चेतना शब्द से अभिप्राय यह है कि हम अपने आसपास के बारे में, अपने बारे में कितने चैतन्य, जागरूक हैं, विचारशील हैं। आजकल चेतना यानि consciousness पर दुनिया भर के शोध केन्द्रित हैं। कोई इसे quantam physics में ढूँढता है, कोई energy में, कोई तंत्र में और कोई मंत्र में ढूँढता है। चेतना को सहज बुद्धि से ही समझा जा सकता है, उसे विज्ञान की परिभाषाओं में समेटा नहीं जा सकता। मन, विचार और आंतरिक संस्थान ही चेतना के वाहक हैं। आंतरिक शक्ति का प्रमाण व्यक्ति के विचारों, ओज़, तेज़ और भाषा में प्रतिलक्षित होता है। चेतना के स्वरूप का एक छोटा सा उदाहरण biofeedback के रूप में देखा जा सकता है। biofeedback में व्यक्ति अपनी समग्र चेतना को आदेशित करता है और चाही गयी स्थिति को प्राप्त करने के लिए उसे प्रेरित करता है। पूर्ण मनोयोग से किए गए प्रयासों से उस स्थिति को प्राप्त भी किया जा सकता है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं जिन्हे हम अक्सर exception कहकर इतिश्री कर लेते हैं। मानवी काया अतींद्रिय शक्ति का भंडार है, उसका बहुत छोटा सा हिस्सा ही हमारी दैनंदनी के संचालन में उपयोग मे आता है जो हमें sex के उपभोग या जीवनयापन के लिए कोशिशों में लगा दिख पड़ता है।
अतींद्रिय शक्तियों के उपार्जन के लिए अथक प्रयास करना पड़ता है, धैर्य और क्रमबद्धता का समावेश करके मन और विचार संस्थानों को एक-एक करके उद्दीपित किया जाता है। जिससे शरीर के अन्तः संस्थान में प्रमुख हमारी emotional body यानि भाव शरीर अधोगामी अवस्था को छोड़कर ऊर्ध्व गामी स्थिति को प्राप्त कर लेता है। जिसका सीधा प्रभाव व्यक्ति के ओज़, तेज़ और जीवन के मूल्यों मे दिखाई पड़ने लगता है। वह स्वार्थ और शरीर की भूख से ऊपर उठकर स्नेह, श्रद्धा, प्रेम, आस्था और आनंद की अनुभूति करने लगता है।
इसका सीधा सा उदाहरण अभी हाल ही में सम्पन्न हुए कुम्भ में आए हुए करोड़ो लोगो की श्रद्धा और भक्ति में देखा जा सकता है। 21 अप्रैल से 21 मई 2016 तक चले इस कुम्भ मेले में देश-विदेश से पाँच करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने उज्जैन नगरी की पवित्र क्षिप्रा में स्नान किया। आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति का इतना बड़ा समागम शायद ही विश्व में कहीं होता होगा। 45 से 47 डिग्री तापमान में, जहां कूलर और एसी छोड़कर जाने को मन न हो वहाँ इतनी बड़ी तादाद मे इतने लोगों का सम्मलित होना निश्चय ही आश्चर्यजनक है। ये उस भाव शरीर की सक्षमता का प्रमाण है कि यदि भाव शरीर अधोगामी स्थिति को छोड़कर उर्ध्व्गामी स्थिति में आ जाए तो असंभव भी संभव हो जाते हैं। विज्ञान यहीं पर मार खा जाता है। विज्ञान की कसौटी पर इतनी भीड़ केवल बीमारियों और दुर्घटनाओं को जन्म देगी, वो आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति की बात सोच ही नहीं सकता।
चेतना का रहस्य भी इसी में समाहित है। चेतना के विकास के लिए आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास आदि उस जमीन का काम करते हैं , जिसमे उत्तम प्रकार की फसल ली जा सकती है। शरीर को साधने का मतलब है कि मानसिक शरीर और भाव शरीर को पुष्ट किया जाए। ये बात भी विज्ञान की समझ के परे है।
कुम्भ जैसे समागम में बड़े बड़े योगी साधक सामान्य जन को शिक्षित करने के उद्देश्य से अपना समय देते आए हैं। योग और योगाभ्यास से होने वाले लाभों के बारे में जन सामान्य को जानकारी देना, उन्हे शिक्षित करना और उनके जीवन को भक्तिमय बनाना, इन साधकों का मूल उद्देश्य होता है। इसी से चेतना का विस्तार होता है और इस दौरान पूरे क्षेत्र में एक positive ऊर्जा कि अनुभूति की जा सकती है।
अतींद्रिय शक्तियों के उपार्जन के लिए अथक प्रयास करना पड़ता है, धैर्य और क्रमबद्धता का समावेश करके मन और विचार संस्थानों को एक-एक करके उद्दीपित किया जाता है। जिससे शरीर के अन्तः संस्थान में प्रमुख हमारी emotional body यानि भाव शरीर अधोगामी अवस्था को छोड़कर ऊर्ध्व गामी स्थिति को प्राप्त कर लेता है। जिसका सीधा प्रभाव व्यक्ति के ओज़, तेज़ और जीवन के मूल्यों मे दिखाई पड़ने लगता है। वह स्वार्थ और शरीर की भूख से ऊपर उठकर स्नेह, श्रद्धा, प्रेम, आस्था और आनंद की अनुभूति करने लगता है।
इसका सीधा सा उदाहरण अभी हाल ही में सम्पन्न हुए कुम्भ में आए हुए करोड़ो लोगो की श्रद्धा और भक्ति में देखा जा सकता है। 21 अप्रैल से 21 मई 2016 तक चले इस कुम्भ मेले में देश-विदेश से पाँच करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने उज्जैन नगरी की पवित्र क्षिप्रा में स्नान किया। आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति का इतना बड़ा समागम शायद ही विश्व में कहीं होता होगा। 45 से 47 डिग्री तापमान में, जहां कूलर और एसी छोड़कर जाने को मन न हो वहाँ इतनी बड़ी तादाद मे इतने लोगों का सम्मलित होना निश्चय ही आश्चर्यजनक है। ये उस भाव शरीर की सक्षमता का प्रमाण है कि यदि भाव शरीर अधोगामी स्थिति को छोड़कर उर्ध्व्गामी स्थिति में आ जाए तो असंभव भी संभव हो जाते हैं। विज्ञान यहीं पर मार खा जाता है। विज्ञान की कसौटी पर इतनी भीड़ केवल बीमारियों और दुर्घटनाओं को जन्म देगी, वो आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति की बात सोच ही नहीं सकता।
चेतना का रहस्य भी इसी में समाहित है। चेतना के विकास के लिए आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास आदि उस जमीन का काम करते हैं , जिसमे उत्तम प्रकार की फसल ली जा सकती है। शरीर को साधने का मतलब है कि मानसिक शरीर और भाव शरीर को पुष्ट किया जाए। ये बात भी विज्ञान की समझ के परे है।
कुम्भ जैसे समागम में बड़े बड़े योगी साधक सामान्य जन को शिक्षित करने के उद्देश्य से अपना समय देते आए हैं। योग और योगाभ्यास से होने वाले लाभों के बारे में जन सामान्य को जानकारी देना, उन्हे शिक्षित करना और उनके जीवन को भक्तिमय बनाना, इन साधकों का मूल उद्देश्य होता है। इसी से चेतना का विस्तार होता है और इस दौरान पूरे क्षेत्र में एक positive ऊर्जा कि अनुभूति की जा सकती है।