Monday 9 August 2021

आध्यात्मिक बातें और ज़िंदगी से सरोकार

 विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियों द्वारा किया गया अनुसंधान)

■ काष्ठा = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग

■ 1 त्रुटि  = सैकन्ड का 300 वाँ भाग

■ 2 त्रुटि  = 1 लव ,

■ 1 लव = 1 क्षण

■ 30 क्षण = 1 विपल ,

■ 60 विपल = 1 पल

■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,

■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )

■3 होरा=1प्रहर व 8 प्रहर 1 दिवस (वार)

■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,

■ 7 दिवस = 1 सप्ताह

■ 4 सप्ताह = 1 माह ,

■ 2 माह = 1 ऋतू

■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,

■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी

■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,

■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग

■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,

■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,

■ 4 युग = सतयुग

■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग

■ 72 महायुग = मनवन्तर ,

■ 1000 महायुग = 1 कल्प

■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )

■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )

■ महालय  = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यहीं है जो हमारे देश भारत में बना हुआ है । यह त्रुटिहीन गणना सेकेंड के हजारवें भाग तक जाकर समय का आकलन करती है।

दो लिंग : नर और नारी ।

दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।

दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।

दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।

तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।

तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।

तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।

तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।

तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।

तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।

तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।

तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।

तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।

तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।

तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।

तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।


चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।

चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।

चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।

चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।

चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।

चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।

चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।

चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।

चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।

चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।

चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।

चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।

चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।

चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।

चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।

चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।

चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।


पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।

पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।

पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।

पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।

पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।

पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।

पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।

पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।

पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।

पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।

पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।

पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।

पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।


छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।

छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।

छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।

छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।


सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।

सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।

सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।

सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।

सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।

सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।

सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।

सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।

सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।

सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।

सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।

सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।

सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।


आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।

आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।

आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।

आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।


नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।

नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।

नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।


दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।

दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।

दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।

दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।

दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

हमारे शास्त्र और उनके रचयिता 

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                    वाल्मीकि

3-महाभारत                  वेदव्यास

4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य

5-महाभाष्य                  पतंजलि

6-सत्सहसारिका सूत्र      नागार्जुन

7-बुद्धचरित                  अश्वघोष

8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष

9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र

10- स्वप्नवासवदत्ता        भास

11-कामसूत्र                  वात्स्यायन

12-कुमारसंभवम्           कालिदास

13-अभिज्ञानशकुंतलम्    कालिदास  

14-विक्रमोउर्वशियां        कालिदास

15-मेघदूत                    कालिदास

16-रघुवंशम्                  कालिदास

17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास

18-नाट्यशास्त्र              भरतमुनि

19-देवीचंद्रगुप्तम          विशाखदत्त

20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक

21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट

22-वृहतसिंता               बरामिहिर

23-पंचतंत्र।                  विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव

25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु

26-मुद्राराक्षस               विशाखदत्त

27-रावणवध।              भटिट

28-किरातार्जुनीयम्       भारवि

29-दशकुमारचरितम्     दंडी

30-हर्षचरित                वाणभट्ट

31-कादंबरी                वाणभट्ट

32-वासवदत्ता             सुबंधु

33-नागानंद                हर्षवधन

34-रत्नावली               हर्षवर्धन

35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन

36-मालतीमाधव         भवभूति

37-पृथ्वीराज विजय     जयानक

38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर

39-काव्यमीमांसा         राजशेखर

40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त

41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र

43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष

44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण

45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र

46-गीतगोविन्द            जयदेव

47-पृथ्वीराजरासो         चंदरवरदाई

48-राजतरंगिणी           कल्हण

49-रासमाला               सोमेश्वर

50-शिशुपाल वध          माघ

51-गौडवाहो                वाकपति

52-रामचरित                सन्धयाकरनंदी

53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-

प्र.1-  वेद किसे कहते है ?

उत्तर-  ईश्वरीय ज्ञान की पुस्तक को वेद कहते है।

प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब दिया ?

उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?

उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?

उत्तर- चार ।                                                  

1-ऋग्वेद 

2-यजुर्वेद  

3-सामवेद

4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।

        वेद              ब्राह्मण

1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय

2 - यजुर्वेद      -     शतपथ

3 - सामवेद     -    तांड्य

4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।

उत्तर -  चार।

      वेद                     उपवेद

    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद

    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद

    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद

    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।

उत्तर -  छः ।

1 - शिक्षा

2 - कल्प

3 - निरूक्त

4 - व्याकरण

5 - छंद

6 - ज्योतिष


प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?

उत्तर- चार ऋषियों को।

         वेद                ऋषि

1- ऋग्वेद         -      अग्नि

2 - यजुर्वेद       -       वायु

3 - सामवेद      -      आदित्य

4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा


प्र.10-  वेदों का ज्ञान ईश्वर ने ऋषियों को कैसे दिया ?

उत्तर- समाधि की अवस्था में।


प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?

उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।


प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?

उत्तर-   चार ।

        ऋषि        विषय

1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान

2-  यजुर्वेद    -    कर्म

3-  सामवे     -    उपासना

4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।

1-  मंडल      -  10

2 - अष्टक     -   08

3 - सूक्त        -  1028

4 - अनुवाक  -   85 

5 - ऋचाएं     -  10589


यजुर्वेद में।

1- अध्याय    -  40

2- मंत्र           - 1975


सामवेद में।

1-  आरचिक   -  06

2 - अध्याय     -   06

3-  ऋचाएं       -  1875


अथर्ववेद में।

1- कांड      -    20

2- सूक्त      -   731

3 - मंत्र       -   5977

          

प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।


प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?

उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।


प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?

उत्तर-  नहीं।


प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?

उत्तर-  ऋग्वेद।


प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 


प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?

उत्तर- 

1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।

2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।

3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।

4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।

5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।

6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।


प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?

उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।


प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?

उत्तर-  केवल ग्यारह।


प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?

उत्तर-  

01-ईश ( ईशावास्य )  

02-केन  

03-कठ  

04-प्रश्न  

05-मुंडक  

06-मांडू  

07-ऐतरेय  

08-तैत्तिरीय 

09-छांदोग्य 

10-वृहदारण्यक 

11-श्वेताश्वतर ।


प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?

उत्तर- वेदों से।

प्र.24- चार वर्ण।

उत्तर- 

1- ब्राह्मण

2- क्षत्रिय

3- वैश्य

4- शूद्र


प्र.25- चार युग।

1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।

2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।

3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।

4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।

कलयुग के 5122  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।

4,27024 वर्षों का भोग होना है। 


पंच महायज्ञ

       1- ब्रह्मयज्ञ   

       2- देवयज्ञ

       3- पितृयज्ञ

       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ

       5- अतिथियज्ञ

   

स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।

नरक  -  जहाँ दुःख है।.


*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!


भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।


*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।


*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।


*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।


*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।


*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।


*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।


*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 


*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।


*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।


*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।


*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।


*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।


*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।


*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।


*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।


*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।


रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।


तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।


जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।


रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।


*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।


*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।


*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।


*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।


*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।


*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।


*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।


*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।


*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।


*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।


*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।


*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।


*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।


*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।


*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।


 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।


*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।


*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।


*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।


*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों j दिए है

Wednesday 5 May 2021

संस्कारों का मोल

मानवता व इंसानियत किसी की बपौती नहीं है। वासु भाई और वीणा बेन गुजरात के एक शहर में रहते हैं। आज दोनों इंदौर यात्रा की तैयारी कर रहे थे। 3 दिन का अवकाश था, वे पेशे से चिकित्सक थे ।लंबा अवकाश नहीं ले सकते थे ।परंतु जब भी दो-तीन दिन का अवकाश मिलता, छोटी यात्रा पर कहीं चले जाते हैं । विवाह के बाद दोनों ने अपना निजी अस्पताल खोलने का फैसला किया, बैंक से लोन लिया ।वीणा बेन स्त्री रोग विशेषज्ञ और वासु भाई डाक्टर आफ मेडिसिन थे ।इसलिए दोनों की कुशलता के कारण अस्पताल अच्छा चल निकला था । आज इंदौर यात्रा पर दोनो रवाना हुए ,आकाश में बादल घुमड़ रहे थे । मध्य प्रदेश की सीमा से बारिश होने लगी थी। भोजन तो मध्यप्रदेश में जाकर करने का विचार था । परंतु चाय का समय हो गया था ।उस छोटे शहर से चार 5 किलोमीटर आगे निकले। सड़क के किनारे एक छोटा सा मकान दिखाई दिया ।जिसके आगे वेफर्स के पैकेट लटक रहे थे ।उन्होंने विचार किया कि यह कोई होटल है। वासु भाई ने वहां पर गाड़ी रोकी, दुकान पर गए , कोई नहीं था ।आवाज लगाई , अंदर से एक महिला निकल कर के आई। उसने पूछा क्या चाहिए ,भाई ? वासु भाई ने दो पैकेट वेफर्स के लिए ,और कहा बेन दो कप चाय बना देना ।थोड़ी जल्दी बना देना, हमको दूर जाना है। पैकेट लेकर के गाड़ी में गए ।वीणा बेन और दोनों ने पैकेट के वैफर्स का नाश्ता किया । चाय अभी तक आई नहीं थी । दोनों कार से निकल कर के दुकान में रखी हुई कुर्सियों पर बैठे ।वासु भाई ने फिर आवाज लगाई । थोड़ी देर में वह महिला अंदर से आई ।बोली -भाई, बाड़े में तुलसी लेने गई थी , तुलसी के पत्ते लेने में देर हो गई, अब चाय बन रही है । थोड़ी देर बाद एक प्लेट में दो मैले से कप ले करके वह गरमा गरम चाय लाई। मैले कप को देखकर वासु भाई एकदम से अपसेट हो गए,और कुछ बोलना चाहते थे।परंतु वीणाबेन ने हाथ पकड़कर उनको रोक दिया । चाय के कप उठाए ।उसमें से अदरक और तुलसी की सुगंध निकल रही थी ।दोनों ने चाय का एक सिप लिया । ऐसी स्वादिष्ट और सुगंधित चाय जीवन में पहली बार उन्होंने पी ।उनके मन की हिचकिचाहट दूर हो गई। उन्होंने महिला को चाय पीने के बाद पूछा," कितने पैसे ? महिला ने कहा - बीस रुपये वासु भाई ने सौ का नोट दिया । महिला ने कहा कि भाई छुट्टा नहीं है । ₹. 20 छुट्टा दे दो ।वासुभाई ने बीस रु का नोट दिया। महिला ने सौ का नोट वापस किया। वासु भाई ने कहा कि हमने तो वैफर्स के पैकेट भी लिए हैं ! महिला बोली यह पैसे उसी के हैं ।चाय के पैसे नहीं लिए। अरे चाय के पैसे क्यों नहीं लिए ? जवाब मिला ,हम चाय नहीं बेंचते हैं। यह होटल नहीं है । -फिर आपने चाय क्यों बना दी ? - अतिथि आए ,आपने चाय मांगी ,हमारे पास दूध भी नहीं था । यह बच्चे के लिए दूध रखा था ,परंतु आपको मना कैसे करते ।इसलिए इसके दूध की चाय बना दी । -अब बच्चे को क्या पिलाओगी ? -एक दिन दूध नहीं पिएगा तो कुछ नहीं होगा। इसके बाबा बीमार हैं वह शहर जा करके दूध ले आते ,पर उनको कल से बुखार है ।आज अगर ठीक हो जाएगे तो कल सुबह जाकर दूध ले आएंगे। वासु भाई उसकी बात सुनकर सन्न रह गये। इस महिला ने होटल ना होते हुए भी अपने बच्चे के दूध से चाय बना दी, और वह भी केवल इसलिए कि मैंने कहा था ,अतिथि रूप में आकर के । संस्कार और सभ्यता में महिला मुझसे बहुत आगे हैं । उन्होंने कहा कि हम दोनों डॉक्टर हैं ,आपके पति कहां हैं बताएं । महिला उनको भीतर ले गई । अंदर गरीबी पसरी हुई थी ।एक खटिया पर सज्जन सोए हुए थे । बहुत दुबले पतले थे । वासु भाई ने जाकर उनका मस्तक संभाला। माथा और हाथ गर्म हो रहे थे,और कांप रहे थे वासु भाई वापस गाड़ी में गए दवाई का अपना बैग लेकर के आए । उनको दो-तीन टेबलेट निकालकर के दी , खिलाई । फिर कहा- कि इन गोलियों से इनका रोग ठीक नहीं होगा । मैं पीछे शहर में जा कर के और इंजेक्शन और इनके लिए बोतल ले आता हूं ।वीणा बेन को उन्होंने मरीज के पास बैठने का कहा । गाड़ी लेकर के गए, आधे घंटे में शहर से बोतल, इंजेक्शन,ले कर के आए और साथ में दूध की थैलीयां भी लेकरआये। मरीज को इंजेक्शन लगाया, बोतल चढ़ाई ,और जब तक बोतल लगी दोनों वहीं ही बैठे रहे । एक बार और तुलसी और अदरक की चाय बनी । दोनों ने चाय पी और उसकी तारीफ की। जब मरीज 2 घंटे में थोड़े ठीक हुए, तब वह दोनों वहां से आगे बढ़े। 3 दिन इंदौर उज्जैन में रहकर , जब लौटे तो उनके बच्चे के लिए बहुत सारे खिलौने, और दूध की थैली लेकर के आए । वापस उस दुकान के सामने रुके ,महिला को आवाज लगाई, तो दोनों बाहर निकल कर उनको देख कर बहुत खुश हो गये। उन्होंने कहा कि आप की दवाई से दूसरे दिन ही बिल्कुल स्वस्थ हो गया । वासु भाई ने बच्चे को खिलोने दिए ।दूध के पैकेट दिए । फिर से चाय बनी, बातचीत हुई, अपनापन स्थापित हुआ। वासु भाई ने अपना एड्रेस कार्ड दिया ।कहा, जब भी आओ जरूर मिले ,और दोनों वहां से अपने शहर की ओर लौट गये । शहर पहुंचकर वासु भाई ने उस महिला की बात याद रखी। फिर एक फैसला लिया। अपने अस्पताल में रिसेप्शन पर बैठे हुए व्यक्ति से कहा कि अब आगे से आप जो भी मरीज आयें, केवल उसका नाम लिखेंगे, फीस नहीं लेंगे ।फीस मैं खुद लूंगा। और जब मरीज आते तो अगर वह गरीब मरीज होते तो उन्होंने उनसे फीस लेना बंद कर दिया । केवल संपन्न मरीज देखते तो ही उनसे फीस लेते ।गरीबों से न तो वो फीस लेते वरन दवा भी साथ में देते जो मरीज दूर दराज गाँवो से आते उन्हें तो वो बस या ट्रेन का किराया भी देते धीरे धीरे शहर में उनकी प्रसिद्धि फैल गई । दूसरे डाक्टरों ने सुना।उन्हें लगा कि इस कारण से हमारी प्रैक्टिस कम हो जाएगी, और लोग हमारी निंदा करेंगे । उन्होंने एसोसिएशन के अध्यक्ष से कहा । एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ वासु भाई से मिलने आए, उन्होंने कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हो ? तब वासु भाई ने जो जवाब दिया उसको सुनकर उनका मन भी उद्वेलित हो गया । वासु भाई ने कहा कि *"मैं मेरे जीवन में हर परीक्षा में मेरिट में पहली पोजीशन पर आता रहा* *एमबीबीएस में भी ,एम डी में भी गोल्ड मेडलिस्ट बना ,परंतु सभ्यता संस्कार और अतिथि सेवा में वह गांव की महिला जो बहुत गरीब है ,वह मुझसे आगे निकल गयी।* *तो मैं अब पीछे कैसे रहूं?* इसलिए मैंने यह सेवा प्रारंभ की । और मैं यह कहता हूं कि हमारा व्यवसाय मानव सेवा का है। सारे चिकित्सकों से भी मेरी अपील है कि वह सेवा भावना से काम करें ।गरीबों की निशुल्क सेवा करें ,उपचार करें ।यह व्यवसाय धन कमाने का नहीं । परमात्मा ने मानव सेवा का अवसर प्रदान किया है , एसोसिएशन के अध्यक्ष ने वासु भाई को प्रणाम किया और धन्यवाद देकर उन्होंने कहा कि मैं भी आगे से ऐसी ही भावना रखकर के चिकित्सकीय सेवा करुंगा।
यह घटना बहुत छोटी सी है पर मानवता और इंसानियत के लिए बहुत बड़ी सीख है। आज फॉइव स्टार होटलों के माफ़िक़ अस्पताल हो गये हैं, जो मरीज़ और उनके तीमारदारों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। जब देने वाला नहीं सोचता कि इलाज का खर्च मंहगा क्यों तब अस्पताल भी लेने में कोई गुरेज़ नहीं करता। फिर ऐसे अस्पताल क्यों मुफ़्त का इलाज़ करें। वक्त बदलने के लिए लोगों को जागना होगा। शार्ट कट अपनाने की जगह मेहनतकश बनना पड़ेगा। सरकारों ने मुफ़्तख़ोरी का ऐसा स्वाद लगा दिया है कि किसान ने खेत में मेहनत करना बंद कर दी है, गरीब भी मेहनत करने से कतराता है उसे मालूम है उसे सरकार मुफ़्त खाना दवाई देगी ही। पर अब समय आ गया है जागने का। 

