रिश्तों का मर्म
रिश्ते कुछ तो नैसर्गिक होते हैं जैसे माता, पिता, भाई, बहन, ताऊ, चाचा, मामा इत्यादि और इन रिश्तों की ख़ासियत यह होती है कि मान ना मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज़ पर टंगे होते हैं। इन रिश्तों में प्रेम, सरोकार और अपनापन कितना होता है यह निर्भर करता है कि उसको कितनी सहजता और विश्वास से सहेजा गया है। माँ- पिताजी, भाई बहन का रिश्ता याज्जीवन चलता है और निश्छल प्रेम और सरोकार का उत्तम उदाहरण साबित होता है, बशर्ते उसमें स्वार्थ, कलुषता और कपट हावी न हो। बाकी नैसर्गिक रिश्ते समय के साथ शनैः शनैः क्षीण होते चले जाते हैं पर खत्म कभी नहीं होते।
इसके अलावा एक रिश्ता होता है मित्र का। एक सच्चा मित्र किसी भी रिश्ते से ऊपर होता है, इस रिश्ते में अगाध स्नेह, सहजता और वास्तविक सरोकार होता है और सब कुछ निःशर्त और नि:स्वार्थ होता है।मित्रता की सैकड़ो कहानियाँ इतिहास में दर्ज़ हैं; यहाँ भी वही शर्त लागू होती है कि इसमें स्वार्थ और कपट हावी न हो। जिस दिन मित्रता में स्वार्थ और कपट हावी होता है, उस दिन वह रिश्ता कलंकित हो जाता है।माँ पिताजी या अन्य नैसर्गिक रिश्ते जब मित्रवत हो जाते हैं तब इस रिश्ते में वो अटूट विश्वास और वो ईश्वरीय ताक़त आ जाती है कि हम किसी भी विपरीत से जूझने के लिए हमेशा तैयार होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है बच्चों से पाँच वर्ष तक बहुत स्नेह, पाँच से सोलह वर्ष तक कठोर अनुशासन में और सोलह वर्ष के बाद मित्रवत व्यवहार करें।
तीसरा रिश्ता होता है सेवा का। नौकरी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यहाँ आत्मीयता, प्रेम, विश्वास और सरोकार गौण या न्यून हो जाते है और सब कुछ सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से नियंत्रित होता है। दिखावा, स्वार्थ और कपट अपनी सेवा को बेहतर साबित करने के साधन बन जाते है। निष्ठा, ईमानदारी, प्रतिबद्धता इत्यादि की बात जरूर होती है परन्तु उसमें सच्चाई कितनी है और दिखावा कितना, यह फिर भी, सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से ही नियंत्रित होता है। यदि सेवा शर्तें बहुत कठोर, अनुशासन वाली और नियंत्रण वाली होंगी, वहाँ ढोंग, दिखावा और कपट भी ज़्यादा होगा। ईश्वर की सेवा के नाम पर ढोंग, दिखावे और छल-कपट के अनगिनत क़िस्से हम रोज़ देखते और सुनते आये हैं।
एक रिश्ता और है जो ऊपर के तीनों से भिन्न और पूर्णतः निर्विकार, निराकार और आत्मीयता से परिपूर्ण है।वो रिश्ता जो शबरी और राम के बीच था, जो मीरा और गिरधर गोपाल के बीच था, जो राधा और कृष्ण के बीच था। इस रिश्ते में प्रेम, सरोकार और विश्वास चरम पर होता है। इस रिश्ते में ईश्वरीय तत्व की उपस्थिति महसूस की जा सकती है व ढोंग, दिखावे और छल-कपट का कोई स्थान नहीं होता है। हमें स्वयं से ऐसे रिश्ते जोड़ने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और ये बात मान लीजिए कि जिस दिन आपका अपने आप से साक्षात्कार हो जाएगा, आपके अंदर से वो सच्चा, उर्जावान और चैतन्य व्यक्तित्व पैदा होगा जो समाज में नयी इबारत लिख सकेगा।
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