Thursday, 15 October 2015

आंतरिक रसायन विज्ञान- The Internal Chemistry

हम और हमारा रसायन शास्त्र- पार्ट II
क्या आपने कभी सोचा है किपिछले 10-15 वर्षों में समय के साथ-साथ बीमारियों का बड़ा जखीरा पैदा हो गया है। हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानि immunity दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।  बीमार हो भी गए, तो दवाएं काम ही नहीं करतीं। जो रोग पहले 10 mg की गोली से ठीक हो जाता है आज 500 mg से भी ठीक नहीं होता। बीमार करने वाले कीटाणु इतनी जल्दी अपना genetic code बदल लेते हैं कि दवा बनाने वाले भी चकरा जाएँ।   इसका सीधा असर हमारे रहन सहन और रिश्तों पर पड़ा है। Irritation, anxiety, गुस्सा और झुंझलाहट हर क्षण दिलो-दिमाग पर छाया रहता है। अब मन में ये डर बैठा होता है कि ये मत खाओ या ये मत पियो या यहाँ मत जाओ, आदि आदि । बच्चे ने सड़क के नलके का पानी पी लिया,  अब तो इसको पता नहीं कौन-कौन सी बीमारियाँ हो जाएंगी। आखिर ऐसा क्यू हो रहा है और इसका इलाज़ कहाँ है?
हुआ है ये कि हम स्वयं को manage करना ही नहीं जानते। मेरा मानना है, यदि आप अपने आप को अच्छे से manage कर सकते हैं तो दुनिया की किसी भी व्यवस्था या व्यक्ति/व्यक्तियों को manage कर सकते हैं। अब आप को छोटी छोटी बात पर anxiety होती है, तनाव होता है, गुस्सा आता है, तो आपका अपने ऊपर बस कहाँ रहा। फिर तो आपका बीमार होना लाज़मी है। आज की सबसे बड़ी जरूरत self-management की है। अपनी physical, mental और emotional बॉडी को manage करने की कला आना, आज सब से बड़ी जरूरत है। इसके लिए अपनी body chemistry को condition यानि अनुकूलन करना सबसे जरूरी है। ये बात ध्यान रखना जरूरी है कि आज जो हम हैं यानि हमारी फ़िज़िकल, मेंटल और इमोश्नल status उसकी नींव तो हमारे genetic code से शुरू हो गयी थी। समय के साथ हमने केवल स्थिति को ज़्यादातर बिगाड़ा ही है। लेकिन सुधार हमेशा संभव है, बशर्ते उसके लिए ईमानदार कोशिश की जाये। हमारी बॉडी केमिस्ट्री को regulate या deregulate करने का काम हमारे विचार यानि thoughts करते हैं। हमारे thoughts सीधे हमारे पेट से जुड़े होते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि हमारे विचारों का सीधा असर हमारे digestive system पर पड़ता है। anxiety, anger, grudge, कुढ़न, जलन, दुख के भाव या विचार शरीर में नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों कि भरमार कर देते हैं। जितने ज्यादा ऐसे विचार आएंगे, उतना ज्यादा रसायन शरीर मैं पैदा होगा। ये रसायन, नसों में दौड़ते हुए खून के साथ मिलकर सारे शरीर में फैल जाते हैं और समय आने पर अपच, acidity, अल्सर, सिरदर्द, जोड़ों का दर्द, मोटापा, बालों का झड़ना, असमय बूढ़ा होना, कैंसर, इत्यादि इत्यादि के रूप में प्रगट होते हैं। और तो और, ये हमारे दिमाग की कोशिकाओं को भी सुन्न या मृत कर देते है। ये रसायन हमारी न केवल दिमाग की वरन पूरे शरीर की कोशिकाओं को जल्दी-जल्दी निष्क्रिय करने का काम करते हैं, जिसके लिए विशेषज्ञ आपको  anti-oxidant लेने कि सलाह देते हैं। लेकिन.... anti-oxidant, इस समस्या का solution नहीं है, anti-oxidant आप कितना भी ले लें, जब तक सोचने का ढंग और नहीं बदलेगा, कुछ नहीं होगा। क्यूकी जब हम अपने सोचने का ढंग नहीं बदलेंगे , विचारों में सकारात्मक्ता नहीं लाएँगे, तब तक हालात नहीं  बदलेंगे, वरन दिन-प्रतिदिन बिगड़ते ही जाएंगे। इसका मतलब साफ है, यदि हमारे विचार सकारात्मक हैं जो हमे खुशी, love, affection, sharing, empathising के लिए प्रेरित करते हैं तो आप मान लें कि आप के शरीर मे अच्छे रसायन पैदा होंगे। जो आपको हमेशा खुशमिजाज़, energetic, हल्का फुल्का और मस्त रखेंगे। फिर आपको किसी anti- oxidant की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
हमारी कोशिका ही हमारी ज़िंदगी की क्वालिटी को निर्धारित करती है। अमूमन हर एक मिनट मैं कुछ हज़ार कोशिकाएँ खतम हो जाती हैं और उनकी जगह नयी कोशिकाएँ पैदा हो जाती हैं। इन कोशिकाओं का replacement जितना तेज होता है, शरीर उतनी ही तेजी से बूढ़ा होता चला जाता है। जब नुकसान पहुँचने वाले रसायन बहुत ज्यादा generate होने लगते हैं तब अच्छी कोशिकाओं के मृत होने की रफ़्तार बहुत ज्यादा हो जाती है। यानि हर कोशिका को लंबे समय तक जीवित रखना और उसे ऊर्जावान रखने में ही स्वस्थ शरीर और स्वस्थ जीवन की चाबी छुपी हुई है 
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कोशिकाओं को स्वस्थ रखने का मात्र एक उपाय है। नियमित आसान, प्राणायाम और ध्यान। यहाँ पर एक बात समझ लेना बहुत जरूरी है, हर इंसान के लिए आसन भले ही common हो सकते हैं, पर प्राणायाम और ध्यान अलग अलग ही होगा। हर व्यक्ति में स्थित प्राण की मात्रा के अनुसार प्राणायाम का चुनाव किया जाता है। प्राणायाम का प्रकार, स्वास की मात्रा, गति और लय व्यक्ति के प्राण की आवश्यकता के अनुसार निर्धारित करना होता है। प्राणवान व्यक्ति के चेहरे पर ओज़, तेज़ और प्राण की मात्रा साफ़ दिखाई पड़ती है। प्राणहीन व्यक्ति सूखा और निस्तेज दिखाई पड़ता है। इसीलिए न केवल प्राणायाम करना जरूरी है वरन इसे एक विशेषज्ञ की देख-रेख मे होना चाहिए, जिसे प्राणायाम और ध्यान का विज्ञान समझ आता हो। आजकल प्राणायाम और आसन के नाम पर बहुत से नौटंकिबाज अपनी दुकान खोले बैठे हैं। गलत ढंग से प्राणायाम चुनने या करने से बजाय लाभ के नुकसान होना निश्चित है। कभी प्राणायाम के विज्ञान पर विस्तृत चर्चा करेंगे। 

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