Sunday, 13 December 2015

तनाव को रास्ता देता एक और कारण- मोबाइल फोन


अक्सर आपने युवाओं को फोन से चिपके देखा होगा। उन्हें देखते ही आपके मन में एक ही ख्याल आता है कि बहुत ज्यादा मोबाइल फोन पर चिपके रहने से स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, हो भी सकता है, और नहीं भी। हाल ही में अमेरिका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट ने कुछ दिलचस्प तथ्यों को खोज निकाला है, जो यह दिखाने की कोशिश करता है कि मोबाइल दिमाग को चुश्त करता है।

 शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला मोबाइल फोन दरअसल दिमाग को अलग-अलग रूपों में प्रभावित करता है। अध्ययन के अनुसार, जो लोग मोबाइल से लंबे समय तक बात करते रहते हैं उनके दिमाग अघिक सक्रिय हो जाता है। इस बात को पुख्ता करने के लिए 47 वर्ष तक के लोगों पर लगभग एक साल तक परीक्षण किया गया। मोबाइल को प्रतिभागियों के दोनों कानों पर कुछ-कुछ समय के लिए प्रयोग करवाया गया। बारी-बारी से दोनों साइड्स पर 50-50 मिनट मोबाइल का प्रयोग करवाया गया। इनमें से कुछ ऐसे प्रतिभागी भी थे जो मोबाइल फोन का प्रयोग करना नहीं जानते थे।
ये शोध के परिणाम पीईटी (पोजीट्रान एमिशन टोमोग्राफी) के द्वारा जांचे गए। जिसमें पाया गया कि मनुष्य के दायी तरफ टेम्पोनरल पोल के मोबाइल के एंटीना के संपर्क में आते ही ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाती है। हालांकि ये अभी तक साबित नहीं हुआ है कि ग्लू‍कोज का बढ़ना खतरनाक है या नहीं। प्रमाणित सबूतों में ये बात साफ जाहिर है कि ग्लू‍कोज मोबाइल एंटीना का टेम्पोपरल पोल के संपर्क में आते ही बढ़ता है। ड्यूक चिकित्सा केंद्र के जैविक मनोचिकित्सक मुरली दुरईस्वामी का कहना है कि मनुष्‍य में बढ़ने वाले इस ग्लू़कोज से फायदा पहुंचता है या नहीं लेकिन इसका नुकसान कुछ नहीं होता। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मौकों पर इस ग्लूकोज के बढ़ने से मनुष्य का रक्त प्रवाह बढ़ जाता है और मनुष्य अधिक एनर्जेटिक हो जाता है तथा उसकी कार्यक्षमता और प्रदर्शन पहले से अधिक अच्छा दिखाई पड़ने लगता है।
इसका दूसरा पक्ष भी देखना जरूरी है। मोबाइल का प्रयोग पिछले कुछ वर्षों में कई गुना हो गया है। मोबाइल फोन elctro-magnetic ऊर्जा को उसके microwave फॉर्म में use करते है। मोबाइल radiation से होने वाले हैल्थ issues पर लगातार रिसर्च हो रही है।  A 2007 assessment published by the European Commission Scientific Committee on Emerging and Newly Identified Health Risks (SCENIHR) concludes that the three lines of evidence, viz. animal, in vitro, and epidemiological studies, indicate that "exposure to RF fields is unlikely to lead to an increase in cancer in humans".

मोबाइल के लगातार प्रयोग से दिमाग के हिस्से धीरे धीरे सुन्न पड़ना शुरू हो जाते हैं। आगे चलकर ध्यान उचटना, मन ना लगना, सिर में दर्द रहना जैसे symptom उभरना शुरू हो जाते हैं। मोबाइल से निकलने वाली तरंगे सोचने की ताकत कम करती है। इसीलिए ये कहना मुश्किल है कि मोबाइल का प्रयोग दिमाग को तेज करता है।
 हालांकि देवदार-सिनाई मेडिकल सेंटर लॉस एंजिल्स के चेयरमेन केंट ब्लैक ने इस मामले में कुछ चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं। ओरबिटोफ्रंटल कॉरटैक्स में 7 फीसदी ग्लूकोज की माञा बढ़ जाने से मस्तिष्क में अल्जांइमर जैसी बीमारियों के होने का खतरा रहता है। हालांकि इस पर अभी और अनुसंधान जारी है। वैसे जब तक इसके नतीजे नहीं आ जाते तब तक आप अपने प्यारे गैजेट्स को सावधानी से प्रयोग करें।

