Sunday, 31 March 2019

दाँत का दर्द

एक व्यक्ति को दाँत में असहनीय पीड़ा थी, दर्द के मारे बुरा हाल था। डॉक्टर को दिखाना था, पर मन नहीं मान रहा था। मन में सैकड़ो विचार आ रहे थे, पता नहीं कितने दाँत ख़राब हैं, डॉक्टर पता नहीं कितने दाँत निकालेगा, अगर रूट केनाल करना पड़ा तो और भीषण कष्ट होगा। दवा से मेरा पेट ख़राब हो जाता है। इन विचारों से उसके कष्ट में तो कोई कमी नहीं आई वरन वह निराशा में डूबने लगा। अंत्तोगत्वा थकहार कर उसे डॉक्टर की शरण में जाना ही पड़ा। डॉक्टर ने एक्स रे किया और तीन दिन

दवा लेने के बाद एक सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दी।घर पहुँच कर वह दवा लेने पर विचार कर ही रहा था कि उसके मन में फिर से उहापोह शुरु हो गई, पिछले बार उसने जब दवा खाई थी तो तीन दिन तक पेट ख़राब रहा था, मिसेज़ शर्मा ने दाँत के डाक्टर को दिखा कर दवा ली थी और दवा के रिएक्शन से उनके सारे शरीर में सूजन आ गई थी। दवा लूँ या न लूँ के उहापोह में यूँ ही तीन दिन निकल गये और वह मात्र एक दिन की दवा लेकर वह डाक्टर के पास पहुँच गया। डाक्टर ने चेक किया और पूछा, आपने दवा बराबर खाई थी न और उसने झूठमूट हाँ कह दी। डाक्टर ने कहा कि उसका घाव नहीं भरा है उसे तीन दिन और दवा लेनी होगी। दाँत के दर्द के मारे उसकी बुरी गत बन गयी थी, मरता क्या न करता, मज़बूरी में वह तीन दिन दवा लेकर अपने मित्र के साथ फिर वह डाक्टर के पास पहुँचा और डॉक्टर ने सड़ा हुआ दाँत निकाल दिया। लौटते वक्त उसका मित्र उसे वृद्धाश्रम होते हुए लौटा जहाँ उनकी मुलाक़ात वृद्धाश्रम के संचालक से हुई। वे अत्यन्त बुजुर्ग लेकिन शालीन व्यक्तित्व, ओज़ और तेज़ से भरे हुए थे। जब बुजुर्ग ने उसे देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा। उसने अपने मन की सारी व्यथा उनके सामने उँड़ेल दी। बुजुर्ग ने शाँतचित्त होकर उसकी सारी बातें सुनी, फिर वे बोले सहन शक्ति है, तो बिना फ़ालतू के विचार करे सहो। दर्द और फ़ालतू के विचार दोंनो ख़त्म हो जाएँगे। वरना दर्द तुम्हें जीने नहीं देगा और फ़ालतू के विचार तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे। मन का मूल स्वभाव ही अस्थिरता है और वह तुम्हें तब तक परेशान करता रहेगा जब तक तुम परेशान होते रहोगे। जैसे ही तुम निश्चय करोगे कि तुम चाहे जो हो जाये दर्द बर्दाश्त कर सकते हो तो उसी क्षण दर्द कम होने लगेगा। 
बुजुर्ग ने आगे कहा, मन की अस्थिरता आज एक गंभीर समस्या बन गई है। लोगों की एकाग्रता और संयम जैसे चुक गये हों। कभी सहयोगियों से नहीं बनती, कभी बॉस से, कभी घर पर और कभी पड़ोसियों से खटपट होती रहती है। अगर तुम्हें जीवन का वास्तविक आनंद लेना है तो अपने उपर भरोसा करना सीखो क्योंकि मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। 

Monday, 13 August 2018

अब इतिहास बनाना है

अब इतिहास बनाना है.........

