Each one of us have unique experiences in our lives. CRISH is my new journey to give back to the society. Changes in society do not come by-chance. In this phase of my life, I share my experiences so that someone finds them interesting, or gain some new ideas from them. Learning from others save energy, time, and encourage to innovate. Everyone constantly seek guidance. We at this foundation through our research work help teachers, students and parents to enrichtheir their life and help others.
Wednesday, 5 May 2021
संस्कारों का मोल
Sunday, 2 May 2021
मौत का उत्सव
खुले नान वेज रेस्टॉरेंट मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ?
Wednesday, 16 September 2020
मन चंगा तो कठौती में गंगा
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Brain Waves |
कम्यूनिकेट करते हैं। हमारा दिमाग़ बिलियन सेल्स से बना हुआ है उसका स्वरुप आज तक वैज्ञानिक भी समझ ही रहे हैं। व्यग्रता और उद्वेग यानी anxiety ही सारी मानसिक और भावनात्मक फ़सादों की जड़ है। इसका संकेत है कि ऐसा व्यक्ति एक ही प्रकार के शब्द या वाक्य अकारण बार बार बोलता है, हड़बड़ी करता है, बोलते बोलते भूल जाता है, तेज बोलता या चलता है। यह भी दिखता है कि ऐसे व्यक्तियों को हर बात की चिंता करना, छोटी छोटी बातों पर विवाद करना, अनावश्यक चिड़चिड़ाना, ग़ुस्सा करना और बेबात अपनी बेतुकी बातों पर अड़े रहने आदि की आदत पड़ जाती है। ये आदतें शरीर में नकारात्मक रसायनों की मात्रा बढ़ाती जाती हैं और अंतोगत्वा डायबिटीज़, थायरॉइड, ह्रदय और साँस आदि से जुड़े विकारों और रोगों के लक्षण शरीर में दिखाई पड़ने लगते है। इसीलिए आवश्यक है कि “चिंतन प्रबंधन” का व्यापक ज्ञान और प्रशिक्षण प्राप्त किया जाये। यह सकारात्मक और व्यवहारिक चिंतन सीखने का तरीक़ा है। चिंतन प्रबंधन के लिए पहला कदम उद्वेग और क्रोध के कारण को समझना और उस पर नियंत्रण करना सीखना है। ग़ुस्सा आना स्वाभाविक प्रक्रिया है जो लगभग सभी जीवित प्राणियों में समान रूप से होती है। लेकिन, बिना बात के ग़ुस्सा आना, ज़्यादा ग़ुस्सा आना, अचानक तेज ग़ुस्सा आना, हमेशा शिकायत करते रहना, या हमेशा नुख्श निकालते हुए ग़ुस्सा ज़ाहिर करना आदि नकारात्मक सोच को आत्मसात् करने की प्रक्रिया ज़ाहिर करता है और यह आने वाले भविष्य के लिए बीमारियों के दरवाज़े खोलने जैसा है। उद्वेग और क्रोध में इतना ही अंतर होता है कि उद्वेग मन के अंदर निरंतर चलता रहता है और आंतरिक दबाब बढ़ाता जाता है जैसे प्रेशर कुकर के अंदर दबाब बनता रहता है और क्रोध बाहर दिखता है जैसे कुकर से प्रेशर बाहर निकलता है परन्तु उद्वेग फिर भी निरंतर बना रहता है। जो व्यक्ति हमेशा आशंकित या सशंकित रहता है, उसे अनअपेक्षित घटने का डर सदैव बना रहता है। सशंकित व्यक्ति का आत्मविश्वास और विवेक बहुत कमजोर होता है और इसीलिए उसके लिए स्वयं पर अथवा किसी पर भी सहज विश्वास करना मुश्किल होता है। यही स्थिति लंबे समय तक बने रहने से उसका भय उसकी आदत बन जाती है और अपने भय को छुपाने के लिए ऊँची या तल्ख़ आवाज़ में बोलना या अकारण क्रोध करना, छिद्रान्वेषण करना या दूसरों के दोष गिनाना अथवा अपने आप को हमेशा सही साबित करना उसकी मजबूरी बन जाती है। इसीलिए यदि नकारात्मकता आप पर हावी हो रही हो और इसके लक्षण आपके आचार, विचार या व्यवहार में परिलक्षित हो रहे हों तो तुरंत सावधान हो जाइये और आत्ममंथन या आत्मविश्लेषण यानी introspection अवश्य कीजिए और चिंतन प्रबंधन के लिए अपने आप को प्रशिक्षित करिये। ऐसा करना इसीलिए सबसे ज़रूरी है कि आप अनेकों रोगों की असमय गिरफ़्त में आने से अपने आप को बचा सकते हैं। आत्ममंथन के लिए prerequisite यानी पूर्वापेक्षा है स्वयं के प्रति श्रद्धा और आत्मविश्वास होना। श्रद्धा यानी reverence, faith, devotion or obeisance पैदा करने के लिए मन या चित्त को स्वच्छ, स्थिर और बलवान करना पड़ता है। मंत्रों और ध्यान की सहायता से उसको