माँ
पकड़ी जो तेरी उंगलियाँ
हम दौड़ना सीख गये,
सुनके वो मीठी लोरियाँ
हम बोलना सीख गये,
जब छुपा तेरे आँचल के पीछे,
खुद को महफूज़ पाया मैंने
हाथ रखा जो सर पे हमारे
गिर के संभलना सीख गये,
ये “वज़ूद” है मेरा जो
तेरी दुआओं का ही करम है,
बसा चरणों मे ही तेरी
मेरा ईमान-ओ-धरम है,
जब सर रखूं तेरी गोद मे
जन्नत भी फीका मुझे लगे,
मेरी उम्र की दुआ करने वाली
मेरी उमर भी तुझे लगे,
पूछा जो मैने रब से तूने
है जन्नत कहाँ बनाया,
तेरी गोद ही है जन्नत
रब ने भी ये बताया,
अदम्य है वर्णन तेरा,मैं
कलम यहीं रोक लेता हूँ,
धन्य है तूँ हे-माई
मेरी ख़ुशनसीबी जो
मैं तेरा बेटा हूँ………..!!
मातृदिवस पर विशेष
Lovely...
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