बीती रीती बातों को, कटती चुभती बातों को
बिसराकर आगे बढ़ जाना है;
इस नये जन्म दिवस पर हमको, शालीन संदेश जगाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


उत्साह न अब बिखरने पाये, राहें भी अब न भटकने पायें
छेड़े वो संगीत नया, यूँ मिलकर हम गुनगुनायेंगे
रुकना नहीं है अब हमको, वो लक्ष्य ही हमको पाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


जो समझें हमको खोटे सिक्के, जो समझें हमको रीते बीते
जब चमकेंगे हम हीरों के मानिंद, वो भी अचरज कर जायेंगे
करके पूरी मेहनत हमको, बस ऐसा नाम कमाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।


मेहनतकश का वो स्पंदन, आज अभी भी बाकी है
कण कण फिर से जुड़ने को, हर साज अभी भी बाकी है
छेड़ें फिर संगीत नया, हम बस गाते जायेंगे
इस नये जन्म दिवस पर हमको, शालीन संदेश जगाना है
इक नये मुक़ाम को पाने को, अब इतिहास बनाना है।

Sunday, 12 August 2018

ज़िंदगी की रफ़्तार पर कुछ पंक्तियाँ

आहिस्ता चल अब ऐ ज़िंदगी,
जीवन की इबारत अभी बाक़ी है,
कुछ दर्द मिटाना बाक़ी है,
कुछ फ़र्ज़ निभाना बाक़ी है;

रफ़्तार में तेरे चलने से,
कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए,
रूठों को मनाना बाक़ी है,
छुटो को मिलाना बाक़ी है;

कुछ रिश्ते बनकर जुड़ते गए,
कुछ जुड़े हुए थे, छुट गए,
उन सब मीठे मीठे रिश्तों के,
जोड़ों को जमाना बाकी है;

जीवन की सहज पहेली को,
अब क्या सुलझाना बाक़ी है?
आहिस्ता चल ऐ मेरी ज़िंदगी,
जीवन का गीत अभी बा
क़ी  है.

Sunday, 18 September 2016

कुछ कविताएँ और विचार

मायने जिंदगी के
आज़ मन बडा उदास है,
खुशियाँ कोसों दूर तक नजर नहीं आती;
क्योंकि अरसे बाद हमारी मुलाकात, हमसे ही हो गई।
मुद्दत हुई, जब हम, हमसे मिले थे,
गिले शिकवे बहुत थे, पर हम खामोश थे।
कहते भी क्या, जो कहना था,
उसके शब्द हमारे पास नहीं थे।
हम जो होते हैं, वो दिखते नहीं हैं;
और जो दिखने की कोशिश करते हैं,
वो हम होते नहीं है।
हम वो करते हैं, जो दूसरों को अच्छा लगे।
वो कहते हैं, जिससे दूसरों की दाद मिले।
हमने कहा हमसे, आज़ तो अंदर से बाहर निकल,
आ आज तो खुद से मिल;
आज तो कोशिश कर जिंदगी जीने की,
गिलों को पीने की और फ़टे जज़्बातों को सीने की;
खडा कर खुद को आइने के सामने, पूछ अपने हाल;
मुस्कुराकर गले मिल अपने आपसे,
माफ़ कर अपने आप को,
साफ कर मन के पाप को,