पुष्ट करना पड़ता है। श्रद्धा जैसे जैसे बढ़ती जाती है, व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण भी बढ़ता जाता है और अतीन्द्रिय शक्तियों के लिए द्वार खुलने का क्रम शुरु हो जाता है। अतीन्द्रिय शक्तियाँ रिद्धियाँ और सिद्धियाँ देती है। जिस प्रकार हनुमानजी अष्ट सिद्धि और नवनिधियों के स्वामी हैं, उसी तरह मन को वश में करने वाला व्यक्ति भी इन्हें प्राप्त कर सकता है। हनुमानजी की पहली सिद्धि है अणिमा यानी अति सूक्ष्म रूप धारण करने की शक्ति, दूसरी है महिमा यानी विशालकाय रूप धारण करने की शक्ति, तीसरी है गरिमा यानी स्वयं का भार विशालकाय पर्वत की भाँति कर लेना, चौथी है लघिमा यानी अपना भार बिलकुल हल्का कर लेना, पाँचवीं है प्राप्ति यानी कुछ भी प्राप्त कर लेने की शक्ति, छटी सिद्धि है प्राकाम्य यानी अपनी इच्छानुसार देह धारण करने और चिरकालिक तक युवा रहने की शक्ति, सातवीं सिद्धि है ईशित्व यानी दैवीय शक्तियों के प्रयोग से कल्याण करना, आठवीं सिद्धि है वशित्व यानी किसी के मन पर नियंत्रण कर लेना।
Celebrating the Gratitude of getting
What we get in our life is due to the efforts, pains and nurturing of someone. It may be our parents, our gurus, our colleagues or even our subordinates. We must remain grateful for whatever we get in or life; whether big or small, so as to understand the importance of getting and also understand the values of the things we get. I remember, when I was young and stood meritorious in class 4th board exam, my father gave me a pen. I still remember his words, "do write with it, your handwriting would be beautiful". I was so proud to have that pen and show it to everyone that my father gave this to me. I kept that pen as an asset.Later I developed very good handwriting. It may not be due to that pen but the words kept ringing in my ear that "you will have good hand writing". There is a scientific relevance of "Pitrpaksh" in our lives. In Hindu calendar during the period of "Aashwin" we celebrate the festival of gratitude of getting. We offer prayers for those who have departed for abode and now remain in energy body. जब हमारे परिवार का कोई सदस्य हमसे बिछुड़ता है तो उसके जाने का दुःख होना स्वाभाविक है। दुःख और पीड़ा जीवनचक्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। आना और जाना भी जीवन क्रम का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। ईश्वर हमें मानव शरीर इसीलिए देता है कि हम अपने संस्कारों और कर्म के संयोजन से अपने लिए मानवोचित धर्म के अनुरूप कर्म कर उच्च चैतन्य को प्राप्त कर सके। हर व्यक्ति अपने कर्मों के माध्यम से चैतन्य प्राप्ति के लिए एक परिवार, एक समाज और एक देश मे पैदा होता है। जीवन के सारे रिश्ते नाते केवल इसी उद्देश्य की पूर्ति की दिशा में बनते बिगड़ते हैं। राग, द्वेष, प्रेम, पीड़ा और दुःख भी इसी क्रम में आते जाते रहते हैं। यदि अपने जीवनकाल में हम अपने चैतन्य स्तर को ऊपर उठा लेते हैं तो कहा जाता है, जीवन सफल हुआ। जिन ने भी अपने जीवन काल में अपने शरीर के माध्यम से अपने चैतन्य के उच्चतम शिखर को प्राप्त किया हो वे ही समाज में, देश में और मानवता में सुधार में सक्षम रहे हैं। उन्होंने याज्जीवन सशरीर मानव और समाज की सेवा तो की ही और वे लोग ही सूक्ष्म में रहकर और शक्तिशाली होकर समाज सुधार की दिशा में सदैव तत्पर होते रहे हैं। हमारे दिवंगत पूर्वज, परम पूज्य गुरुदेव, वंदनीया माताजी, ऋषि गण और दिव्य साधक आज भी इस कथन को साकार करते प्रतीत होते हैं। वे सूक्ष्म में रहते हुए हमारे आसपास रहकर हमारे चैतन्य के उद्भव के लिए सदैव प्रयासरत रहते हैं। ऐसी दशा में किसी के शरीर छोड़ने का दुख नहीं होना चाहिए वरन उनकी सूक्ष्म उपस्थिति का संज्ञान लेकर उनसे प्रेरणा और ज्ञान देने का अनुरोध करना चाहिए। श्राद्ध पक्ष में वे समस्त पूर्वज, परिजन, ऋषि, संत, और दिव्य आत्मायें सूक्ष्म रूप में हमारे पास आती हैं और हमसे स्नेहपूर्वक जल अर्पण की अपेक्षा करतीं हैं। श्राद्ध पक्ष में उन्हें श्रद्धा पूर्वक अर्पित किया जल उन्हें दिव्य शाँति प्रदान करता है और वे हमारी चेतना से जुड़कर हमारा मार्गदर्शन करती हैं। 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