अवसाद पर ध्यान देना क्यू जरूरी है।


 अवसाद और उसका शरीर पर प्रभाव
अवसाद ऐसी बीमारी है जिसके कारण बहुत से हो सकते हैं। यह कभी भी किसी एक कारण से नहीं होता है बल्कि कई कारणों से मिलकर होता है जैसे  केमिकल, भौतिक एवं मानसिक भारत में लगभग एक मिलियन लोग अवसाद के शिकार हैं। यह मानव जीवन को किसी भी प्रकार से प्रभावित कर सकता है। वो लोग जो डिप्रेशन से परेशान होते हैं उनके पर्सनल और प्रोफेशनल रिश्ते भी इस बीमारी के प्रभाव से नहीं बच पाते हैं।

अवसाद मानव जीवन के हर भाग को प्रभावित करता है जैसे फिज़ीक, बाडी, मूड, लाइफस्टाइल और सोचने समझने की शक्ति।
अवसाद का मतलब होता है कुण्ठा, तनाव, आत्महत्या की इच्छा होना। अवसाद यानी डिप्रेशन मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए हानिकारक है, इसका असर स्‍वास्‍थ्‍य पर भी पड़ता है और व्यक्ति के मन में अजीब-अजीब से ख्या‍ल घर करने लगते हैं। वह चीजों से डरने और घबराने लगता है। आइए जानें कैसे खतरनाक है अवसाद।

 §  अवसाद के चलते व्यक्ति का न सिर्फ मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य बल्कि शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य भी बिगड़ने लगता है।

§  अवसाद में रहते हुए व्यक्ति की आत्महत्या की इच्छा प्रबल होने लगती है।

§  व्यक्ति के मन में हीनभावना होना, कुण्ठा पनपना, अपने को दूसरों से कम आंकना, तनाव लेना सभी अवसाद के लक्षण है।

§  व्यक्ति अवसाद के कारण अपने काम पर सही तरह से फोकस नहीं कर पाता।

§  कुछ समय पहले के आंकड़ो पर गौर करें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया के ज्यादातर बड़े शहरों में डिप्रेशन की समस्या का बहुत तेजी से विस्तार हुआ है। भारत जैसे विकासशील देशों में 10 पुरुषों में से एक व 5 महिलाओं में से एक अपनी जिंदगी के किसी न किसी पड़ाव पर डिप्रेशन का शिकार बनते हैं।

§  कोई व्यक्ति अवसाद से ग्रसित रहता है तो उसे डिमेंशिया होने की आशंका अधिक बढ़ जाती है।

§  अवसाद से हृदय और मस्तिष्क को भी भारी खतरा उत्पन्न हो सकता है।

§  अवसाद और मधुमेह से पीड़ित लोगों में दिल से जुड़ी बीमारियां, अंधापन और मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है।

§  डिप्रेशन से हार्ट डिज़ीज जैसे हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

§  इम्यून सिस्टम पर अतिरिक्त असर पड़ता है।

§  मानसिक बीमारी से हृदय संबंधी बीमारी के चलते मौत का खतरा 75 साल की उम्र तक दो गुना अधिक होता है।

§  अवसाद से व्यक्ति किसी पर जल्दी से भरोसा नहीं कर पाता।
§  वह अधिक गुस्सेवाला और चिड़चिड़ा हो जाता है।

