Wednesday 22 April 2020

कविता - क्या मैं हूँ, क्या मैं नहीं

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🙏🙏🙏🙏🙏
क्या मैं हूँक्या मैं हूँ नहीं??
समझ आज भी नहीं पाताक्या मैं हूँ या क्या मैं हूँ नहीं। 
पूछता हूँ अपने आप सेक्या मैं हूँ सही या मैं सही नहीं। 

उहापोह थी तब ज़िंदगी कीजो भागती जा रही थी बड़ी रफ़्तारें से,
वो सारे स्टेशन छूट गयेकरना था जिनका दीदार बड़े एतबार से।

दर्द झलकता है जब पटल परभरा मन और भीग जाती हैं पलकें कभी,
सवाल कौंधता है बार बार मन मेंक्या मैं सही हूँ या मैं सही नहीं। 

वक्त लेता है इम्तहान बड़ाबेवक्त की अनगढ़ चुनौतियाँ कर के खड़ी,
टटोल कर ढूँढना पड़ता है अपने वज़ूद कोक्या मैं हूँक्या मैं हूँ नहीं। 

कभी लगता हैभाग कर जा पहुँचूँ फिर उन्हीं वक्त के स्टेशनों पर मैं,
ढ़ूँढू उन गुमे हुए चेहरों कोऔर खुशनसीब हो जाऊँ उन को फिर लगाकर मैं। 

(C) Peeyush Verma
समझ आज भी नहीं पाताक्या मैं हूँ या क्या मैं हूँ नहीं। 
पर असल में ऐसा कुछ होता है नहींजो होता है सहीदिखता है वही,

भावनाओं को छोड़ पगलेआत्मबल से पूछ अपने वो है सही या है नहीं 
भरोसा कर अपने आप परतू जो है नहींवो नहीं और जो हैवही है सही। 

LIFE AFTER CORONA- THE NEW CHALLENGES

Pandemic of Covid 19 is showing different state of affairs, different colors, different politics, different economic and financial conditions throughout the world. World's richest will remain richest or world's strongest will remain strongest, is a big question today??

Many equations of life and life management will change. Any individual whether industrialist, CEO, worker, educationist, students, daily wage earner or house wife; everybody's life is going to change in a big way. It you want to remain safe, healthy and LIVE then you have to adapt to changing situations else you are bound to face severe consequences.
We have to realise that
1. Covid-19 may go but its variants may remain for long, therefore all measures like keeping safe distance and keeping mask may continue for years.
2. Our physical, mental and emotional immunity is the key to make ourselves stronger. We have to adopt means to make our physical body stronger through asan, yoga, pranayam and meditation. To make mental and emotional body stronger, we have to resort to pure means of managing our conscience, belief system, thoughts through devotional, spiritual and conscious path of living.

Water pollution3. Connecting with nature will solve many of today's problem. Pollution can only be addressed if we move closer to nature. Pollution is created by industries, vehicles, electro-magnetic transmission in many ways and that has to be dealt with having rural industries. Reforming rural sector is most critical at this moment of time. Rural industries will pave way for generating more avenues for employment as well producing products which will lessen the pollution also.

4. Work from home will become a culture. One has to adapt healthy techniques to maintain good physical, mental and emotional health while we work from home. Most of the organisations will switch over this new culture. We may need different ways of appraisal in such situations. Keeping the workers motivated will be a big challenge and will need to be evolved ways to keep their motivation and energy level high. online training will need to be modified and need to be delivered for new competencies, skills and attitudes.

5. In time to come ways and means of imparting education must change. Micro-learning and adaptive learning has to be mobile friendly and therefore use of AI in this direction will be a great challenge. Micro-learning i.e. learning using smaller chunks are not only easier to employ, but they improve learners' retention levels—a learning manager's dream! With long modules, learners are more likely to get bored and lose engagement, therefore learning modules have to be redesigned. Even the techniques of assessment of leaning will need to be innovated so that intrest towards learning is maintained.
Now let us initiate making changes in our life-style management so as to remain healthy and happy in days to come.