जिंदगी के मायने समझे जाते हैं तभी से,
जब खुद की मुलाकातें होती हैं ख़ुदी से।
मैं भारतीय हूँ
क्यों जरूरत है आज यह सोचने की, कि इतनी समृद्ध संस्कृति की धरोहर होने के बावज़ूद, हम अपने आप के भारतीय होने पर गर्व महसूस नहीं करते। अवसरवादिता, चाटुकारिता, भाईभतीजावाद, और स्वार्थसिद्धि की सारी सीमाएँ लाँघने के बाद भी आज हम खींसे निपोरे क्यों खडे है?? इसी नपुंसकवादी सोच पर चोट करती एक कविता।
मैं भारत का वोटर हूँ, मुझे लड्डू दोनों हाथ चाहिये।
कायरता की डोर हाथ में, पर सुरक्षित हिन्दुस्तान चाहिए।
बिजली मैं बचाऊँगा नहीं, बिजली बिल मुझे कम चाहिये,।
पेड़ मैं लगाऊँगा नहीं, मौसम मुझको नम चाहिये,।
शिकायत मैं करूँगा नहीं, सफाई, सडक दम मस्त चाहिये।
लेन-देन मैं करूँ न कम, पर भ्रष्टाचार का अंत चाहिये।
पढ़ने की मेहनत करी नहीं जाती, नौकरी लालीपॉप चाहिये,।
घर के बाहर से मतलब नहीं, पर शहर मुझको झक-साफ चाहिये।
काम करूँ न धेले भर का, वेतन लल्लनटॉप चाहिये।
नेता एक कुछ बोल गया, सो मुफ्त में पंद्रह लाख चाहिये,।
लाचारों से लाभ उठाऊँ, फिर भी ऊँची साख चाहिये।
लोन मिले बस बिल्कुल सस्ता, बचत पर ब्याज चढ़ा चाहिये,।
धर्म के नाम पे देश बाँट दूं, पर देश मुझको धर्मनिरपेक्ष चाहिये।
जात आगे मेरी ही बढ़े, पर देश तो बस सेक्यूलर ही चाहिये।
नेता मेरी ही जात का हो,पर देश तो आगे बढ़ा चाहिये।।
स्वार्थसिद्ध हो तो देश बेंच दूं, दूज़े के लिए आदर्श चाहिए।
मैं भारत का वोटर हूँ , मुझे लड्डू दोनों हाथ चाहिये।'
ये कटाक्ष है, आज वक़्त आ गया है एक विचार क्रांति का। एक समग्र विचार क्रांति, जो भारतीयता और भारतीय होने पर गर्व का अहसास दे। अब वक्त आ गया है कुछ करने का, जिससे हिन्दुस्तानी होने पर हमें गर्व हो।
छोटी सोच का असर- एक विचार
छोटी और स्वार्थगत सोच केवल नीचे जाने का रास्ता बताती है । व्यक्ति अधोगामी हो जाता है। अपने लिए ही रात-दिन सोचता है, किससे नोचूँ, किसका खाऊँ; कहाँ बोऊँ, क्या पाऊँ; बस इसी उधेडबुन में उसकी जिंदगी व्यतीत हो जाती है और अंतोगत्वा हाथ सिवा दुःख के कुछ नहीं लगता।
व्यापक सोच ही परिपक्वता की निशानी है । सोच बडी रखने से भटकने की गुँजाइशें खत्म हो जाती हैं।व्यक्ति अपने उद्दश्यों के प्रति सचेत रहता है। नित उद्देश्यपरक कर्मों में भागीदारी करते हुए निहितार्थ को प्राप्त करता हुआ याज्जीवन सुखी रहता है।
छोटी छोटी बातें- विचार योग्य बात