Sunday 2 May 2021

मौत का उत्सव

कोरोना ने एक नए सच से हम सबको रूबरू कराया है | हम कितने इस बात से इत्तफ़ाक़ रखते हैं ये तो समय ही बताएगा लेकिन कहीं ना कहीं हमें इन बातों पर विचार जरुर कर लेना चाहिए |
*अपनी मृत्यु...अपनो की मृत्यु डरावनी लगती है बाकी तो मौत का उत्सव मनाता है मनुष्य...
* मौत के स्वाद का चटखारे लेता मनुष्य *थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है......
* ... *मौत से प्यार नहीं , मौत तो हमारा स्वाद है ।
* बकरे का,तीतर का, मुर्गे का, हलाल का, बिना हलाल का,भुना हुआ,छोटी मछली, बड़ी मछली, हल्की आंच पर सिका हुआ । न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के । क्योंकि मौत किसी और की, ओर स्वाद हमारा । स्वाद से कारोबार बन गई मौत । मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्स । नाम "पालन" और मक़सद "हत्या" । स्लाटर हाउस तक खोल दिये । वो भी ऑफिशियल । गली गली में
खुले नान वेज रेस्टॉरेंट मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ?

*मौत से प्यार और उसका कारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।
* जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं, उनकी असहायता को हमने अपना बल कैसे मान लिया ? कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ?
*डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते है, बेटा कभी किसी का दिल नही दुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए !
* बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हडडी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी , जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी ...?? जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ? जिसकी आहें निकली होंगी ? जिसने बद्दुआ भी दी होगी ? कैसे मान लिया कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो *भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे ?
* क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं ? क्या उस इश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ? आज कोरोना वायरस उन जानवरों के लिए, ईश्वर के अवतार से कम नहीं है । जब से इस वायरस का कहर बरपा है, जानवर स्वच्छंद घूम रहे है । पक्षी चहचहा रहे हैं । उन्हें पहली बार इस धरती पर अपना भी कुछ अधिकार सा नज़र आया है । पेड़ पौधे ऐसे लहलहा रहे हैं, जैसे उन्हें नई जिंदगी मिली हो । धरती को भी जैसे सांस लेना आसान हो गया हो । सृष्टि के निर्माता द्वारा रचित करोङो करोड़ योनियों में से एक कोरोना ने हमें हमारी ओकात बता दी । घर में घुस के मारा है और मार रहा है । ओर उसका हम सब कुछ नही बिगाड़ सकते । अब घंटियां बजा रहे हो, इबादत कर रहे हो, प्रेयर कर रहे हो और भीख मांग रहे हो उससे की हमें बचा ले । धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद के लिए कभी ईद पर बकरे काटते हो, कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो । कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो । कभी सोचा.....!!! क्या ईश्वर का स्वाद होता है ? ....क्या है उनका भोजन ? किसे ठग रहे हो ? भगवान को ? अल्लाह को ? या जीसस को ? या खुद को ? मंगलवार को नानवेज नही खाता ...!!! आज शनिवार है इसलिए नहीं...!!! अभी रोज़े चल रहे हैं ....!!! नवरात्रि में तो सवाल ही नही उठता....!!!
*झूठ पर झूठ....* *....झूठ पर झूठ* *....झूठ पर झूठ...!!
झूठ है या नहीं। इसका निर्णय बड़ा व्यक्तिगत भी है और देश काल परिस्तिथि पर भी निर्भर करता है। ये आस्था का विषय भी है क्यूँकि हम अक्सर इन बातों को धर्म के चश्में से देखते हैं।  खानपान का सीधा सम्बन्ध भौगोलिक स्थिति, तापमान और आजीविका के संसाधनों की उपलब्धता से है। अब जो व्यक्ति लेह लद्दाख या आर्कटिक के बर्फीले पहाड़ों के बीच में रहता है उसके पास खाने के बड़े काम विकल्प होते हैं और मांसाहार उनकी आवश्यकता बन जाता है। 
* फिर कुतर्क सुनो.....फल सब्जियों में भी तो जान होती है ...? .....तो सुनो फल सब्जियाँ संसर्ग नहीं करतीं , ना ही वो किसी प्राण को जन्मती हैं । इसी लिए उनका भोजन उचित है । ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी । ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म मृत्यु के चक्र से निकलने का रास्ता ढूँढ सको । लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं को भगवान समझ लिया । आज कोरोना के रूप में मौत सामने खड़ी है । तुम्ही कहते थे, की हम जो प्रकति को देंगे, वही प्रकृति हमे लौटायेगी । मौते दीं हैं प्रकृति को तो मौतें ही लौट रही हैं । *बढो...!!!* *आलिंगन करो मौत का....!!!
* यह संकेत है ईश्वर का । प्रकृति के साथ रहो। प्रकृति के होकर रहो ।
*वर्ना..... ईश्वर अपनी ही बनाई कई योनियो को धरती से हमेशा के लिए विलुप्त कर चुके हैं । उन्हें एक क्षण भी नही लगेगा ।* 
 *प्रकृति की ओर चलो🙏
* 🙏🙏 🥦🍒🍓🍑🥭🍊🍋🍎🍏🍉🍌🍇🍍🥥🌽