Friday 10 April 2020

कोरोना की चिट्ठी

(अमरीका में सोशल मीडिया पर घूम रही इस  चिट्ठी का अंगरेजी से हिंदी में भावानुवाद #संध्या_शैली ने किया है , जिसमें भावपूर्ण अंश जोड़ कर एक सशक्त लेख पेश है)

धरती कब से तुमसे बात करने की कोशिश कर रही थी। बार बार उसने इशारे किये पर तुमने नहीं देखा। धरती ने बार बार तुम्हारे कान में फुसफुसाया लेकिन तुमने नहीं सुना। तुम उसे अनदेखा ही करते गये। एक माँ का ह्रदय कितना विशाल होता है, सब बर्दाश्त करता गया।
फिर धरती ने आवाज दी लेकिन तुमने ध्यान नहीं दिया।
धरती फिर जोर से चिल्लाई लेकिन फिर भी तुमने उसे अनसुना कर दिया। उसकी आवाज़ का दर्द मैंने गर्भ में सुना था। इतना विह्वल करने वाला दर्द और चीत्कार। मेरे जनक ने तुम्हारी ओर देखा कि कितने दंभ से तुम अपनी ही माँ की दुर्दशा करने में लगे हो।
और फिर मै पैदा हुआ.....
मैं तुम्हे सजा देने के लिये पैदा नहीं हुआ हूं। केवल चेताने आया हूँ | बहुत हो गयी अति, अब बस करो |
केवल तुम्हे जगाने के लिये आया हूं। अब तो जाग जाओ|

धरती बार बार मदद के लिये गुहार लगाती रही......
विनाशकारी बाढें ......लेकिन तुम अनजान बने रहे, तुमने उसमें छुपा धरती माँ का दर्द नहीं दिखा|
जलते जंगल .........लेकिन तुमने उस ओर से आंखें मूंद लीं
भयावह तूफान ............लेकिन तुमने फिर भी नहीं सुना
तुम उस वक्त भी जानबूझ कर तुम अनजान बने रहे जब, तुम्हारे द्वारा दूषित पानी से समुद्री जीव जान देते रहे ओैर हिमनद अप्रत्याषित और खतरनाक रफ्तार से पिघलते रहे| तुम कितने कठोर हो गए थे.
दर्दनाक सूखे की मार भी तुमने झेली
लेकिन इस सबके बावजूद तुम नहीं समझे कि धरती कितना नकारात्मक प्रहार सहन कर रही है।

अंतहीन युद्ध......
अंतहीन लालच.......
तुम बस अपनी जिंदगी जीते रहे
बिना इसकी परवाह किये कि कितनी घृणा तुमने अपने आस पास पैदा कर ली है
बिना इसकी परवाह किये कि कितना खून रोज बह रहा है
तुम्हारे लिये धरती की पुकार सुनने और जानने से अधिक
Coronavirus disease 2019तुम्हारी विलासता, तुम्हारा दंभ, तुम्हारा दिखावा अधिक महत्वपूर्ण हो गया।

लेकिन अब मै आ गया हूं|
और मैने दुनियां को वो जहां थी वहीं की वहीं रोक दिया है
अंततःमैने तुम्हे धरती को सुनने के लिये मजबूर कर दिया
मैने तुम्हे शरणागत होने  को मजबूर कर दिया
तुम्हे पंगु बना दिया है,
तुम्हारे सोचने समझने की शक्ति कमज़ोर कर दी है|
मैने तुम्हारे उपभोक्तावाद पर अंकुश लगा दिया
अब तुम भी धरती माँ की तरह हो गये हो|
केवल अपने अस्तित्व की चिंता करते हुये
कैसा लग रहा है अब ?????