अगर रिश्तों की अहमियत, गर्मी और वज़ूद बनाये रखना है तो उसके लिए मंहगे गिफ्ट्स या तारे तोडकर लाने की जरूरत नहीं है। छोटी छोटी बातों से रिश्ते संवर जाते हैं। दो मीठे बोल ही इसके लिए काफ़ी हैं। I am sorry, I love you, I care for you, I missed you, न जाने कितने छोटे छोटे वाक्य होंगे जो हमारे रिश्तों को बना सकते है। Care, concern और trust जिस तरह से express किया जायेगा, रिश्ते भी उसी दिशा में जायेंगे।

नववर्ष पर 
 जो गुज़र गया, सो बिसर गया;
पर जाते जाते सिखा गया,
जीवन की परिभाषा में, कुछ जोड़ गया, कुछ तोड़ गया;
शब्दों के आरोहण में, जीवन की नैया बहती है,
शुद्ध विचार हों, सुंदर मन हो, भला, भला ही होता है,
ये वक़्त का मौज़ा दिखा गया;
जो गुज़र गया, सो बिसर गया, पर जाते जाते सिखा गया.

Friday, 15 July 2016

Being emotional is healthy??

Are you emotional? or
Are you emotionally healthy?
Having emotions and feelings are quite natural. There can be arguments of whether feelings are emotions or emotions have separate entity, but both aggravate the internal mechanism of the body and create modified mental and physical conditions. What I am refereeing here is emotions carried forward in day-to-day life in such a way that they becomes habit. e.g. anger, agitation, grudges or even happiness are the carried forward feelings and emotions and have become a habit. And if negatively poised, always remaining sad and sulky, you are "labelled as an emotional guy".
Read the article
https://pvbhopal.blogspot.in/2015/10/anger-anger-come-again.html
Being emotional means having deep seated feelings those became habits and those can be easily excited or triggered by a trivial action. I get suddenly angry, if things are not happening my way. So, getting angry has become a habit and any trivial action like rejection, poor attention or insult can aggravate it. Being emotionally sensitive is necessary element of life but becoming oversensitive make things worse.
1. What does it mean to be emotionally oversensitive?
Emotional outburst with little provocation is the indicator of being emotionally over- sensitive. If you are highly emotional, outburst into tears is a common phenomenon of your life. You get charged up with words and have absolutely no control on your emotional reactions. You get upset, irritated, angered, agitated and anxious thousand times in a day and remain clueless as what goes wrong? You are emotionally over sensitive. You can flare-up in flames in a moment and the next moment you become euphoric. Getting thrilled by a small thing and getting shot by small hick-up. Oversensitive people are highly apprehensive and always have a unknown fear dominent.
Read the article
https://pvbhopal.blogspot.in/2015/06/stress-grown-menace-instilling-wisdom.html
2. Do you recognise your sensitivity?
It is important to learn about one's own emotional sensitivity. Our state of sensitivity can be gauged by others easily because we hardly get any clues about it. Other can know and judge easily that I am over-sensitive, less-sensitive or moderately sensitive because of my reactions, reflections and judgements. It is a common place that we judge people before we hardly could have known him/her. Over sensitive people have no control on flow of their thoughts and they become less predictable and more apprehensive. Less-sensitive people may be of two types; one who sensed everything but avoid reflections and another who is really careless and unconcerned. Former type may be emotionally healthy person but the later types are hard-hearted people. Being emotionally over-sensitive or less sensitive (former type) is getting more than diseased. One can not realise in terms of loss till everything is lost and then it is too late. Emotional people exercise less self-control and put pressure on controlling others through their emotional moves. One has to identify "what triggers emotional outburst"? You has to look to your life vocabulary, your body language and facial expressions because they do tell a lot about your emotions. Negatively charged words do much harm as they are the source of negative thoughts.
Read the article
http://tinybuddha.com/blog/are-you-a-highly-sensitive-person/
3. Who is emotionally healthy and who is not?
We have seen that emotionally over-sensitive people are certainly NOT emotionally healthy. Then who is emotionally healthy person? Is controlling emotions, trigger harmful chemicals in the body? Emotionally healthy persons are always cheerful, energetic and have great passion to survive in all odds.  It can be understood that they have power of resilience, high level of commitment and modesty demonstrated of & on in their day-to-day life. How can we differentiate between an emotional person and an emotionally healthy person. Let me give some typical symptoms differentiating the two.


Symptoms
An emotional person
An emotionally healthy person
Reaction to anger
Agitated
Observant
Reaction to argument
Fight to die
Complacent
Reaction to untimely demand
Aggression
Cool denial
Reaction to panic situation
Impulsive
Composed
Reaction to get something
Egoist
Passionate
Reaction to an unfriendly situation
Apprehensive
Calculative
Reaction to grief situation
Outburst 
Concerned
Reaction to bullying
Crossfire
Firm denial
Reaction to help sought by a known person
Doubtful
Forthcoming
Reaction to help sought by an unknown person
Flat denial
Empathetic
Reaction to taking risk for career
Overcautious
Risk taking