प्रार्थना की शक्ति
Friday, 11 September 2020
एक कहानी- गायत्री निवास
*गायत्री निवास*
*बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर
प
*शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी न
*‘ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस
*शालू की उदासी बेचैनी में तब्
चु
*दो महीने हो गए थे शालू को पू
*पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नो
*सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल र
मे
सु
*यहां न आस-पास कोई अच्छा डे के
मे
छु
*दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस
*शालू का घर को दोबारा ढर्रे पर
*एक दिन सुबह शालू ने टैरेस से
पा
*“अरे, ये तो वही बुढ़िया है, जि
*“बताऊंगा तो आश्चर्यचकित रह जा
*शालू का विस्मित चेहरा आगे की
*“वो इस घर की पुरानी मालकिन हैं.”*
*“क्या ? मगर ये घर तो हमने मि
*“ये लाचार बेबस बुढ़िया उसी शां
*छी… कितना कमीना इंसान है, दे
*सुधीर का चेहरा वितृष्णा से भर
*“हां, याद आया. स्टोर रूम की स
*क्या घर वापस लेने ? पर हमने तो इसे पूरी क़ीमत देकर ख़रीदा है.”
*“नहीं, नहीं. आज इनके पति की प
*“इससे क्या होगा, मुझे तो इन बा
*“तुम्हें न सही, उन्हें तो है
*“ठीक है, आप उन्हें बुला लीजिए
*गायत्री देवी अंदर आ गईं. क्षी
*नज़रें भर-भरकर उस पराये घर को
*वो ऊपरवाले कमरे में गईं. कुछ
*फिर उन्होंने दिया जलाया, प्रा
*“यही कमरा था मेरा. कितने साल
*शालू और सुधीर नि:शब्द बैठे रहे. थोड़ी देर घर से जुड़ी बातें कर
*पैर जैसे इस घर की चौखट छोड़ने
*“आप ज़रा बैठिए, मैं अभी आती हूं.” शालू गायत्री देवी को रोककर
आइडि
*क्यों न हम इन्हें यहीं रख लें
*“तुम्हारा मतलब है, नौकर की तर
*“नहीं, नहीं. नौकर की तरह नहीं
आ
*ये घर पर रहेंगी, तो मैं भी आरा
*“आइडिया तो अच्छा है, पर क्या
*“क्यों नहीं. हम इन्हें उस घर
*“और अगर कहीं मालकिन बन घर पर
*“तो क्या, निकाल बाहर करेंगे.
*“ठीक है, तुम बात करके देखो.”
*शालू ने संभलकर बोलना शुरू कि
*बुढ़िया की आंखें इस अप्रत्याशि
*आज के ज़माने में जहां सगे बेटे
वृ
*“नहीं, नहीं. आपको नाहक ही परे
*“परेशानी कैसी, इतना बड़ा घर है
*हालांकि दुनियादारी के कटु अनु
*गायत्री देवी उनके साथ रहने आ
*सभी उन्हें अम्मा कहकर ही बु
*घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र हो
*अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठा
क
का
व्यं
*शालू भी हैरान थी कि जो बच्चे
*बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल ग
*अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों
*शालू और सुधीर बच्चों में आए सु
क
*पहली बार शालू ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उप
*आज शालू का जन्मदिन था. सुधीर
*वहीं अम्मा ने शालू की मनपसंद
*इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट की
*बच्चे दौड़कर शालू के पास आ गए
*“बहुत अच्छा, इतना अच्छा, इतना
*“हमें पता था आपको अच्छा लगेगा
दे
*शालू की आंखों में अम्मा के लि
*केक कटने के बाद गायत्री देवी
*“ये क्या है अम्मा ?”*
*“तुम्हारे जन्मदिन का उपहार.”*
*शालू ने खोलकर देखा तो रुमाल में सोने की चेन थी.*
*वो चौंक पड़ी, “ये तो सोने की मालूम होती है.”
*“हां बेटी, सोने की ही है. बहु
ए
*शालू की अंतरात्मा उसे कचोटने
*“नहीं, नहीं अम्मा, मैं इसे नहीं ले सकती.”*
*“ले ले बेटी, एक मां का आशीर्
*“नहीं अम्मा, ऐसा मत कहिए. ईश्
*वो जन्मदिन शालू कभी नहीं भूली
*घर की बड़ी, आदरणीय, एक मां के
*‘गायत्री निवास’*
*यदि आपकी आंखे इस कहानी को पढ़क
कि
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