China's coronavirus death toll surges, fuels speculation cases ...मैने तुम्हारे शरीर को तपाया ठीक वैसे
जैसे तुम जंगलों को जलाकर धरती को तपाते हो
मैने तुम्हारे फेफडे कमजोर कर दिये ठीक वैसे
जैसे तुमने प्रदूषण फैला कर धरती के कर दिये
मैने तुम्हारा दम घोंट दिया ठीक वैसे
जैसे प्रदूषण फेैला कर तुम धरती का दम घोंट रहे थे
मैने तुम्हे कमजोर कर दिया ठीक वैसे
जैसे दिन पर दिन धरती कमजूोर होती जा रही थी
मैने तुम्हारा चैन छीन लिया
तुम्हारा बिना मतलब बाहर घूमना
तुम्हारा इस धरती और इसकी तकलीफ की चिंता किये बगैर तमाम चीजों का उपयोग करना
मैने सब कुछ बंद करके इस दुनियां को जहां थी वहीं खड़ी कर दिया।

और अब...
चीन में हवा अधिक साफ है और आकाष नीला दिखाई देता है क्योंकि कारखानों का धुंआ उस पर कालिख नहीं पोत रहा
वेनिस में पानी साफ हो गया है और उसमें तैरती डाॅल्फिन भी दिखाई देने लगी हैं क्योकि उस पानी को गंदला करने और डाॅल्फिन का दम घोंटने वाली
गोंडोला बोट उसमें चलनी बंद हो गयी।
दिल्ली की हवा बिलकुल साफ़ हो गयी है क्युकि उसमे दम घोटूं धुआं नहीं है, उसमे ध्वनि प्रदुषण नहीं है.
Delhi breathes clean air in nearly a year as AQI slips to 65 ...
तुम्हारे पास अभी समय है यह सोचने के लिये कि
आखिर तुम्हारी जिंदगी के लिये क्या सबसे अधिक महत्वपूर्ण है
एक बार फिर
मैं यहां तुम्हे सजा देने नहीं, तुम्हे जगाने आया हूं|
जब यह वक़्त भी बीत जायेगा और मैं चला जाउंगा|
हमेशा इन पलों को याद रखना। धरती माँ का आर्तनाद याद रखना| अपने पापों को याद रखना|

धरती को सुनो और उसे अपनापन दो|
अपने आप को सुनो और अपने आप को जीने की वजह दो|
अपने मन का प्रदूषण खत्म करो|
धरती को प्रदूषित मत करो,
 जाति,धर्म,रंग और भाषा, के नाम पर एक दूसरे से मत लड़ो
(याद रखना मैने किसी में फर्क नहीं किया,धरती भी किसी में फर्क नहीं करती)

भोगवादी तरीके से जीना बंद करो
और अपने पड़ोसियों से मोहब्बत करना शुरू करो
धरती और उसके जीवों की चिंता देखभाल रक्षा करना शुरू करो
इस प्रकृति पर विश्वास करना शुरू करो
क्योंकि
अगली बार हो सकता है जब मैं वापस आऊं तो शायद और भी अधिक ताकत के साथ आऊं !!
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Monday 7 October 2019

वक्त वक्त की बात है........

वक्त वक्त की बात 
*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.....!!*

*वक्त देने वाले ने बड़ी मुरव्वत की है*
*बाकी का हिसाब लेता नहीं*
*वक्त का पूरा हिसाब रखता है*
*वक्त मिले तो ख़ुशियाँ बाँटते चलो*
*मुस्कुराने की वजह ना होतो भी मुस्कुराते चलो*

*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.....!!*

*पाने को कुछ है नहीं,*
*ले जाने को कुछ होता नहीं;*
*जो जाना हैहमेशा साथ रहता है*
*उड़ जाएंगे एक दिन...*
*तस्वीर से रंगों की तरह........!!*
*हम वक्त की टहनी पर...*
*बैठे हैं परिंदों की तरह.........!!*