It can be concluded that remaining over-sensitive or highly emotionally charged is no good for the health. One tend to pay a very heavy cost for being emotionally unhealthy at the end. It invites disease state in the body, we become diseased over a period of time.
Turning an emotional person into an emotionally healthy person requires a plan of action for correction, modification and sustenance. And more importantly, it requires lot of time, patience and strong will to change.
4. How can someone become an emotionally healthy person?
It is NOT impossible but a little tedious task to bring about that change. Most of the habits we follow are genetically coded in us and there is a natural resistance within the internal mechanism to accept any change. Suppose I have been born to parents who are short tempered, angered and agitated in nature then these traits are genetically transferred in me. Therefore for making a stable change in my emotional health, lot of internal cleansing is desired.
  • Take a decision
This is the first step to bring any sizeable change in one's life. You can become an emotionally healthy person provided you have taken a decision to change yourself. Now, you and ONLY YOU are responsible to bring about that change in you. Taking a decision makes me assertive and forward oriented. Remind yourself again and again that you have taken a decision to become emotionally healthy and remind constantly that you are the owner of that decision. Make it your screen saver or wallpaper with bold "I am emotionally healthy".
  • Observe the internal mechanism
Learning from the past is most important. Review your conversations, actions, reactions, reflections those have brought about serious heartburn or created rift and rigour. Identify the trigger points those make you angered, agitated or apprehensive. Try to figure out, "how many times, you were the first to react?" Observe your life vocabullary. Generally negatively poised words which are part of our life vocabullary become the source of our emotional wreckage. Find out the disempowering metaphor that misguides your life.  Suppose you own a "Critical" metaphor, then whatever you will see, you will see it through the critical metaphor. And your reactions, reflections, feedback, feelings and opinion  will echo critique. Choose an empowering metaphor. Choosing the empowering metaphor will initiate you "NOT to react negatively". Identify the stress buttons, those put you in jitter. This exercise provides the sources of breakdowns in the form of negatively poised vocabulary, disempowering metaphor and stress buttons.
  • Make a plan for correction and implement with full rigour
Make a plan that you believe, is workable. Maintain a diary and log of modification of life vocabulary. You need to transform the life vocabulary, thus bringing positivity in communication.  This is a slow and steady process. You need consistency, commitment and self-motivation. Using the modified words help in developing the empowering metaphor. This also helps to establish and modify the internal communication. Keep an eye on the changes that takes place. Ask your friends, close relation and family members to keep a watch on your modified vocabulary. Any positive signal will be a great morale booster for you. Measure the outcome in a defined period of time. Set a target and modify the plan for correction as you achieve the target.

Transforming the life vocabulary

Transforming the life vocabulary
Your life vocabulary is the selection of words you normally choose to express in day-to-day
conversation or even thinking. Each thought coming to your mind or each word spoken by you reverberates in the system and produce electrical impulses through the neurotransmitters. Each electrical impulse affects some specific part of nervous and lymphatic system of our body through the brain. Your brain receives and processes more than one million such signals per second, which sends different responses to different internal systems and subsystems of the body. A as a result of effect of electrical impulses several thousand chemicals are produced in the system. Each chemical has its own effect on the body metabolism and immune system. Your physical, mental and emotional life is guided by the vocabulary you choose to converse or think. Each word chosen by you has deep impact on your emotions, thoughts and actions.  The words you choose to communicate are the indicators of your internal representations and that is how you experience the words spoken by others. Words can injure our egos or inflame our hearts- we can instantly change any emotional experience simply by choosing new words. This is known as transformation of life vocabulary. If you fail to master the life vocabulary and the words, their selection is then guided by subconscious habit, thus making a habit of using negatively poised words. Modification of life vocabulary is possible through transforming the vocabulary by intentionally choosing the positive words instead of negatively poised words. This also helps in changing the life metaphor. Using emotionally charged transformed vocabulary can metamorphose your own internal state as well as the state around you.
TRANSFORMATION OF VOCABULARY
Negatively poised sentence
Transformed Sentence
      I feel disgusted as everything here stinks.
      I will be surprised if everything starts changing here.
       Trust in the governance is getting lost day-by-day.
       We have to search indicators of improvements in the governance.
       Families are disintegrating fast.
       Families live very differently today.
       Why others should get it, if they do not deserve.
       One who deserves, definitely gets the return at one point of time.
       I am too lonely to fight in this world of anarchy.
       You have to find similar minded people to makes changes in this world.
       I fear when i go out.
       One must remain concerned about safety when you go out.
       I hate to be here.
       I prefer a constructive change here.
       I am seriously disappointed by your actions.
       Your actions are bit underwhelming.
       I am too confused to decide anything.
       I remain curious while taking decision.
       I feel too depressed now a days.
       I feel on a road to a  turn-around.
       The humiliation was too painful for me.
       Your actions were utter surprise to me.
       Frustration has taken everything from our youths.
       Our youths are fascinated about fast changes in their lives.
       I feel irritated when i talk to someone.
       I feel challenged when i talk to someone.
       I am exhausted in convincing you.
       I need recharging to convince you.
       Oh!!!Shit…things are getting worse.
       Oh…god!!! I expect some miracle now.

