एक व्यक्ति को दाँत में असहनीय पीड़ा थी, दर्द के मारे बुरा हाल था। डॉक्टर को दिखाना था, पर मन नहीं मान रहा था। मन में सैकड़ो विचार आ रहे थे, पता नहीं कितने दाँत ख़राब हैं, डॉक्टर पता नहीं कितने दाँत निकालेगा, अगर रूट केनाल करना पड़ा तो और भीषण कष्ट होगा। दवा से मेरा पेट ख़राब हो जाता है। इन विचारों से उसके कष्ट में तो कोई कमी नहीं आई वरन वह निराशा में डूबने लगा। अंत्तोगत्वा थकहार कर उसे डॉक्टर की शरण में जाना ही पड़ा। डॉक्टर ने एक्स रे किया और तीन दिन
दवा लेने के बाद एक सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दी।घर पहुँच कर वह दवा लेने पर विचार कर ही रहा था कि उसके मन में फिर से उहापोह शुरु हो गई, पिछले बार उसने जब दवा खाई थी तो तीन दिन तक पेट ख़राब रहा था, मिसेज़ शर्मा ने दाँत के डाक्टर को दिखा कर दवा ली थी और दवा के रिएक्शन से उनके सारे शरीर में सूजन आ गई थी। दवा लूँ या न लूँ के उहापोह में यूँ ही तीन दिन निकल गये और वह मात्र एक दिन की दवा लेकर वह डाक्टर के पास पहुँच गया। डाक्टर ने चेक किया और पूछा, आपने दवा बराबर खाई थी न और उसने झूठमूट हाँ कह दी। डाक्टर ने कहा कि उसका घाव नहीं भरा है उसे तीन दिन और दवा लेनी होगी। दाँत के दर्द के मारे उसकी बुरी गत बन गयी थी, मरता क्या न करता, मज़बूरी में वह तीन दिन दवा लेकर अपने मित्र के साथ फिर वह डाक्टर के पास पहुँचा और डॉक्टर ने सड़ा हुआ दाँत निकाल दिया। लौटते वक्त उसका मित्र उसे वृद्धाश्रम होते हुए लौटा जहाँ उनकी मुलाक़ात वृद्धाश्रम के संचालक से हुई। वे अत्यन्त बुजुर्ग लेकिन शालीन व्यक्तित्व, ओज़ और तेज़ से भरे हुए थे। जब बुजुर्ग ने उसे देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा। उसने अपने मन की सारी व्यथा उनके सामने उँड़ेल दी। बुजुर्ग ने शाँतचित्त होकर उसकी सारी बातें सुनी, फिर वे बोले सहन शक्ति है, तो बिना फ़ालतू के विचार करे सहो। दर्द और फ़ालतू के विचार दोंनो ख़त्म हो जाएँगे। वरना दर्द तुम्हें जीने नहीं देगा और फ़ालतू के विचार तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे। मन का मूल स्वभाव ही अस्थिरता है और वह तुम्हें तब तक परेशान करता रहेगा जब तक तुम परेशान होते रहोगे। जैसे ही तुम निश्चय करोगे कि तुम चाहे जो हो जाये दर्द बर्दाश्त कर सकते हो तो उसी क्षण दर्द कम होने लगेगा।
दवा लेने के बाद एक सड़ा हुआ दाँत निकालने की सलाह दी।घर पहुँच कर वह दवा लेने पर विचार कर ही रहा था कि उसके मन में फिर से उहापोह शुरु हो गई, पिछले बार उसने जब दवा खाई थी तो तीन दिन तक पेट ख़राब रहा था, मिसेज़ शर्मा ने दाँत के डाक्टर को दिखा कर दवा ली थी और दवा के रिएक्शन से उनके सारे शरीर में सूजन आ गई थी। दवा लूँ या न लूँ के उहापोह में यूँ ही तीन दिन निकल गये और वह मात्र एक दिन की दवा लेकर वह डाक्टर के पास पहुँच गया। डाक्टर ने चेक किया और पूछा, आपने दवा बराबर खाई थी न और उसने झूठमूट हाँ कह दी। डाक्टर ने कहा कि उसका घाव नहीं भरा है उसे तीन दिन और दवा लेनी होगी। दाँत के दर्द के मारे उसकी बुरी गत बन गयी थी, मरता क्या न करता, मज़बूरी में वह तीन दिन दवा लेकर अपने मित्र के साथ फिर वह डाक्टर के पास पहुँचा और डॉक्टर ने सड़ा हुआ दाँत निकाल दिया। लौटते वक्त उसका मित्र उसे वृद्धाश्रम होते हुए लौटा जहाँ उनकी मुलाक़ात वृद्धाश्रम के संचालक से हुई। वे अत्यन्त बुजुर्ग लेकिन शालीन व्यक्तित्व, ओज़ और तेज़ से भरे हुए थे। जब बुजुर्ग ने उसे देखा तो उसकी परेशानी का कारण पूछा। उसने अपने मन की सारी व्यथा उनके सामने उँड़ेल दी। बुजुर्ग ने शाँतचित्त होकर उसकी सारी बातें सुनी, फिर वे बोले सहन शक्ति है, तो बिना फ़ालतू के विचार करे सहो। दर्द और फ़ालतू के विचार दोंनो ख़त्म हो जाएँगे। वरना दर्द तुम्हें जीने नहीं देगा और फ़ालतू के विचार तुम्हें चैन से बैठने नहीं देंगे। मन का मूल स्वभाव ही अस्थिरता है और वह तुम्हें तब तक परेशान करता रहेगा जब तक तुम परेशान होते रहोगे। जैसे ही तुम निश्चय करोगे कि तुम चाहे जो हो जाये दर्द बर्दाश्त कर सकते हो तो उसी क्षण दर्द कम होने लगेगा।
बुजुर्ग ने आगे कहा, मन की अस्थिरता आज एक गंभीर समस्या बन गई है। लोगों की एकाग्रता और संयम जैसे चुक गये हों। कभी सहयोगियों से नहीं बनती, कभी बॉस से, कभी घर पर और कभी पड़ोसियों से खटपट होती रहती है। अगर तुम्हें जीवन का वास्तविक आनंद लेना है तो अपने उपर भरोसा करना सीखो क्योंकि मन के जीते जीत है, मन के हारे हार।