डिप्रेशन से प्रभावित लोगों के आम लक्षणः
§  उस समय जीवन से निराश होना जबकी जीवन में जीने के लिए बहुत कुछ हो।
§  आनन्द वाली किसी भी चीज़ में आनन्द ना उठा पाना।
§  हमेशा थका थका सा महसूस करना।
§  किसी भी काम का निर्णय ना ले पाना।
§  ज़िन्दगी के लिए एक उलझा हुआ नज़रिया होना।
§  बिना कारण वज़न का बढ़ना या कम होना।
§  खान पान की आदतों में बदलाव।
§  आत्महत्या के उपाय करना और आत्महत्या के बारे में सोचना जिसका अर्थ है, कि इससे व्यक्ति के सामाजिक और पारिवारिक रिश्ते प्रभावित होते हैं।
§  डिप्रेशन दुख की तुलना में कहीं आधिक समय तक रहता है। वो लोग जो डिप्रेशन से प्रभावित होते हैं उनके काम नार्मल लोगों की तुलना में बहुत कम होते हैं। डिप्रेशन में रहने वाले लोग दुखी और निराश होते हैं, लेकिन वह बस दुखी ही नहीं होते बल्कि बिना किसी बड़े कारण के जीवन से हार जाते हैं।
§  डिप्रेशन पढ़ाई, इन्कम या मैराइटल स्टेटस से किसी भी प्रकार से नहीं जुडा होता है।
 पुरूषों की तुलना में महिलाएं अवसाद से अधिक प्रभावित होती हैं। कुछ शोधकर्ता ऐसा मानते हैं कि अवसाद से वो महिलाएं प्रभावित होती हैं जिनका कोई इतिहास होता है जैसे कि वो पहले कभी सेक्सुअली एब्यूज़ हुई हों या फिर उन्हें किसी प्रकार की इकानामिक परेशानी हुई हो।

कई दूसरी बीमारियों की तरह अवसाद भी एक अनुवांशिक बीमारी है। अवसाद की एवरेज एज 20 वर्ष से उपर होती हैं। कुछ फिज़ीशियन ऐसा मानते हैं कि ड्रिप्रेशन या अवसाद दिमाग में मौजूद कैंमिकल्स में हुई गड़बड़ी से होता है इसलिए वो एण्टी डिप्रेसेंट दवाएं देते हैं । लेकिन अभी तक ऐसा कोई टेस्ट सामने नहीं आया है, जिसकी मदद से इन कैमिकल्स का लेवल पता किया जा सके। इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं मिला है कि मूड बदलने से जीवन के अनुभव बदलते हैं या इन अनुभवों से मूड बदलता है।
अवसाद शारीरिक परेशानियों से भी जुड़ा होता है जैसे फिज़िकल ट्रामा या हार्मोन में होने वाला बदलाव। डिप्रेशन या अवसाद के मरीज़ को अपना शारीरिक टेस्ट भी करा लेना चाहिए।
डिप्रेशन के कुछ ऐसे लक्षण जिनमें प्रोफेशनल ट्रीटमेंट की तुरन्त आवश्यकता होती है:
  • मरने या आत्महत्या की कोशिश करना। यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, ऐसी स्थिति में प्रोफेशनल थेरेपिस्ट से सम्पर्क करना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
  • जब डिप्रेशन के लक्षण लम्बे समय तक दिखें।
  • आपके काम करने की शक्ति दिन पर दिन क्षिण होती जा रही है।
  • आप दुनिया से कटते जा रहे हैं।
  • डिप्रेशन का इलाज सम्भव है। इस बीमारी में व्यक्ति का शारीरिक से ज़्यादा मानसिक रूप से स्वस्थ होना ज़रूरी होता है। ऐसी स्थिति में ऐसा मित्र बनायें जो आपकी बातों को समझ सके और अकेले कम से कम रहने की कोशिश करें।

Tuesday, 17 November 2015

Most impacting quotes, I like most !!

Comfort zone is a place that restrict me to think out of box. I grew because I dared to cross my comfort zone all the time.
 We think our students can not learn unless I (teacher) teach them. I am seriously mistaken, they already know much more than I do. Only thing, I have a board to dictate my terms, where as they have their fantasy to excel.

Give them a board and see, they can do wonders. Never teach them. Just open up the platform for them, they can learn on their own.





Accepting the people, situation or things as they are make it easy for me to work with because I do not exaggerate or assume non-sense. 







Lastly, emotions count. Never be emotional but be emotionally intelligent enough to ensure that crux of relationship lies in "CONCERN".

बॉडी मसाज ऑइल-कुछ अनुभूत प्रयोग- १

  जिंदगी में रिसर्च एक मौलिक तत्व है, जो होना चाहिए, दिखना चाहिए ,उसका इस्तेमाल अपनी जिंदगी के उत्तरोत्तर सुधार के लिए किया जाना चाहिए। मैंन...