Friday, 11 September 2020

A real story- Think twice about your parents.

 ह्रदय विदारक : 

 आशा केदार साहनी की मौत की रूह कंपा देने वाली खबर आज का एक ऐसा सच हैजिसे हम चाह कर भी स्वीकार नहीं कर सकते आज का हिन्दुस्तानी समाज बहुत बेरहम हैबेगैरत है और लगभग मृतप्राय हो चुका है। यहाँ संवेदनाओं और आस्था का मोल कुछ भी नहीं  सब कुछ भौतिकतावाद और बाज़ारवाद की भेंट चढ़ चुका है। इस खबर ने हम सब भारतीयों को आईने में अपनी तस्वीर देखने को मजबूर कर दिया है  आखिर कँहा है हम ? कँहा जा रहा है हमारा समाज 


 80 साल की आशा साहनी मुंबई के पॉश इलाके में  10 वी मंजिल पर एक अपार्टमेंट में अकेले रहती थी। उनके पति की मौत चार साल पहले हो गयी। अकेले क्यों रहती थीक्योंकि उनका अकेला बेटा अमेरिका में डॉलर कमाता था। बिजी था। उसके लिए आशा साहनी डेथ लाइन में खड़ी एक बोझ ही थी। उसके लाइफ फारमेट में आशा साहनी फिट नहीं बैठती थी।

ऐसा कहने के पीछे मजबूत आधार है। बेटे ने अंतिम बार 23 अप्रैल 2016 को अपनी मां को फोन किया था। whatsapp पर बात भी हुई थी। मां ने कहा-अब अकेले घर में नहीं रह पाती हूं। अमेरिका बुला लो। अगर वहां नहीं ले जा सकते हो तो ओल्ड एज  होम ही भेज दो अकेले नहीं रह पाती हूं।

 बेटे ने कहा-बहुत जल्द  रहा हूँ  

कुल मिला कर डॉलर कमाते बेटे को अपनी मां से बस इतना सा लगाव था कि उसके मरने के बाद अंधेरी/ओशिवारा का महंगा अपार्टमेंट उसे मिले। जाहिर है इसके लिए बीच-बीच में मतलब कुछ महीनों पर आशा साहनी की खैरियत ले लेना भी उसकी मजबूरी थी। अंदर कीइच्छा नहीं। हाँ , कुछ डॉलर को रुपये में चेंज कराकर जरूर बीच-बीच में भेज दिया करता था वो बेटा।

चूंकि उसे इस साल अगस्त में आना था सो उसने 23 अप्रैल 2016 के बाद मां को फोन करने की जरूरत नहीं समझी। वह 6 अगस्त 2017 को मुंबई आया। कोई टूर टाइम प्रोग्राम था। बेटे ने अपना फर्ज निभाते हुए,आशा साहनी पर उपकार करते हुए उनसे मिलने का वक्त निकालने का प्रोग्राम बनाया। उनसे मिलने अंधेरी के अपार्टमेंट गया  बेल बजायी। कोई रिस्पांस नहीं। लगा,बूढी मां सो गयी होगी। एक घंटे तक जब कोई मूवमेंट नहीं हुई तो लोगों को बुलाया। पता चलने पर पुलिस भी  गयी। गेट खुला तो सभी हैरान रहे। आशा साहनीकी जगह उसकी कंकाल पड़ी थी। बेड के नीचे। शरीर तो गल ही चुका था,कंकाल भी पुराना हो चला था। जांच में यह बात सामने आ रही है कि आशा साहनी की मौत कम से कम 8-10 महीने पहले हो गयी होगी। यह अंदाजा लगा कि खुद को घसीटते हुए गेट खोलने कीकोशिश की होगी लेकिन बूढ़ा शरीर ऐसा नहीं कर सका। लाश की दुर्गंध इसलिए नहीं फैली क्योंकि दसवें तल्ले पर उनके अपने दो फ्लैट थे  बड़े और पूर्णतः बंद फ्लैट से बाहर गंध नहीं  सकी।


बेटे ने अंतिम बार अप्रैल 2016 मे बात होने की बात ऐसे की मानो वह अपनी मां से कितना रेगुलर टच में था। जाहिर है आशा साहनी ने अपने अपार्टमेंट में या दूसरे रिश्तेदार से संपर्क इसलिए काट दिया होगा कि जब  उसके बेटे के लिए ही वह बोझ थी तो बाकी क्यों उनकी परवाह करेंगे। आखिर वह मर गईं।  उन्हें अंतिम यात्रा भी नसीब नहीं हुई।

 आशा साहनी की कहानी से डरिये। जो आज आशा साहनी के बेटों की भूमिका में है वह भी डरें,क्योंकि कल वह भी  आशा साहनी बनेंगे। और अगर आप किसी आशा साहनी को जानते हैं तो उन्हें बचा लें।

 पिछले दिनों इकोनॉमिस्ट ने एक कवर स्टेारी की थी। उसके अनुसार इस सदी की सबसे बड़ी बीमारी और सबसे बड़ा कष्ट सामने  रहाहै वह है "मृत्यु का इंतजार

 इकोनॉमिस्ट ने आंकड़ा देकर बताया कि किस तरह यूरोप,अमेरिका जैसे देशों में मृत्यू का इंतजार सबसे बड़ा ट्रोमा बन रहा है। मेडिकल-इलाज और दूसरे साधन से इंसान की उम्र बढ़ी है लेकिन अकेले लड़ने की क्षमता उतनी ही है  मृत्यू का इंतजार आशा साहनी जैसे लोगोंके लिए सबसे बड़ा कष्ट है। लेकिन मृत्यु , जीवन को लेवल करने वाला सबसे बड़ा फैक्टर है। यह एक साइकिल है।  

 आशा साहनी एक नियति है।  कीमत है विकास की। कीमत है अपग्रेडेशन की। कीमत है लाइफस्टाइल की.  कीमत है|उस "एरोगेंसकी जिसमे कई लोगों को लगता है कि वक्त उनके लिए ठहर कर रहेगा। समय को पहचानिए। भारतीय संस्कृति को पहचानिए । उन माँ बाप की अहमियत का सम्मान जरुर करिए, जिन्होंने अपना सब कुछ सींचकर आपको बड़ा किया, इस लायक बनाया कि आप सम्मान के साथ ज़िंदगी जी सके| 

आशा साहनी की आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि।

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