Saturday, 21 May 2016

चेतना का रहस्य और कुम्भ

चेतना शब्द से अभिप्राय यह है कि हम अपने आसपास के बारे में, अपने बारे में कितने चैतन्य, जागरूक हैं, विचारशील हैं। आजकल चेतना यानि consciousness पर दुनिया भर के शोध केन्द्रित हैं। कोई इसे quantam physics में ढूँढता है, कोई energy में, कोई तंत्र में और कोई मंत्र में ढूँढता है। चेतना को सहज बुद्धि से ही समझा जा सकता है, उसे विज्ञान की परिभाषाओं में समेटा नहीं जा सकता। मन, विचार और आंतरिक संस्थान ही चेतना के वाहक हैं। आंतरिक शक्ति का प्रमाण व्यक्ति के विचारों, ओज़, तेज़ और भाषा में प्रतिलक्षित होता है। चेतना के स्वरूप का एक छोटा सा उदाहरण biofeedback के रूप में देखा जा सकता है। biofeedback में व्यक्ति अपनी समग्र चेतना को आदेशित करता है और चाही गयी स्थिति को प्राप्त करने के लिए उसे प्रेरित करता है। पूर्ण मनोयोग से किए गए प्रयासों से उस स्थिति को प्राप्त भी किया जा सकता है। ऐसे सैकड़ो उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं जिन्हे हम अक्सर exception कहकर इतिश्री कर लेते हैं। मानवी काया अतींद्रिय शक्ति का भंडार है, उसका बहुत छोटा सा हिस्सा ही हमारी दैनंदनी के संचालन में उपयोग मे आता है जो हमें sex के उपभोग या जीवनयापन के लिए कोशिशों में लगा दिख पड़ता है।

अतींद्रिय शक्तियों के उपार्जन के लिए अथक प्रयास करना पड़ता है, धैर्य और क्रमबद्धता का समावेश करके मन और विचार संस्थानों को एक-एक करके उद्दीपित किया जाता है। जिससे शरीर के अन्तः संस्थान में प्रमुख हमारी emotional body यानि भाव शरीर अधोगामी अवस्था को छोड़कर ऊर्ध्व गामी स्थिति को प्राप्त कर लेता है। जिसका सीधा प्रभाव व्यक्ति के ओज़, तेज़ और जीवन के मूल्यों मे दिखाई पड़ने लगता है। वह स्वार्थ और शरीर की भूख से ऊपर उठकर स्नेह, श्रद्धा, प्रेम, आस्था और आनंद की अनुभूति  करने लगता है।

इसका सीधा सा उदाहरण अभी हाल ही में सम्पन्न हुए कुम्भ में आए हुए करोड़ो लोगो की श्रद्धा और भक्ति में देखा जा सकता है। 21 अप्रैल से 21 मई 2016 तक चले इस कुम्भ मेले में देश-विदेश से पाँच करोड़ से भी ज्यादा लोगों ने उज्जैन नगरी की पवित्र क्षिप्रा में स्नान किया। आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति का इतना बड़ा समागम शायद ही विश्व में कहीं होता होगा। 45 से 47 डिग्री तापमान में, जहां कूलर और एसी छोड़कर जाने को मन न हो वहाँ इतनी बड़ी तादाद मे इतने लोगों का सम्मलित होना निश्चय ही आश्चर्यजनक है। ये उस भाव शरीर की सक्षमता का प्रमाण है कि यदि भाव शरीर अधोगामी स्थिति को छोड़कर उर्ध्व्गामी स्थिति में आ जाए तो असंभव भी संभव हो जाते हैं। विज्ञान यहीं पर मार खा जाता है। विज्ञान की कसौटी पर इतनी भीड़ केवल बीमारियों और दुर्घटनाओं को जन्म देगी, वो आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास और शांति की बात सोच ही नहीं सकता।
चेतना का रहस्य भी इसी में समाहित है। चेतना के विकास के लिए आस्था, श्रद्धा, भक्ति, प्रेम, विश्वास, आनंद, उल्लास आदि उस जमीन का काम करते हैं , जिसमे उत्तम प्रकार की फसल ली जा सकती है। शरीर को साधने का मतलब है कि मानसिक शरीर और भाव शरीर को पुष्ट किया जाए। ये बात भी विज्ञान की समझ के परे है।
कुम्भ जैसे समागम में बड़े बड़े योगी साधक सामान्य जन को शिक्षित करने के उद्देश्य से अपना समय देते आए हैं। योग और योगाभ्यास से होने वाले लाभों के बारे में जन सामान्य को जानकारी देना,  उन्हे शिक्षित करना और उनके  जीवन को भक्तिमय बनाना, इन साधकों का  मूल उद्देश्य होता है। इसी से चेतना का विस्तार होता है और इस दौरान पूरे क्षेत्र में एक positive ऊर्जा कि अनुभूति की जा सकती है।