Wednesday 16 September 2020

मन चंगा तो कठौती में गंगा

💐💐 कोई भी एक विचार मन में बार बार आने की दो वजहें होती हैं। पहली, या तो आप किन्ही विकट परिस्थितियों से गुजर रहे हैं अथवा दूसरी, आपका स्वभाव ही चित्त या मन की अस्थिरता का है। यदि आप पहली स्थिति से गुजर रहें हैं तो आपको समस्याओं को अच्छी तरह पहचान कर उसके निदान के लिए उचित प्रयासों पर मनन चिंतन कर उसके निवारण के हर संभव उपाय करने होंगे।केवल चिंता करते रहने से समस्याओं का निदान नहीं होता। यदि आप दूसरी स्थिति से गुजर रहे हैं तो यह चिंता का विषय है क्योंकि यह आने वाले समय में आपके किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होने की दस्तक है। चित्त या मन की अस्थिरता परिचायक है कि आपने व्यग्रता, उद्वेग, चिंता और व्याकुलता को अपनी सोच में अंगीकार कर लिया है या रचा बसा लिया है। मन वैसे भी चंचल कहा जाता है और होता भी है। विचारों का आना जाना एक नार्मल प्रक्रिया है। हम रोज़ाना 60 से 70 हज़ार विचारों से मिलते हैं या उनसे
Brain Waves

कम्यूनिकेट करते हैं। हमारा दिमाग़ बिलियन सेल्स से बना हुआ है उसका स्वरुप आज तक वैज्ञानिक भी समझ ही रहे हैं।  व्यग्रता और उद्वेग यानी anxiety ही सारी मानसिक और भावनात्मक फ़सादों की जड़ है। इसका संकेत है कि ऐसा व्यक्ति एक ही प्रकार के शब्द या वाक्य अकारण बार बार बोलता है, हड़बड़ी करता है, बोलते बोलते भूल जाता है, तेज बोलता या चलता है। यह भी दिखता है कि ऐसे व्यक्तियों को हर बात की चिंता करना, छोटी छोटी बातों पर विवाद करना, अनावश्यक चिड़चिड़ाना, ग़ुस्सा करना और बेबात अपनी बेतुकी बातों पर अड़े रहने आदि की आदत पड़ जाती है। ये आदतें शरीर में नकारात्मक रसायनों की मात्रा बढ़ाती जाती हैं और अंतोगत्वा डायबिटीज़, थायरॉइड, ह्रदय और साँस आदि से जुड़े विकारों और रोगों के लक्षण शरीर में दिखाई पड़ने लगते है। इसीलिए आवश्यक है कि “चिंतन प्रबंधन” का व्यापक ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त किया जाये। यह सकारात्मक और व्यवहारिक चिंतन सीखने का तरीक़ा है। चिंतन प्रबंधन के लिए पहला कदम उद्वेग और क्रोध के कारण को समझना और उस पर नियंत्रण करना सीखना है।
ग़ुस्सा आना स्वाभाविक प्रक्रिया है जो लगभग सभी जीवित प्राणियों में समान रूप से होती है। लेकिन, बिना बात के ग़ुस्सा आना, ज़्यादा ग़ुस्सा आना, अचानक तेज ग़ुस्सा आना, हमेशा शिकायत करते रहना, या हमेशा नुख्श निकालते हुए ग़ुस्सा ज़ाहिर करना आदि नकारात्मक सोच को आत्मसात् करने की प्रक्रिया ज़ाहिर करता है और यह आने वाले भविष्य के लिए बीमारियों के दरवाज़े खोलने जैसा है। उद्वेग और क्रोध में इतना ही अंतर होता है कि उद्वेग मन के अंदर निरंतर चलता रहता है और आंतरिक दबाब बढ़ाता जाता है जैसे प्रेशर कुकर के अंदर दबाब बनता रहता है और क्रोध बाहर दिखता है जैसे कुकर से प्रेशर बाहर निकलता है परन्तु उद्वेग फिर भी निरंतर बना रहता है। जो व्यक्ति हमेशा आशंकित या सशंकित रहता है, उसे अनअपेक्षित घटने का डर सदैव बना रहता है। सशंकित व्यक्ति का आत्मविश्वास और विवेक बहुत कमजोर होता है और इसीलिए उसके लिए स्वयं पर अथवा किसी पर भी सहज विश्वास करना मुश्किल होता है। यही स्थिति लंबे समय तक बने रहने से उसका भय उसकी आदत बन जाती है और अपने भय को छुपाने के लिए ऊँची या तल्ख़ आवाज़ में बोलना या अकारण क्रोध करना, छिद्रान्वेषण करना या दूसरों के दोष गिनाना अथवा अपने आप को हमेशा सही साबित करना उसकी मजबूरी बन जाती है। इसीलिए यदि नकारात्मकता आप पर हावी हो रही हो और इसके लक्षण आपके आचार, विचार या व्यवहार में परिलक्षित हो रहे हों तो तुरंत सावधान हो जाइये और आत्ममंथन या आत्मविश्लेषण यानी introspection अवश्य कीजिए और चिंतन प्रबंधन के लिए अपने आप को प्रशिक्षित करिये। ऐसा करना इसीलिए सबसे ज़रूरी है कि आप अनेकों रोगों की असमय गिरफ़्त में आने से अपने आप को बचा सकते हैं।
आत्ममंथन के लिए prerequisite यानी पूर्वापेक्षा है स्वयं के प्रति श्रद्धा और आत्मविश्वास होना। श्रद्धा यानी reverence, faith, devotion or obeisance पैदा करने के लिए मन या चित्त को स्वच्छ, स्थिर और बलवान करना पड़ता है। मंत्रों और ध्यान की सहायता से उसको पुष्ट करना पड़ता है। श्रद्धा जैसे जैसे बढ़ती जाती है, व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण भी बढ़ता जाता है और अतीन्द्रिय शक्तियों के लिए द्वार खुलने का क्रम शुरु हो जाता है। अतीन्द्रिय शक्तियाँ रिद्धियाँ और सिद्धियाँ देती है। जिस प्रकार हनुमानजी अष्ट सिद्धि और नवनिधियों के स्वामी हैं, उसी तरह मन को वश में करने वाला व्यक्ति भी इन्हें प्राप्त कर सकता है। हनुमानजी की पहली सिद्धि है अणिमा यानी अति सूक्ष्म रूप धारण करने की शक्ति, दूसरी है महिमा यानी विशालकाय रूप धारण करने की शक्ति, तीसरी है गरिमा यानी स्वयं का भार विशालकाय पर्वत की भाँति कर लेना, चौथी है लघिमा यानी अपना भार बिलकुल हल्का कर लेना, पाँचवीं है प्राप्ति यानी कुछ भी प्राप्त कर लेने की शक्ति, छटी सिद्धि है प्राकाम्य यानी अपनी इच्छानुसार देह धारण करने और चिरकालिक तक युवा रहने की शक्ति, सातवीं सिद्धि है ईशित्व यानी दैवीय शक्तियों के प्रयोग से कल्याण करना, आठवीं सिद्धि है वशित्व यानी किसी के मन पर नियंत्रण कर लेना।