*खटखटाते रहिए दरवाजा...*
*एक दूसरे के मन का;*
*मुलाकातें ना सही,*
*आहटें आती रहनी चाहिए!!*
*बस याद करके ही सही मुस्कुराते रहना चाहिए*

*ना राज़ है ये ... “ज़िन्दगी”*
*ना नाराज़ है ये ... “ज़िन्दगी";*
*बस जो हैवो आज है ये... “ज़िन्दगी”*
*आपका दिन शुभ हो*
🌝🌝🌝

Monday 16 September 2019

जिंदगी की परिभाषा

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कभी सोचो...............
जिंदगी की यह भाग दौड़,
आज यहाँ, कल वहाँ....
आज ये, कल वो........
कितना ज़रूरी है जो
जिंदगी को जिंदगी बनाने के लिए,





कभी सोचो ......................
कितनी दौलत चाहिए तुम्हें, सुकून से जीने के लिए
कमाते कमाते थक जाओगे,
कहीं धरी की धरी रह जाएगी,
और घर भर जायेगा कबाड़ से, और शरीर अनगिनत रोगों से,
आज की बड़ी नियामत है, तंदरुस्त सेहत और खुशनुमा मन,
इससे बड़ी दौलत भी नहीं आज,
कभी सोचो,
क्या है ये दौलत तुम्हारे पास...........
??



कभी सोचो...........
जिंदगी को चाहिए क्या ? 
दो पल का सुकून और एक स्वस्थ शरीर,
जो अपने आपको अंत तक संभाल सके;
उस अंतिम यात्रा के लिए,
जिसमें चाहे अनचाहे सबको जाना ही है। 

कभी सोच कर देखो.....
भागो उतना जितना ज़रूरी है शरीर के लिए,
लो उतना ही, जो ज़रूरी है जिंदगी के लिए;
दो “आत्मा” को वो तृप्ति, जो ‘उसे’ दिव्य अनुभव दे,
चेतना का पुंज दे, आरोग्य का भाव दे,
शांति का सरोकार दे, खुद पर विश्वास दे.......
वहीं मिलता है दो पल का सुकून और 
एक स्वस्थ शरीर, जिसमें बसती है,
एक दिव्य पुण्यात्मा। 
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Thursday 27 June 2019

Live healthy, die safe

Open your joy channel
If you are most times in pains, you tend to have your pain channels open and as a result pain becomes the natural flow of emotions for any reaction. Your brain, in that case simply understands pains, pains and only pains. So it receives pain signals and delivers pain signals. Joy channel or happiness channel become foreign to it. 

So if you are impulsive, aggressive, agitated and angered most of the time then be sure that your pain delivering neurological gateway are wide open. Your body tend to discharge harmful chemicals and poisonous matter as a result of mind-body interactions of pain and misery. Even a little anxiety becomes the source of ignition to those active neurotransmitters capable to release poison in the body. This also clogs many pathways and seal many happiness channels. The important point to bring good health to you is open up the happiness channels.
The joy channels and happiness channels become dormant. Each cell of the body responds to signals from brain through these neurotransmitters. If cells are happy and healthy, you will remain happy and healthy. But if these cells have to receive only poison all the time they will become weak and fragile. They die faster than their normal life-span and as a result your body starts ageing faster than its natural course of ageing.

If you want to remain happy and healthy and want to die peacefully, you will have to keep your cells happy and healthy. And for that, most important action you have to do is to train your mind to convert the pain channels to neutral channels first and later recharge these channels as pleasure channels. Reopening is an exercise that needs to be carried out and practiced regularly in life, else your body will forget feel good feelings and you will end up in a diseased state. There is absolutely “No no no” medicine t
o open up happiness channels except for neurotransmitters to be awakened, recharged and reactivated. Pranayam and meditation are the practices need to be adapted as part of daily life to find a way for rejuvenation. These practices are need to be learned from the masters who know the science and art of pranayam and meditation. A word of caution- 🤔 Never fall victim to hacks and quacks otherwise you will end up cursing me. 🤗..