अब मैं बड़ा हो गया हूँ..... एक कविता

एक कविता

अब मैं बड़ा हो गया हूँ;

मुझको लगता है, मैं बड़ा हो गया हूँ,
उम्र के साथ साथ, उम्रदराज हो गया हूँ;
चूंकि ढल गयी है उम्र शायद, इसीलिए,
सुफेद झुरमुटों से झाँकती चाँदनी
कहती है कि मैं बड़ा हो गया हूँ।


जब मैं छोटा था, नादान था,
जो भी होता था मन में, कह देता था;
फूलों को देखकर मन आनंदित होता था,
तितली न पकड़ आने पर रोना आता था;
पेड़ों पर लगे अमरूद चोरी करके
भागने का आनंद, कुछ और ही था।

बड़ा होने का बड़ा सुरूर था मुझे,
बुनता था ताने-बाने करूंगा क्या,
बड़ा होकर मैं,
जैसे-जैसे बड़ा हुआ, कोशिश करता हूँ,
दूसरों का मन पढ़ने की, बातें गढ़ने की,
दूसरों को अपनी तस्वीर में उतारकर
लगता है, मैं बड़ा हो गया हूँ।


वही कहता हूँ, जिससे स्व सधे,
दूर की कौड़ी देखकर ही बोलता हूँ,
सामने वाले को हर तरीके से तौलता हूँ,
जो भी बोलता हूँ, फिर सलीके से बोलता हूँ,
फ़क्र होता है अपने आप पर, कि
अपने पैरों पर तो खड़ा हो गया हूँ;
अब तो वाकई मैं बड़ा हो गया हूँ।

पर कौड़ियों के खेल में, बात गढ़नें की
रेलम-पेल में, ज़िंदगी बेमैल हो गयी है,
जो देखता हूँ वो होता नहीं है, और जो होता है
वो बचपन वाली सोच के करीब होता है;
सोचता हूँ बार-बार क्या मैं बड़ा हो गया हूँ??????
पर मैं कहाँ बढ़ा, मैं कहाँ बड़ा हो गया हूँ????????
 

Wednesday, 11 May 2016

Draw a mind map

"Drawing a mind map" is a simple and very effective technique to understand internal emotional make up of any individual. Internal emotional make up can be characterised by positive and negative traits/ values owned by the person. Characteristics such as being observant, confident, honest,
 trustworthiness, cool, concerned, committed, patience, conscience, sensible, empathy, emotional, irritating, egoist, anguish, doubtful, etc. can be easily gauged through the image drawn by a person in a designed setting. The activity can be conducted in groups or individually. I am using this technique since last 11 years as part of my training programme on "stress management". Participants are asked to draw a picture of their own choice in given time. They use crayons, pens, pencils and draw a picture. I analyse the pictures and indicate three strengths and three areas of improvement.
I use following to take a decision on the image drawn;'
1. Subject chosen
2. Proportion and linkages of objects
3. Use of space and page left unused
4. Colours and their integration.
5. Pressure used by the participant to draw the image
6. Relevance to life
7. Creativity and logic used
8. Finishing of the image
9. Detailing of individual objects in image and their inter-relationship
10. Total message conveyed in nutshell


I found the technique quite intresting as it involves serious researching into an image. I could found as many as 80 characteristics in the image. The images shown here have feedback of the participants as well.
This technique can be used to help children in finding behavioural, cognitive and emotional problems. Children tend to lie to hide their problems, but images do tell the exact mental and emotional frame of that child. This technique can also be used to diagnose career orientation of the children.
 

बॉडी मसाज ऑइल-कुछ अनुभूत प्रयोग- १

  जिंदगी में रिसर्च एक मौलिक तत्व है, जो होना चाहिए, दिखना चाहिए ,उसका इस्तेमाल अपनी जिंदगी के उत्तरोत्तर सुधार के लिए किया जाना चाहिए। मैंन...