Celebrating the Gratitude of getting

शरीर और प्राण का सूक्ष्म- श्राद्ध पक्ष
What we get in our life is due to the efforts, pains and nurturing of someone. It may be our parents, our gurus, our colleagues or even our subordinates. We must remain grateful for whatever we get in or life; whether big or small, so as to understand the importance of getting and also understand the values of the things we get. I remember, when I was young and stood meritorious in class 4th board exam, my father gave me a pen. I still remember his words, "do write with it, your handwriting would be beautiful". I was so proud to have that pen and show it to everyone that my father gave this to me. I kept that pen as an asset.Later I developed very good handwriting. It may not be due to that pen but the words kept ringing in my ear that "you will have good hand writing". There is a scientific relevance of "Pitrpaksh" in our lives. In Hindu calendar during the period of "Aashwin" we celebrate the festival of gratitude of getting. We offer prayers for those who have departed for abode and now remain in energy body.
जब हमारे परिवार का कोई सदस्य हमसे बिछुड़ता है तो उसके जाने का दुःख होना स्वाभाविक है। दुःख और पीड़ा जीवनचक्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आना और जाना भी जीवन क्रम का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। ईश्वर हमें मानव शरीर इसीलिए देता है कि हम अपने संस्कारों और कर्म के संयोजन से अपने लिए मानवोचित धर्म के अनुरूप कर्म कर उच्च चैतन्य को प्राप्त कर सके। हर व्यक्ति अपने कर्मों के माध्यम से चैतन्य प्राप्ति के लिए एक परिवार, एक समाज और एक देश मे पैदा होता है। जीवन के सारे रिश्ते नाते केवल इसी उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में बनते बिगड़ते हैं। राग, द्वेष, प्रेम, पीड़ा और दुःख भी इसी क्रम में आते जाते रहते हैं। यदि अपने जीवनकाल में हम अपने चैतन्य स्तर को ऊपर उठा लेते हैं तो कहा जाता है, जीवन सफल हुआ। जिन ने भी अपने जीवन काल में अपने शरीर के माध्यम से अपने चैतन्य के उच्चतम शिखर को प्राप्त किया हो वे ही समाज में, देश में और मानवता में सुधार में सक्षम रहे हैं। उन्होंने याज्जीवन सशरीर मानव और समाज की सेवा तो की ही और वे लोग ही सूक्ष्म में रहकर और शक्तिशाली होकर समाज सुधार की दिशा में सदैव तत्पर होते रहे हैं।
हमारे दिवंगत पूर्वज, परम पूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी, ऋषि गण और दिव्य साधक आज भी इस कथन को साकार करते प्रतीत होते हैं। वे सूक्ष्म में रहते हुए हमारे आसपास रहकर हमारे चैतन्य के उद्भव के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। ऐसी दशा में किसी के शरीर छोड़ने का दुख नहीं होना चाहिए वरन उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का संज्ञान लेकर उनसे प्रेरणा और ज्ञान देने का अनुरोध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में वे समस्त पूर्वज, परिजन, ऋषि, संत, और दिव्य आत्मायें सूक्ष्म रूप में हमारे पास आती हैं और हमसे स्नेहपूर्वक जल अर्पण की अपेक्षा करतीं हैं। श्राद्ध पक्ष में उन्हें श्रद्धा पूर्वक अर्पित किया जल उन्हें दिव्य शाँति प्रदान करता है और वे हमारी चेतना से जुड़कर हमारा मार्गदर्शन करती हैं। 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

