिए अपने प्रियजन के जाने का निरंतर शोक करना उचित नहीं है। यह व्याख्या वेदों और पुराणों में दर्ज है।
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