Saturday 1 June 2019

रिश्तों का मर्म

रिश्तों का मर्म
रिश्ते कुछ तो नैसर्गिक होते हैं जैसे माता, पिता, भाई, बहन, ताऊ, चाचा, मामा इत्यादि और इन रिश्तों की ख़ासियत यह होती है कि मान ना मान मैं तेरा मेहमान की तर्ज़ पर टंगे होते हैं। इन रिश्तों में प्रेम, सरोकार और अपनापन कितना होता है यह निर्भर करता है कि उसको कितनी सहजता और विश्वास से सहेजा गया है। माँ- पिताजी, भाई बहन का रिश्ता याज्जीवन चलता है और निश्छल प्रेम और सरोकार का उत्तम उदाहरण साबित होता है, बशर्ते उसमें स्वार्थ, कलुषता और कपट हावी न हो। बाकी नैसर्गिक रिश्ते समय के साथ शनैः शनैः क्षीण होते चले जाते हैं पर खत्म कभी नहीं होते।
इसके अलावा एक रिश्ता होता है मित्र का। एक सच्चा मित्र किसी भी रिश्ते से ऊपर होता है, इस रिश्ते में अगाध स्नेह, सहजता और वास्तविक सरोकार होता है और सब कुछ निःशर्त और नि:स्वार्थ होता है।मित्रता की सैकड़ो कहानियाँ इतिहास में दर्ज़ हैं; यहाँ भी वही शर्त लागू होती है कि इसमें स्वार्थ और कपट हावी न हो। जिस दिन मित्रता में स्वार्थ और कपट हावी होता है, उस दिन वह रिश्ता कलंकित हो जाता है।माँ पिताजी या अन्य नैसर्गिक रिश्ते जब मित्रवत हो जाते हैं तब इस रिश्ते में वो अटूट विश्वास और वो ईश्वरीय ताक़त आ जाती है कि हम किसी भी विपरीत से जूझने के लिए हमेशा तैयार होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है बच्चों से पाँच वर्ष तक बहुत स्नेह, पाँच से सोलह वर्ष तक कठोर अनुशासन में और सोलह वर्ष के बाद मित्रवत व्यवहार करें।
तीसरा रिश्ता होता है सेवा का। नौकरी इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। यहाँ आत्मीयता, प्रेम, विश्वास और सरोकार गौण या न्यून हो जाते है और सब कुछ सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से नियंत्रित होता है। दिखावा, स्वार्थ और कपट अपनी सेवा को बेहतर साबित करने के साधन बन जाते है। निष्ठा, ईमानदारी, प्रतिबद्धता इत्यादि की बात जरूर होती है परन्तु उसमें सच्चाई कितनी है और दिखावा कितना, यह फिर भी,  सेवा आदान- प्रदान की शर्तों से ही नियंत्रित होता है। यदि सेवा शर्तें बहुत कठोर, अनुशासन वाली और नियंत्रण वाली होंगी, वहाँ ढोंग, दिखावा और कपट भी ज़्यादा होगा। ईश्वर की सेवा के नाम पर ढोंग, दिखावे और छल-कपट के अनगिनत क़िस्से हम रोज़ देखते और सुनते आये हैं। 
एक रिश्ता और है जो ऊपर के तीनों से भिन्न और पूर्णतः निर्विकार, निराकार और आत्मीयता से परिपूर्ण है।वो रिश्ता जो शबरी और राम के बीच था, जो मीरा और गिरधर गोपाल के बीच था, जो राधा और कृष्ण के बीच था। इस रिश्ते में प्रेम, सरोकार और विश्वास चरम पर होता है। इस रिश्ते में ईश्वरीय तत्व की उपस्थिति महसूस की जा सकती है व ढोंग, दिखावे और छल-कपट का कोई स्थान नहीं होता है। हमें स्वयं से ऐसे रिश्ते जोड़ने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और ये बात मान लीजिए कि जिस दिन आपका अपने आप से साक्षात्कार हो जाएगा, आपके अंदर से वो सच्चा, उर्जावान और चैतन्य व्यक्तित्व पैदा होगा जो समाज में नयी इबारत लिख सकेगा। 