प्रार्थना की शक्ति

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 प्रार्थना की शक्ति एक व्यक्ति गाड़ी से उतरा... और बड़ी तेज़ी से एयरपोर्ट में घुसा, जहाज़ उड़ने के लिए तैयार था, उसे किसी कार्यकर्म मे पहुंचना था जो खास उसी के लिए आयोजित की जा रही था...वह अपनी सीट पर बैठा और जहाज़ उड़ गया... अभी कुछ दूर ही जहाज़ उड़ा था कि... कैप्टन ने घोषणा की, तूफानी बारिश और बिजली की वजह से जहाज़ का रेडियो सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा... इसलिए हम पास के एयरपोर्ट पर उतरने के लिए विवश हैं. *जहाज़ उतरा वह बाहर निकल कर कैप्टन से शिकायत करने लगा कि... उसका एक-एक मिनट क़ीमती है और होने वाली कार्यकर्म में उसका पहुँचना बहुत ज़रूरी है... पास खड़े दूसरे यात्री ने उसे पहचान लिया... और बोला डॉक्टर पटनायक आप जहां पहुंचना चाहते हैं... टैक्सी द्वारा यहां से केवल तीन घंटे मे पहुंच सकते हैं... उसने धन्यवाद किया और टैक्सी लेकर निकल पड़ा...*
*लेकिन ये क्या आंधी, तूफान, बिजली, बारिश ने गाड़ी का चलना मुश्किल कर दिया, फिर भी ड्राइवर चलता रहा...* *अचानक ड्राइवर को आभास हुआ कि वह रास्ता भटक चुका है...* *ना उम्मीदी के उतार चढ़ाव के बीच उसे एक छोटा सा घर दिखा... इस तूफान में वहीं ग़नीमत समझ कर गाड़ी से नीचे उतरा और दरवाज़ा खटखटाया...* *आवाज़ आई... जो कोई भी है अंदर आ जाए... दरवाज़ा खुला है...* *अंदर एक बुढ़िया आसन बिछाए भगवद् गीता पढ़ रही थी... उसने कहा ! मांजी अगर आज्ञा हो तो आपका फोन का उपयोग कर लूं...* *बुढ़िया मुस्कुराई और बोली... बेटा कौन सा फोन?? यहां ना बिजली है, ना फोन..* *लेकिन तुम बैठो... सामने चरणामृत है, पी लो... थकान दूर हो जायेगी... और खाने के लिए भी कुछ ना कुछ फल मिल जायेगा...खा लो ! ताकि आगे यात्रा के लिए कुछ शक्ति आ जाये...*
*डाक्टर ने धन्यवाद किया और चरणामृत पीने लगा... बुढ़िया अपने पाठ मे खोई थी कि उसके पास उसकी नज़र पड़ी... एक बच्चा कंबल मे लपेटा पड़ा था जिसे बुढ़िया थोड़ी थोड़ी देर मे हिला देती थी...* *बुढ़िया की पूजा हुई तो उसने कहा... मां जी ! आपके स्वभाव और व्यवहार ने मुझ पर जादू कर दिया है... आप मेरे लिए भी प्रार्थना कर दीजिए... यह मौसम साफ हो जाये मुझे उम्मीद है आपकी प्रार्थनायें अवश्य स्वीकार होती होंगी...* *बुढ़िया बोली... नही बेटा ऐसी कोई बात नही... तुम मेरे अतिथी हो और अतिथी की सेवा ईश्वर का आदेश है... मैने तुम्हारे लिए भी प्रार्थना की है... परमात्मा की कृपा है... उसने मेरी हर प्रार्थना सुनी है...* *बस एक प्रार्थना और मै उससे माँग रही हूँ शायद जब वह चाहेगा उसे भी स्वीकार कर लेगा...* *कौन सी प्रार्थना..?? डाक्टर बोला...* *बुढ़िया बोली... ये जो 2 साल का बच्चा तुम्हारे सामने अधमरा पड़ा है, मेरा पोता है, ना इसकी मां ज़िंदा है ना ही बाप, इस बुढ़ापे में इसकी ज़िम्मेदारी मुझ पर है, डाक्टर कहते हैं... इसे कोई खतरनाक रोग है जिसका वो उपचार नहीं कर सकते, कहते हैं की एक ही नामवर डाक्टर है, क्या नाम बताया था उसका !* *हां "डॉ पटनायक " ... वह इसका ऑपरेशन कर सकता है, लेकिन मैं बुढ़िया कहां उस डॉ तक पहुंच सकती हूं? लेकर जाऊं भी तो पता नही वह देखने पर राज़ी भी हो या नही ? बस अब बंसीवाले से ये ही माँग रही थी कि वह मेरी मुश्किल आसान कर दे..!!* *डाक्टर की आंखों से आंसुओं की धारा बह रहा है....वह भर्राई हुई आवाज़ मे बोला !* *माई...आपकी प्रार्थना ने हवाई जहाज़ को नीचे उतार लिया, आसमान पर बिजलियां कौधवा दीं, मुझे रास्ता भुलवा दिया, ताकि मैं यहां तक खींचा चला आऊं, हे भगवान! मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा... कि एक प्रार्थना स्वीकार करके अपने भक्तों के लिए इस तरह भी सहयता कर सकता है.....!!!!* *दोस्तों, वह सर्वशक्तिमान है.... परमात्मा के भक्तो उससे लौ लगाकर तो देखो... जहां जाकर प्राणी असहाय हो जाता है, वहां से उसकी परम कृपा शुरू होती है...। 🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

Friday 11 September 2020

एक कहानी- गायत्री निवास

 *गायत्री निवास*

*बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर वापस  शालू खिन्न मन से टैरेस पर जाकर बैठ गईसुहावना मौसमहल्के बादल और  

क्षियों का मधुर गान कुछ भी उसके मन को वह सुकून नहीं दे पा रहे थेजो वो अपने पिछले शहर के घर में छोड़ आई थी.*


*शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी ज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं.*


*‘ओहफिर वही बुढ़ियाक्यों इस तरह से उसके घर की ओर ताकती है ?’*


*शालू की उदासी बेचैनी में तब्दील हो गईमन में शंकाएं पनपने लगींइससे पहले भी शालू उस बुढ़िया को तीन-चार बार नोटिस कर 

चुकी थी.*

*दो महीने हो गए थे शालू को पूना से गुड़गांव शिफ्ट हुएमगर भी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी.*


*पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नोटिस पर तबादला हुआ थावो तो आते ही अपने काम और ऑफ़िशियल टूर में व्यस्त हो गएछोटी शैलीका तो पहली क्लास में आराम से एडमिशन हो गयामगर सोनू को बड़ी मुश्कि से पांचवीं क्लास के मिड सेशन में एडमिशन मिलावोदोनों भी धीरे-धीरे रूटीन में  रहे थेलेकिन शालूउसकी स्थिति तो जड़ से उखाड़कर दूसरी ज़मीन पर रोपे गए पेड़ जैसी हो गई थीजोअभी भी नई ज़मीन नहीं पकड़ पा रहा था.*


*सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल हा था पूना मेंउसकी अच्छी जॉब थीघर संभालने के लिए अच्छी

 मे थीजिसके भरोसे वह घरऔर रसोई छोड़कर सुकून से ऑफ़िस चली जाती थीघर के पास ही बच्चों के लिए एक अच्छा-सा डे केयर भी थास्कूल के बाद दोनों बच्चे शाम को सके ऑफ़िस से लौटने तक वहीं रहतेलाइफ़ बिल्कुल सेट थीमगर 

सुधीर के एक तबादले की वजह से सब गड़बड़ होगया.*


*यहां  आस-पास कोई अच्छा डे केयर है और  ही कोई भरोसे लायक 

मे ही मिल रही हैउसका केरियर तो चौपट ही समझो और इतनी टेंशन के बीच ये विचित्र बुढ़ियाकहीं 

छुपकर घर की टोह तो नहीं ले रहीवैसे भी इस इलाके में चोरी और फिरौती के लिए बच्चोंका अपहरण कोई नई बात नहीं हैसोचते-सोचते शालू परेशान हो उठी.*


*दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस आएतो शालू ने उस बुढ़िया के बारे में बतायासुधीर को भी कुछ चिंता हुई, “ठीक हैअगली बार कुछ ऐसा होतो वॉचमैन को बोलना वो उसका ध्यान रखेगावरना फिर देखते हैंपुलिस कम्प्लेन कर सकते हैं.” कुछ दिन ऐसे ही गुज़र गए.*


*शालू का घर को दोबारा ढर्रे पर लाकर नौकरी करने का संघर्ष  जारी थापर इससे बाहर आने की कोई सूरत नज़र नहीं  रही थी.*


*एक दिन सुबह शालू ने टैरेस से देखावॉचमैन उस बुढ़िया के साथ उनके मेन गेट पर आया हुआ थासुधीर उससे कुछ बात कर रहे थे.

