Friday, 11 September 2020

एक कहानी- नियति या ईश्वर

 

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी वो एकांत जगह की तलाश में घुम रही थीकि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी। उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये। वहां पहुँचते  ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।

उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी। 

उसने दांये देखातो एक शिकारी तीर का निशानाउस की तरफ साध रहा था। घबराकर वह दाहिने मुडीतो वहां एक भूखा शेरझपटनेको तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुडीतो नदी में जल बहुत था।

 मादा हिरनी क्या करती ? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा ? क्या हिरनी जीवित बचेगी ? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी ? क्या शावक जीवित रहेगा ? 

 क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी ? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी ?क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी?

वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो ?

 हिरनी अपने आप को शून्य में छोडअपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी।

कुदरत का करिश्मा देखिये। बिजली चमकी और तीर छोडते हुएशिकारी की आँखे चौंधिया गयी।

उसका तीर हिरनी के पास से गुजरतेशेर की आँख में जा लगा,शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा।और शिकारीशेर को घायल ज़ानकर भाग गया। घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी। हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

 हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते हैजब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते।तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने उत्तरदायित्व  प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। कर्म की प्रधानता ही सब कुछ है | अन्ततयशअपयशहार-जीतजीवनमृत्यु का अन्तिम निर्णय कर्म की नियति ही तय करती है। हमें उस पर विश्वास कर अपने कर्म में निरत रहना चाहिए।

 


कुछ लोग हमारी *सराहनाकरेंगे,

कुछ लोग हमारी *आलोचनाकरेंगे।

दोनों ही मामलों में हम *फायदेमें हैं,

एक हमें *प्रेरितकरेगा और

दूसरा हमारे भीतर *सुधारलाएगा।।

 

*अच्छा सोचें*

तो अच्छा ही होगा

जो होता हैउसमें ईश्वर तुम्हारा ही हित देखता है। तुम्हें उस समय सब विपरीत ज़रूर नज़र आता हैपर यह समय ही जानता है कि जोसामने आगे आयेगा वही तुम्हारे लिए सबसे उत्तम होगा। इसलिए केवल कर्म पर भरोसा होना चाहिए।

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