Saturday 20 April 2019

कविता जन्मदिवस पर

यह कविता मैंने अपनी भाँजी के जन्मदिन पर लिखी थी। शुरूआती दौर पर जीवन का संघर्ष अमूमन तोड़ देने वाला होता है। पर बोलते हैं न, जब ईश्वर को देना होता है, तो वो ख़ूब ठोक बज़ाकर परीक्षा लेता है और उसमें पास होने पर ही वो इनाम देता है। आशा-निराशा के हिचकोले खाते उसकी जिंदगी में भी परीक्षाओं के बहुत सारे पड़ाव आये। दोस्तों को नौकरी मिलती गयी, दोस्तों की शादियाँ होती गईं, पर एक चीज़ जिसका साथ उसने नहीं छोड़ा, वह था उसका आत्मविश्वास। अंततः ईश्वर प्रसन्न हुए, अच्छी नौकरी भी मिली और बेहद भले परिवार में शादी भी। आज वो एक बहुत से प्यारे बेटे की माँ है और अपने परिवार की लाड़ली बहू। उसके जन्मदिन पर समर्पित यह कविता
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कब बड़ी हो गयी किताबों को पढ़ते पढ़ते;
थम सी गई थी ज़िंदगी, बस यूँ ही चलते चलते,
अचानक थाम लिया दामन ख़ुशियों ने हँसते हँसते,
अब जम” रही है जिंदगीअपनों से मिलते जुलते। 

रखना सब” संभाल के, “अपनों” के बीच में तुम
तन्हाई में भी लेना ढूँढख़ुशियों के मोती चुन के;
जीवन के फ़लसफ़े हैं बड़ेकिताबों में न मिलेंगे यूँ,
दिलों को थामें रखनादुआ करते हैं यही दिल से। 
आशीष है हमाराबस यूँ ही ख़ुश रहना तुम,
हाथों को थामें रखना”, बढ़ना साथ सब मिल के। 

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Sunday 31 March 2019

दाँत का दर्द

एक व्यक्ति को दाँत में असहनीय पीड़ा थी, दर्द के मारे बुरा हाल था। डॉक्टर को दिखाना था, पर मन नहीं मान रहा था। मन में सैकड़ो विचार आ रहे थे, पता नहीं कितने दाँत ख़राब हैं, डॉक्टर पता नहीं कितने दाँत निकालेगा, अगर रूट केनाल करना पड़ा तो और भीषण कष्ट होगा। दवा से मेरा पेट ख़राब हो जाता है। इन विचारों से उसके कष्ट में तो कोई कमी नहीं आई वरन वह निराशा में डूबने लगा। अंत्तोगत्वा थकहार कर उसे डॉक्टर की शरण में जाना ही पड़ा। डॉक्टर ने एक्स रे किया और तीन दिन