 पा से देखने पर उस बुढ़िया की सूरत कुछ जानी पहचानी-सी लग रही थीशालू को लगा उसने यह चेहरा कहीं और भी देखा हैमगर कुछ याद नहीं  रहा थाबात करके सुधीर घर के अंदर  गए और वह बुढ़िया मेन गे पर ही खड़ी रही.*



*“अरेये तो वही बुढ़िया हैजिसके बारे में मैंने आपको बताया थाये यहां क्यों आई है ?” शालू ने चिंतित स्वर में सुधीर से पूछा.*


*“बताऊंगा तो आश्चर्यचकित रह जाओगीजैसा तुम उसके बारे में सो रही थीवैसा कुछ भी नहीं है. जानती हो वो कौन है ?”*


*शालू का विस्मित चेहरा आगे की बात सुनने को बेक़रार था.*


*“वो इस घर की पुरानी मालकिन हैं.”*


*“क्या ? मगर ये घर तो हमने मिस्टर शांतनु से ख़रीदा है.”*


*“ये लाचार बेबस बुढ़िया उसी शांतनु की अभागी मां हैजिसने पहले धोखे से सब कुछ अपने नाम करा लिया और फिर ये घर हमें बेचकर विदे चला गयाअपनी बूढ़ी मां गायत्री देवी को एक वृद्धाश्रम में छोड़कर.*


*छी… कितना कमीना इंसान हैदेखने में तो बड़ा शरीफ़ लग रहा था.”*


*सुधीर का चेहरा वितृष्णा से भर उठावहीं शालू याद्दाश्त पर कु ज़ोर डाल रही थी.*


*“हांयाद आयास्टोर रूम की फ़ाई करते हुए इस घर की पुरानी नेमप्लेट दिखी थीउस पर ‘गायत्री निवास’ लिखा थावहीं एकराजसी ठाठ-बाटवाली महिला की एक पुरानी फ़ोटो भी थीउसका चेहरा ही इस बुढ़िया से मिलता थातभी मुझे गा था कि  इसे कहीं देखा हैमगर अब ये यहां क्यों आई हैं ?*


*क्या घर वापस लेने ? पर हमने तो इसे पूरी क़ीमत देकर ख़रीदा है.” शालू चिंतित हो उठी.*


*“नहींनहींआज इनके पति की हली बरसी हैये उस कमरे में दीया जलाकर प्रार्थना करना चाहती हैंजहां उन्होंने अंतिम सांस लीथी.”*


*“इससे क्या होगामुझे तो इन बातों में कोई विश्वास नहीं.”*


*“तुम्हें  सहीउन्हें तो है और अगर हमारी हां से उन्हें थोड़ी-सी ख़ुशी मिल जाती हैतो हमारा क्या घट जाएगा ?”*


*“ठीक हैआप उन्हें बुला लीजिए.” अनमने मन से ही सहीमगर शालू ने हां कर दी.*


*गायत्री देवी अंदर  गईंक्षी कायातन पर पुरानी सूती धोतीबड़ी-बड़ी आंखों के कोरों में कु जमेकुछ पिघले से आंसूअंदरआकर उन्होंने सुधीर और शालू को ढेरों आशीर्वाद दिए.*


*नज़रें भर-भरकर उस पराये घर को देख रही थींजो कभी उनका अपना थाआंखों में कितनी स्मृतियां, कितने सुख और कितने ही दुख एक सा तैर आए थे.*


*वो ऊपरवाले कमरे में गईंकुछ देर आंखें बंद कर बैठी रहींबं आंखें लगातार रिस रही थीं.*


*फिर उन्होंने दिया जलायाप्रार्थना की और फिर वापस से दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहने लगीं, “मैं इस घर में दुल्हन बनकर आई थीसोचा थाअर्थी पर ही जाऊंगीमगर…” स्वर भर्रा आया था.*


*“यही कमरा था मेराकितने साल हंसी-ख़ुशी बिताए हैं यहां अपनों के साथमगर शांतनु के पिता के जाते ही…” आंखें पुनः भर आईं.*


*शालू और सुधीर नि:शब्द बैठे रहेथोड़ी देर घर से जुड़ी बातें कर गायत्री देवी भारी क़दमों से उठीं और चलने लगीं.*


*पैर जैसे इस घर की चौखट छोड़ने को तैयार ही  थेपर जाना तो था हीउनकी इस हालत को वो दोनों भी महसूस कर रहे थे.*


*“आप ज़रा बैठिएमैं अभी आती हूं.” शालू गायत्री देवी को रोककर कमरे से बाहर चली गई और इशारे से सुधीर को भी बाहर बुलाकरकहने गी, “सुनिएमुझे एक बड़ा अच्छा 

आइडिया आया हैजिससे हमारी लाइफ़ भी सुधर जाएगी और इनके टूटे दिल को भी आराम मिल जाएगा.*


*क्यों  हम इन्हें यहीं रख लें ?* *अकेली हैंबेसहारा हैं और इस घर में इनकी जान बसी हैयहां से कहीं जाएंगी भी नहीं और हम यहांवृद्धाश्रम से अच्छा ही खाने-पहनने को देंगे उन्हें.”*


*“तुम्हारा मतलब हैनौकर की तर ?”*

*“नहींनहींनौकर की तरह नहींहम इन्हें कोई तनख़्वाह नहीं देंगेकाम के लिए तो मेड भी हैये घर पर रहेंगीतो घर के 

दमीकी तरह मेड परआने-जानेवालों पर नज़र रख सकेंगीबच्चों को दे-संभाल सकेंगी.*

 

*ये घर पर रहेंगीतो मैं भी आरा से नौकरी पर जा सकूंगीमुझे भी पीछे से घर कीबच्चों के खाने-पीने की टेंशन नहीं रहेगी.”*


*“आइडिया तो अच्छा हैपर क्या ये मान जाएंगी ?”*


*“क्यों नहींहम इन्हें उस घर में रहने का मौक़ा दे रहे हैंजिसमें उनके प्राण बसे हैंजिसे ये छुप-छुपकर देखा करती हैं.”*


*“और अगर कहीं मालकिन बन घर पर अपना हक़ जमाने लगीं तो ?”*


*“तो क्यानिकाल बाहर करेंगेघर तो हमारे नाम ही हैये बुढ़िया क्या कर सकती है.”*


*“ठीक हैतुम बात करके देखो.” सुधीर ने सहमति जताई.*


*शालू ने संभलकर बोलना शुरू किया, “देखिएअगर आप चाहेंतो यहां रह सकती हैं.”*


*बुढ़िया की आंखें इस अप्रत्याशि प्रस्ताव से चमक उठींक्या वाक़ई वो इस घर में रह सकती हैंलेकिन फिर बुझ गईं.*


*आज के ज़माने में जहां सगे बेटे ने ही उन्हें घर से यह कहते हु बेदख़ल कर दिया कि अकेले बड़े  में रहने से अच्छा उनके लिए 

वृद्धाश्रम में रहना होगावहां ये पराये लोग उसे बिना किसी स्वार्थ के क्यों रखेंगे ?*


*“नहींनहींआपको नाहक ही परेशानी होगी.”*


*“परेशानी कैसीइतना बड़ा घर है और आपके रहने से हमें भी आराम हो जाएगा.”*


*हालांकि दुनियादारी के कटु अनुभवों से गुज़र चुकी गायत्री देवी शालू की आंखों में छिपी मंशा मझ गईंमगर उस घर में रहने के मोह में वो मना  कर सकीं.*