दवा लेने के बाद एक सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दी।घर पहुँच कर वह दवा लेने पर विचार कर ही रहा था कि उसके मन में फिर से उहापोह शुरु हो गई, पिछले बार उसने जब दवा खाई थी तो तीन दिन तक पेट ख़राब रहा था, मिसेज़ शर्मा ने दाँत के डाक्टर को दिखा कर दवा ली थी और दवा के रिएक्शन से उनके सारे शरीर में सूजन आ गई थी। दवा लूँ या न लूँ के उहापोह में यूँ ही तीन दिन निकल गये और वह मात्र एक दिन की दवा लेकर वह डाक्टर के पास पहुँच गया। डाक्टर ने चेक किया और पूछा, आपने दवा बराबर खाई थी न और उसने झूठमूट हाँ कह दी। डाक्टर ने कहा कि उसका घाव नहीं भरा है उसे तीन दिन और दवा लेनी होगी। दाँत के दर्द के मारे उसकी बुरी गत बन गयी थी, मरता क्या न करता, मज़बूरी में वह तीन दिन दवा लेकर अपने मित्र के साथ फिर वह डाक्टर के पास पहुँचा और डॉक्टर ने सड़ा हुआ दाँत निकाल दिया। लौटते वक्त उसका मित्र उसे वृद्धाश्रम होते हुए लौटा जहाँ उनकी मुलाक़ात वृद्धाश्रम के संचालक से हुई। वे अत्यन्त बुजुर्ग लेकिन शालीन व्यक्तित्व, ओज़ और तेज़ से भरे हुए थे। जब बुजुर्ग ने उसे देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा। उसने अपने मन की सारी व्यथा उनके सामने उँड़ेल दी। बुजुर्ग ने शाँतचित्त होकर उसकी सारी बातें सुनी, फिर वे बोले सहन शक्ति है, तो बिना फ़ालतू के विचार करे सहो। दर्द और फ़ालतू के विचार दोंनो ख़त्म हो जाएँगे। वरना दर्द तुम्हें जीने नहीं देगा और फ़ालतू के विचार तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे। मन का मूल स्वभाव ही अस्थिरता है और वह तुम्हें तब तक परेशान करता रहेगा जब तक तुम परेशान होते रहोगे। जैसे ही तुम निश्चय करोगे कि तुम चाहे जो हो जाये दर्द बर्दाश्त कर सकते हो तो उसी क्षण दर्द कम होने लगेगा। 
बुजुर्ग ने आगे कहा, मन की अस्थिरता आज एक गंभीर समस्या बन गई है। लोगों की एकाग्रता और संयम जैसे चुक गये हों। कभी सहयोगियों से नहीं बनती, कभी बॉस से, कभी घर पर और कभी पड़ोसियों से खटपट होती रहती है। अगर तुम्हें जीवन का वास्तविक आनंद लेना है तो अपने उपर भरोसा करना सीखो क्योंकि मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। 

Monday 13 August 2018

अब इतिहास बनाना है

अब इतिहास बनाना है.........

बीती रीती बातों को, कटती चुभती बातों को
बिसराकर आगे बढ़ जाना है;
इस नये जन्म दिवस पर हमको, शालीन संदेश जगाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


उत्साह न अब बिखरने पाये, राहें भी अब न भटकने पायें
छेड़े वो संगीत नया, यूँ मिलकर हम गुनगुनायेंगे
रुकना नहीं है अब हमको, वो लक्ष्य ही हमको पाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


जो समझें हमको खोटे सिक्के, जो समझें हमको रीते बीते
जब चमकेंगे हम हीरों के मानिंद, वो भी अचरज कर जायेंगे
करके पूरी मेहनत हमको, बस ऐसा नाम कमाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


मेहनतकश का वो स्पंदन, आज अभी भी बाकी है
कण कण फिर से जुड़ने को, हर साज अभी भी बाकी है
छेड़ें फिर संगीत नया, हम बस गाते जायेंगे
इस नये जन्म दिवस पर हमको, शालीन संदेश जगाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।

Sunday 12 August 2018

ज़िंदगी की रफ़्तार पर कुछ पंक्तियाँ

आहिस्ता चल अब ऐ ज़िंदगी,
जीवन की इबारत अभी बाक़ी है,
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है;

रफ़्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए,
रूठों को मनाना बाक़ी है,
छुटो को मिलाना बाक़ी है;

कुछ रिश्ते बनकर जुड़ते गए,
कुछ जुड़े हुए थे, छुट गए,
उन सब मीठे मीठे रिश्तों के,
जोड़ों को जमाना बाकी है;

जीवन की सहज पहेली को,
अब क्या सुलझाना बाक़ी है?
आहिस्ता चल ऐ मेरी ज़िंदगी,
जीवन का गीत अभी बा
क़ी  है.

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...