*गायत्री देवी उनके साथ रहने  गईं और आते ही उनके सधे हुए अनुभवी हाथों ने घर की ज़िम्मेदारी बख़ूबी संभाल ली.*


*सभी उन्हें  अम्मा कहकर ही बुलातेहर काम उनकी निगरानी में सुचारु रूप से चलने लगा.*


*घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र होकर शालू ने भी नौकरी ज्वॉइन कर लीसालभर कैसे बीत गयापता ही नहीं चला.*


*अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठातींतैयार करतींमान-मनुहार 

 खिलातीं और स्कूल बस तक छोड़तींफिर किसी कुशल प्रबंधक कीतरह अपनी देखरेख में बाई से सारा

 का करातींरसोई का वो स्वयं ख़ास ध्यान रखने लगींख़ासकर बच्चों के स्कूल से आने के व़क़्त वो नि नए स्वादिष्ट और पौष्टिक

 व्यंजन तैयार कर देतीं.*


*शालू भी हैरान थी कि जो बच्चे चिप्स और पिज़्ज़ा के अलावा कुछ भी मन से  खाते थेवे उनके बनाए व्यंजन ख़ुशी-ख़ुशी खाने लगेथे.*


*बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल  थेउनकी कहानियों के लालच में कभी देर तक टीवी से चिपके रहनेवाले बच्चे उनकी हर बात मानने लगेसमय से खाना-पीना और होमवर्क निपटाकर बिस्तर में पहुंच जाते.*


*अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों में एक ओर जहां अच्छे संस्कार डाल रही थींवहीं हर व़क़्त टीवी देखने की बुरी आदत से भी दूर ले जारही थीं.*


*शालू और सुधीर बच्चों में आए सुखद परिवर्तन को देखकर अभिभूत थेक्योंकि उन दोनों के पास तो 

भी बच्चों के पास बैठ बातें करनेका भी समय नहीं होता था.*


*पहली बार शालू ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उपस्थितिनानी-दादी का प्यारबच्चों पर कितना सकारात्मक प्रभावडालता हैउसके बच्चे तो शुरू से ही इस सुख से वंचित रहेक्योंकि उनके जन्म से पहले ही उनकी नानी और दादी दोनों गुज़र चुकी थीं.*


*आज शालू का जन्मदिन थासुधीर और शालू ने ऑफ़िस से थोड़ा जल्दी निकलकर बाहर डिनर करने का प्लान बनाया थासोचा थाबच्चों को अम्मा संभाल लेंगीमगर घर में घुसते ही दोनों हैरान रह गएबच्चों ने घर को गुब्बारों और झालरों से सजाया हुआ था.*


*वहीं अम्मा ने शालू की मनपसंद डिशेज़ और केक बनाए हुए थेइस रप्राइज़ बर्थडे पार्टीबच्चों के उत्साह और अम्मा की मेहनत सेशालू अभिभूत हो उठी और उसकी आंखें भर आईं.*


*इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट की उसे आदत नहीं थी और इससे पहले बच्चों ने कभी उसके लिए ऐसा कुछ ख़ास किया भी नहीं था.*


*बच्चे दौड़कर शालू के पास  गए और जन्मदिन की बधाई देते हुए पूछा, “आपको हमारा सरप्राइज़ कैसा लगा ?”*


*“बहुत अच्छाइतना अच्छाइतना अच्छा… कि क्या बताऊं…” कहते हु उसने बच्चों को बांहों में भरकर चूम लिया.*


*“हमें पता था आपको अच्छा लगेगाअम्मा ने बताया कि बच्चों द्वारा किया गया छोटा-सा प्रयास भी मम्मी-पापा को बहुत बड़ी ख़ुशी 

देता हैइसीलिए हमने आपको ख़ुशी देने के लिए ये सब किया.”*


*शालू की आंखों में अम्मा के लि कृतज्ञता छा गईबच्चों से ऐसा सुख तो उसे पहली बार ही मिला था और वो भी उन्हीं के संस्कारों के कारण.*

*केक कटने के बाद गायत्री देवी ने अपने पल्लू में बंधी लाल रुमाल में लिपटी एक चीज़ निकाली और शालू की ओर बढ़ा दी.*


*“ये क्या है अम्मा ?”*


*“तुम्हारे जन्मदिन का उपहार.”*

*शालू ने खोलकर देखा तो रुमाल में सोने की चेन थी.*



*वो चौंक पड़ी, “ये तो सोने की मालूम होती है.”*


*“हां बेटीसोने की ही हैबहु मन था कि तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें कोई तोहफ़ा दूंकुछ और तो नहीं है मेरे पासबस यही 

 चेन है, इन्होने दी थी जिसे संभालकर रखा था. मैं अब इसका क्या करूंगीतुम पहननातुम पर बहुत अच्छी लगेगी.”*


*शालू की अंतरात्मा उसे कचोटने लगीजिसे उसने लाचार बुढ़िया समझकर स्वार्थ से तत्पर हो अपने हां आश्रय दियाउनका इतनाबड़ा दि कि अपने पास बचे इकलौते स्वर्णधन को भी वह उसे सहज ही दे रही हैं.*


*“नहींनहीं अम्मामैं इसे नहीं ले सकती.”*


*“ले ले बेटीएक मां का आशीर्वाद समझकर रख लेमेरी तो उम्र भी हो चलीक्या पता तेरे अगले जन्मदिन पर तुझे कुछ देने के लि मैंरहूं भी या नहीं.”*


*“नहीं अम्माऐसा मत कहिएईश्वर आपका साया हमारे सिर पर सदा बनाए रखे.” कहकर शालू उनसे ऐसे लिपट गईजैसे बरसों बादकोई बिछड़ी बेटी अपनी मां से मिल रही हो.*


*वो जन्मदिन शालू कभी नहीं भूलीक्योंकि उसे उस दिन एक बेशक़ीमती उपहार मिला थाजिसकी क़ीमत कुछ लोग बिल्कुल नहीं समझते और वो है नि:स्वार्थ मानवीय भावनाओं से भरा मां का प्यारवो जन्मदि गायत्री देवी भी नहीं भूलींक्योंकि उस दिन उनकी उसघर में पुनर्प्रतिष्ठा हुई थी.*


*घर की बड़ीआदरणीयएक मां के रूप मेंजिसकी गवाही उस घर के बाहर लगाई गई वो पुरानी नेमप्ले भी दे रही थीजिस परलिखा था -*

           *‘गायत्री निवास’*


*यदि आपकी आंखे इस कहानी को पढ़क थोड़ी सी भी नम हो गई   हो तो अकेले में 2 मिनट चिंतन करे कि पाश्चात्य संस्कृति की होड़में हम अपनी मूल संस्कृति को भुलाकर,  बच्चों की उच्च शिक्षा पर तो सभी का ध्यान केंद्रित हैं 

किन्तु उन्हें संस्कारवान बनाने में हमपिछड़ते जा रहे हैं *

एक यादगार अनुभव- Graceful aging

Lanscape अभी अभी मैं उत्तराखण्ड के पहाड़ों से लौटा हूँ, बेटे अभिनव के अनुरोध पर काफी दिनों से कार्यक्रम बनता रहा पर आना अभी हो सका। वो ज्योली...